कृषि कानून फिर लाएंगे मोदी | Farmers bill | Farmer's Protest | Narendra Modi

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कृषि कानून फिर लाएंगे मोदी | Farmers bill | Farmer's Protest | Narendra Modi

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जिन तीन कृषि कानून को 4 राज्यों को चुनाव को देखते हुए पीएम मोदी ने वापस लेने की घोषणा की थी, वे उसे फिर से वापस लाने जा रहे हैं, यह अटकल इसलिए लगाई जा रही है, क्योंकि एक तरफ तो सरकार ने किसानों से किया वादा अभी तक पूरा नहीं किया है, दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने कृषि कानून को लेकर जो कमेटी बनाई थी, उसने साफ कर दिया है, कि 85 प्रतिशत किसान संगठन उन कानूनों को रद करने के पक्ष में नहीं थे। यह रिपोर्ट भी उस वक्त आई है, जब पांच राज्यों के चुनाव खत्म हो चुके हैं और चार राज्यों में भाजपा सरकार बना चुकी है। हालांकि इस बात की आशंका पहले से जताई जा रही थी, कि कानून वापस लेने की घोषणा केवल चुनावी स्टंट है, चुनावों में भाजपा को उन इलाकों में भी जीत मिली है, जहां कृषि कानून का खासा असर था, इसलिए भी सरकार को यह बात समझ आ गई है, कि अब सरकार का विरोध किसानों के बीच खत्म हो चुका है, दूसरी तरफ किसान संगठन भी एमएसपी और केस वापसी जैसी मांगों को लेकर नए सिरे से आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
कानूनों की समीक्षा करने और उस पर सभी पक्षों की राय जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के एक सदस्य ने यह दावा किया है। उनका कहना है कि समिति भी कानूनों को पूरी तरह से रद करने के पक्ष में नहीं थी और उसमें सुधार के लिए कुछ सुझाव दिए थे, जिसमें विशेष कीमत पर फसलों की खरीद राज्यों पर छोड़ने और आवश्यक वस्तु अधिनियम को रद करना शामिल था।
तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट जारी करते हुए उसके एक सदस्य और पुणे के किसान नेता अनिल घनवट ने कहा कि कानूनों को रद किए जाने पर ज्यादातर किसान संगठनों ने निराशा जताई है। घनवट ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को तीन बार पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने का बाद वह स्वयं इसे जारी कर रहे हैं। रिपोर्ट जारी करते समय प्रेस कांफ्रेंस में समिति दो अन्य सदस्य कृषि अर्थशास्त्री व कृषि लागत व मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन अशोक गुलाटी और इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डा. प्रमोद कुमार जोशी उपस्थित नहीं थे।
समिति ने तीनों कृषि कानूनों में कुछ सुधार के सुझाव के साथ सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट 19 मार्च, 2021 को सौंपी थी। समिति ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लीगल करने का अधिकार राज्यों को सौंपने की सिफारिश की थी। यह भी कहा था कि एमएसपी को कानूनी रूप देने की किसान संगठनों की मांग तार्किक नहीं है और उसे लागू करना भी मुश्किल है। समिति ने कहा था कि अभी जो 23 फसल एमएसपी के दायरे में हैं उन्हीं की खरीद के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं।
समिति ने आवश्यक वस्तु अधिनियम को रद करने की सिफारिश करते हुए समिति ने कहा था कि इसके चलते किसानों को हर साल तीन लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है। साथ ही किसानों को सरकारी मंडियों से बाहर निजी कंपनियों को अपने अनाज बेचने की अनुमति देने की राय दी थी।
प्रेस कांफ्रेंस में घनवट ने कहा कि उनकी 3.83 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 73 किसान संगठनों से सीधी अथवा वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बात हुई थी। इनमें से 85.7 प्रतिशत यानी 61 संगठनों ने तीनों कानूनों का समर्थन किया था, जिनमें कुल 3.3 करोड़ किसान शामिल थे। मात्र 51 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 13.3 प्रतिशत यानी चार संगठन इसके विरोध में थे। 3.6 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले सात संगठन इन कानूनों के कुछ प्रविधानों में संशोधन के पक्षधर थे।
घनवट ने कहा कि इन कानूनों के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले प्रदर्शन करने वाले 40 किसान संगठनों ने अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी थी। उनसे बार-बार अपनी राय या सुझाव देने का आग्रह किया गया था।
घनवट ने कहा कि अब कानूनों को रद कर दिया गया है, इसलिए समिति की सिफारिश का कोई मतलब नहीं रह गया है। परंतु, यह रिपोर्ट कृषि क्षेत्र के नीति निर्माताओं के साथ किसानों के लिए काफी अहम होगी।
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