विष्णु प्रतिमा विवाह क्यों किया जाता है? विष्णु प्रतिमा विवाह की विधि क्या है?#vishnu #vivah #kumbh
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विष्णु प्रतिमा विवाह एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है, जो मुख्य रूप से उन कन्याओं के लिए किया जाता है जिनकी कुंडली में मंगल दोष या वैधव्य दोष होता है, या विवाह में किसी प्रकार की बाधा आ रही हो। इस विवाह को विष्णु विवाह, नारायण विवाह, विष्णु प्रतिमा विवाह कहा जाता है। यह एक प्रतीकात्मक विवाह होता है, जिसमें भगवान विष्णु की प्रतिमा को दूल्हा मानकर कन्या का विवाह उनसे कराया जाता है।
विष्णु प्रतिमा विवाह क्यों किया जाता है?
यदि कन्या की कुंडली में मंगल दोष हो, जिससे वैवाहिक जीवन में समस्याएं या तलाक का योग बन रहा हो, तो विष्णु प्रतिमा विवाह के माध्यम से इस दोष को शांत किया जाता है। माना जाता है कि विष्णु से पहला विवाह होने से मंगल दोष का कुप्रभाव समाप्त हो जाता है।
कुछस्थितियों में, कन्या की कुंडली में वैधव्य दोष होने पर भी यह विवाह कराया जाता है, ताकि भविष्य में होने वाले पति को दीर्घायु प्राप्त हो।
यदि कन्या के विवाह में लगातार देरी हो रही हो या रिश्ते तय नहीं हो पा रहे हों, तो इस अनुष्ठान को करने से विवाह संबंधी बाधाएं दूर होती हैं और शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।
इस पूजा से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और शुभता आती है।
विष्णु प्रतिमा विवाह की विधि:
हालांकि इस अनुष्ठान की विधि किसी योग्य पंडित या गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए, फिर भी सामान्य रूप से आपको यहां विधि बता रहे हैं।
सर्वप्रथम दीप पूजन स्वस्ति वाचन आदि करने के बाद कन्या के माता-पिता या अभिभावक द्वारा विवाह का संकल्प लिया जाता है, जिसमें कन्या की कुंडली में मौजूद दोषों का उल्लेख करते हुए भगवान विष्णु से उनके निवारण की प्रार्थना की जाती है।
इसके बाद गणेश, गौरी, कलश, सप्तघृतमात्रिका , षोडश मात्रिका, नवग्रह, ओंकार, और भगवान विष्णु की एक स्वर्ण प्रतिमा या अन्य धातु की विष्णु प्रतिमा का स्थापना करें।
भगवान भगवान गणेश आदि भगवान विष्णु की प्रतिमा का विधिवत पूजन किया जाता है, जिसमें उन्हें पीले वस्त्र, पुष्प, चंदन, अक्षत आदि अर्पित किए जाते हैं।
वैवाहिक रस्में: यह विवाह सामान्य विवाह की तरह ही किया जाता है, जिसमें कन्या और विष्णु प्रतिमा का सभी वैवाहिक विधि के द्वारा विवाह कराया जाता है। इस दौरान मंत्रोच्चारण और वैदिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है।
कन्यादान के लिए श्रद्धानुसार वस्त्र,अन्न, बर्तन, सोना, चांदी, दक्षिणा आदि देना चाहिए।
विवाहसंपन्न होने के बाद, भगवान विष्णु की प्रतिमा को किसी जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है। कुछ स्थानों पर प्रतिमा को ब्राह्मण को दान भी किया जाता है।
लेकिन उपयुक्त यही है कि आप जल में प्रवाहित कर दें।
वस्त्र त्याग: अनुष्ठान के बाद कन्या को अपने पहने हुए वस्त्र त्याग देने चाहिए और दूसरे कपड़े पहनने चाहिए।
छाया पात्र: कुछ विद्वान ब्राह्मण कांसे की थाली में घी भरकर कन्या को अपना मुंह देखने को कहते हैं, जिसे छाया पात्र कहा जाता है।
ध्यान रखने योग्य बातें:
यह अनुष्ठान पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ किया जाना चाहिए।
अनुष्ठान के दौरान शुद्धता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
किसी योग्य गुरु या पंडित के मार्गदर्शन में ही यह अनुष्ठान करवाना चाहिए।
सामान्यतः, यह विवाह तब किया जाता है जब कन्या का विवाह किसी वर के साथ तय हो गया हो, ताकि उसके वास्तविक विवाह से पहले दोषों का निवारण हो सके।
यह एक प्रतीकात्मक विवाह होता है, जिसके बाद कन्या का विवाह अपने वास्तविक वर के साथ किया जा सकता है। यह मान्यता है कि इस अनुष्ठान के बाद कन्या पर से दोषों का प्रभाव समाप्त हो जाता है और उसका वैवाहिक जीवन सुखी होता है।
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जय श्री सीताराम
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