कुलनाग शक्ति का नवनाग सहित पूजन विधि।

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नागपंचमी पर किया गया कुलनाग पूजन व नवनाग पूजन कुंडली में उपस्थित कई दुर्योगों का नाश करता है।राहु केतु के प्रभाव को शुभ करता है व नाग श्राप , पितृ शाप आदि दोषों से भी मुक्ति प्रदान करता है। अतः सभी सनातनी बंधुओं को नागपंचमी पर्वकाल पर अवश्य करना चाहिए कुलनाग सहित नवनाग पूजन।

#पुजन विधि
पहले गणेश जी और गौरी जी का पुजन करें
नंदी और स्कंद जी का पुजन
फिर शिवजी का पुजन

नव नाग दशोपचार पुजन
1.आवाहन
2.आसन
3.आचमन
4.स्नान - दुध और जल
5.वस्त्र उपवस्त्र - रक्षा सुत्रत
6.पुष्प
7.नैवेद्य भोग
8.धुप द्वीप
9.आरती
10. दक्षिणा

शिवजी सहित नवनाग कुल मंडल तथा दिशा
मध्य में #शिव परिवार सहित कुलनाग/ अनंत नाग
पुर्व - शेषनाग
अग्निकोण- वासुकी
दक्षिण - तक्षक
नैऋत्य - कालिया अथवा कर्कोटक या दोनों
पश्चिम - शंखपाल
वायव्य कोण - धार्तराष्ट्र
उत्तर - कंबल
ईशानकोण - पद्मनाभ

नवनाग गायत्री - नवकुलाय विद्महे विषदंताय धीमही तन्नो सर्पः प्रचोदयात्।

नाग गायत्री- ॐ भुजंगेशाय विद्महे सर्पराजाय धीमही तन्नो नागः प्रचोदयात्।

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।। श्री सर्प सूक्त का पाठ ।।

1- ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा: ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य: ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा
2- कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
3- सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
4- पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
5- ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन: ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
6- रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला: ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

इति श्री सर्प सूक्त पाठ समाप्त।।


ll नवनाग स्तोत्र ll

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत
ll इति श्री नवनागस्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll

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