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  • Xpose News
  • 2019-11-24
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हकीकत या फसाना भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है काशी
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हकीकत या फसाना भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है काशी

काशी भगवान भोले नाथ की नगरी है जिसका शाब्दिक अर्थ चमकना है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने काशी को कामधेनु का नाम दिया। सबसे प्राचीन सप्तपुरियों में से एक होने के कारण यह मोक्षदायिनी है। इसकी सबसे खास विशेषता है कि यह भारत की आत्मा गंगा के किनारे बसा हुआ है। विश्व के सबसे प्राचीन एवं जीवंत शहरों में से एक है। काशी के कण-कण में भगवान शिव विराजमान हैं। एक से एक आपदाएं व प्रलय आईं परंतु इसका विनाश न हुआ। इस पवित्र नगरी की प्राचीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब ग्रीस का एथेंस शहर बसाने का ख्याल भी किसी के मन में नहीं आया था, उस समय भी काशी नगरी अस्तित्व में थी। यहां तक कि रोम और मिस्र भी नहीं थे, तब भी काशी थी। काशी का एक अन्य नाम बनारस भी है। हर शोक, संताप, पाप और रोग का नाश करने वाली तथा सब प्रकार के कल्याणों की खान काशी को कहा गया है।



काशी शहर की रचना
काशी शहर की रचना को बारीकी से देखने पर ज्ञात होता है कि इस शहर का निर्माण एक यंत्र के रूप में कराया गया है। इसका आकार, रूप और वास्तु हू-ब-हू किसी यंत्र जैसा लगता है। यहां यंत्र से अभिप्राय: एक मशीन से है, जो एक निर्धारित परिपाटी पर कार्य करती है। सूक्ष्मता से देखा जाए तो हम पाते हैं कि पृथ्वी स्वयं एक यंत्र की तरह कार्य करती है।

यंत्र प्रणाली में त्रिकोण सबसे मूल यंत्र है। मशीनों का निर्माण कार्यों को सहज करने के लिए किया गया है। एक शहर को किसी यंत्र के स्वरूप में इससे पहले कभी नहीं बनाया गया। यही वजह हैकि इसे 'असाधारण यंत्र' कहा जाता है। इस यंत्र का संचालन एक विशाल मानव शरीर की तरह स्वत: होता है, इसका सक्रिय होना आवश्यक नहीं।



सौरमंडल का छोटा स्वरूप
काशी नगरी की यह विशेषता है कि इसकी रचना एक सौरमंडल की तरह की गई है। जैसा कि सर्वविदित है कि हमारा सौरमंडल देखने में एक कुम्हार के चाक जैसा लगता है। सूर्य से पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुनी है। हम सबके शरीर में 114 चक्र हैं, जिनमें से 112 हमारे भौतिक शरीर में ही हैं, परंतु सामान्य रूप से केवल 108 चक्र ही सक्रिय हैं। जो व्यक्ति अपने शरीर के 108 चक्रों को सक्रिय कर लेता है, उसके शरीर के शेष 4 चक्र अपने आप सक्रिय हो जाते हैं, जिन्हें सक्रियता देने के लिए 108 तरह की योग प्रणालियां हैं। बनारस शहर को इस तरह बसाया गया है जैसे यह पंचतत्वों से बना हो। काशी नगरी की परिधि पांच कोस है।

वास्तुशास्त्रियों के अनुसार काशी नगरी की ज्यामिति कई वृतों की परिक्रमा करने जैसी है। यह सकेंद्रित वृत है जिसकी सबसे बाहर के वृत्त की परिक्रमा की माप 168 मील है। भगवान शिव की नगरी की रचना इसी तरह बनाई गई है, इस रचना का छोटा प्रारूप विश्वनाथ मंदिर है। वास्तविक विश्वनाथ मंदिर की बनावट कुछ इसी प्रकार की है। प्राचीन काल में इसका मूल रूप अत्यंत जटिल था, जो समय के साथ नहीं रहा।

यहां के कुल शक्ति स्थलों की संख्या 72 हजार है। एक मानव शरीर में नाड़ियों की संख्या भी इतनी ही होती है। इस शहर की निर्माण प्रक्रिया मानव शरीर के ब्रह्मांड के संपर्क में आने के जैसी है। यह ब्रह्मंडीय संरचना और मानवीय शरीर दोनों के मिलन का उदाहरण है। सहज रूप में देखें तो एक शहर के रूप में एक यंत्र है। साथ ही यह भी कहा जा सकता है, कि इसके माध्यम से ब्रह्मांड की संरचना से जुडऩे के लिए एक छोटे ब्रह्मांड की रचना की गई है। दोनों को आपस में जोडऩे के लिए 468 मंदिरों का निर्माण किया गया है। इसमें चंद्र के 13 माह, 9 ग्रह, 4 दिशाएं, इन सभी का गुणन फल 468 है। इन मंदिरों में 54 मंदिर भगवान भोलेनाथ और इतने ही (54) मंदिर शक्ति या देवी मंदिर हैं।

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