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Скачать или смотреть जिंदगी में एक ही युद्ध हारे थे हनुमान जी, जाने उस युद्ध के बारे मे II Asal news

  • Asal News
  • 2018-06-30
  • 1144
जिंदगी में एक ही युद्ध हारे थे हनुमान जी, जाने उस युद्ध के बारे मे II Asal news
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Описание к видео जिंदगी में एक ही युद्ध हारे थे हनुमान जी, जाने उस युद्ध के बारे मे II Asal news

आज हम आपको जो कहानी बताने जा रहे हैं वह कहानी है मच्छिंद्रनाथ जी एवं हनुमान जी के विषय में। एक बार मच्छिंद्रनाथ जी रामेश्वरम आते हैं। वहां भगवान श्रीराम का बनाया हुआ सेतु देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और भगवान श्रीराम की भक्ति में लीन होकर समुद्र में स्नान करने लगते हैं, तभी वहां हनुमान जी, जो कि एक बूढ़े वानर के रूप में बैठे होते हैं, उनकी नजर मछिंद्रनाथ पर पड़ती है। हनुमान जी यह जानते थे कि मछिंद्रनाथ जी एक सिद्ध योगी हैं परंतु फिर भी उनकी शक्ति की परीक्षा लेने हेतु हनुमान जी ने अपने लीला आरंभ करी और अचानक जोरदार बारिश कर दी तथा उस बूढ़े वानर रूपी हनुमान ने बारिश से बचने हेतु एक पहाड़ पर प्रहार किया, जिससे कि वह वहां गुफा बना सके। यह सब मच्छिंद्रनाथ जी देख रहे थे और उस बूढ़े वानर अर्थात हनुमान जी को कहते हैं, तुम यह क्या कर रहे हो, यहां क्या बना रहे हो, जब प्यास लगती है, तब कुआं नहीं खोदा जाता, तुम्हें अपने घर का पहले से ही इंतजाम कर लेना चाहिए था।
यह सुनकर हनुमान जी उनसे पूछते हैं कि आप कौन हैं, इस पर मच्छिंद्रनाथ जी कहते हैं कि मैं एक सिद्ध पुरुष हूं और मुझे मृत्यु शक्ति प्राप्त है। यह सुनकर हनुमान जी सोचते हैं कि मच्छिंद्रनाथ जी की शक्ति की परीक्षा लेने का यह सही समय है और हनुमान जी जानबूझकर मच्छिंद्रनाथ जी को कहते हैं कि हनुमान जी से श्रेष्ठ और बलवान योद्धा सारे संसार में कोई नहीं है और कुछ समय तक मैंने उनकी सेवा की थी, इस कारण उन्होंने प्रसन्न होकर अपनी शक्ति का 1% मुझे दे दिया था, अगर आपमें इतनी शक्ति है तो आप मुझसे युद्ध करें और मुझे युद्ध में हराये अन्यथा स्वयं को योगी कहना छोड़ दें, मछिंद्रनाथ जी ने हनुमान जी की चुनौती स्वीकार कर ली और युद्ध की शुरुआत हो जाती है
हनुमान जी हवा में उड़ते हैं और मच्छिंद्रनाथ जी समझे, उससे पहले ही एक के पीछे एक पर्वत उनकी और फेंक देते हैं, पर्वतों को अपनी ओर आता देख, मच्छिंद्रनाथ जी मंत्रों की शक्ति का प्रयोग करते हैं और सारे पर्वतों को आसमान में ही स्थिर कर देते हैं और उन्हें अपने मूल स्थान पर भेज देते हैं।
यह देख हनुमान जी क्रोधित होते हैं और उन्होंने वहां का सबसे बड़ा पर्वत अपने हाथ में उठा लिया और उसे उठाकर मछिंद्रनाथ जी के ऊपर फेंकने के लिए आसमान में ऊपर की ओर उड़ जाते हैं, यह देखते ही मछिंद्रनाथ जी समुद्र की पानी की कुछ बूंदें अपने हाथ में लेते हैं और उस पर्वत पर वातआकर्षण मंत्र का प्रयोग करते हैं और उस पानी की बूंदों को हनुमान जी की तरफ फेंक देते हैं, बूंदों का स्पर्श होते ही हनुमान जी आसमान में ही स्थिर हो जाते हैं और उनका शरीर हलचल करने में असमर्थ हो जाता है। मंत्र के कारण कुछ समय के लिए हनुमान जी की सारी शक्तियां शिथिल हो जाती हैं।
इस वजह से हनुमान जी उस पर्वत का भार उठाने में भी असमर्थ हो जाते हैं और वह दर्द के मारे तड़पने लगते हैं। यह देखकर हनुमान जी के पिता वायुदेव डर जाते हैं और जमीन पर आकर मछिंद्रनाथ जी से हनुमान जी को क्षमा करने की प्रार्थना करने लगते हैं। वायुदेव की प्रार्थना पर मच्छिंद्रनाथ जी ने हनुमान जी को मुक्त कर दिया। तभी हनुमान जी अपने मूल स्वरुप में आते हैं और मछिंद्रनाथ जी से कहते हैं कि मैं जानता था कि आप नारायण के अवतार हैं, फिर भी आपकी शक्ति की परीक्षा लेने की चेष्टा कर बैठा, कृपया मुझे माफ कर दे, यह सुनकर मछिंद्रनाथ जी हनुमान जी को माफ कर देते हैं।

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