Logo video2dn
  • Сохранить видео с ютуба
  • Категории
    • Музыка
    • Кино и Анимация
    • Автомобили
    • Животные
    • Спорт
    • Путешествия
    • Игры
    • Люди и Блоги
    • Юмор
    • Развлечения
    • Новости и Политика
    • Howto и Стиль
    • Diy своими руками
    • Образование
    • Наука и Технологии
    • Некоммерческие Организации
  • О сайте

Скачать или смотреть बचपन - कृष्णा सोबती | BACHPAN | HINDI | CBSE | CLASS 6 | CHAPTER 2 | बसंत | NCERT |

  • SONU HINDI ACADEMY
  • 2022-09-25
  • 1375
बचपन - कृष्णा सोबती | BACHPAN | HINDI  | CBSE | CLASS 6 | CHAPTER 2 | बसंत | NCERT |
educationhindicbseigcseibicseintermediate10thclassliteraturencertscertschoolcollege.universityबचपनकृष्णा सोबतीBACHPANHINDICBSECLASS 6CHAPTER 2बसंतNCERTबचपन (कृष्णा सोबती)बचपन संस्मरणकक्षा 6 हिंदीबचपन class 6बचपन3 class 6th chapter 2पाठ बचपनवसंत भाग 1ncert class 6 hindi chapter बचपनclass 6 hindi chapter 2ncert class 6 hindi chapter 2full explanation class 6 hindiclass 6 chapter 26th class hindi cbse
  • ok logo

Скачать बचपन - कृष्णा सोबती | BACHPAN | HINDI | CBSE | CLASS 6 | CHAPTER 2 | बसंत | NCERT | бесплатно в качестве 4к (2к / 1080p)

У нас вы можете скачать бесплатно बचपन - कृष्णा सोबती | BACHPAN | HINDI | CBSE | CLASS 6 | CHAPTER 2 | बसंत | NCERT | или посмотреть видео с ютуба в максимальном доступном качестве.

Для скачивания выберите вариант из формы ниже:

  • Информация по загрузке:

Cкачать музыку बचपन - कृष्णा सोबती | BACHPAN | HINDI | CBSE | CLASS 6 | CHAPTER 2 | बसंत | NCERT | бесплатно в формате MP3:

Если иконки загрузки не отобразились, ПОЖАЛУЙСТА, НАЖМИТЕ ЗДЕСЬ или обновите страницу
Если у вас возникли трудности с загрузкой, пожалуйста, свяжитесь с нами по контактам, указанным в нижней части страницы.
Спасибо за использование сервиса video2dn.com

Описание к видео बचपन - कृष्णा सोबती | BACHPAN | HINDI | CBSE | CLASS 6 | CHAPTER 2 | बसंत | NCERT |

बचपन - कृष्णा सोबती

मैं तुम्हें अपने बचपन की ओर ले जाऊँगी।

मैं तुमसे कुछ इतनी बड़ी हूँ कि तुम्हारी दादी भी हो सकती हूँ, तुम्हारी नानी भी। बड़ी बुआ भी-बड़ी मौसी भी। परिवार में मुझे सभी लोग जीजी कहकर ही पुकारते हैं।

हाँ, मैं इन दिनों कुछ बड़ा बड़ा यानी उम्र में सयाना महसूस करने लगी हूँ। शायद इसलिए कि पिछली शताब्दी में पैदा हुई थी। मेरे पहनने - ओढ़ने में भी काफ़ी बदलाव आए हैं। पहले मैं रंग-बिरंगे कपड़े पहनती रही हूँ। नीला जामुनी-ग्रे-काला-चॉकलेटी। अब मन कुछ ऐसा करता है कि सफ़ेद पहनो। गहरे नहीं, हलके रंग। मैंने पिछले दशकों में तरह-तरह की पोशाकें पहनी हैं। पहले फ्रॉक, फिर निकर-वॉकर, स्कर्ट, लहँगे, गरारे और अब चूड़ीदार और घेरदार कुर्ते।

बचपन के कुछ फ्रॉक तो मुझे अब तक याद हैं।

हलकी नीली और पीली धारीवाला फ्रॉक। गोल कॉलर और बाज़ू पर भी गोल कफ़। एक हलके गुलाबी रंग का बारीक चुन्नटोंवाला घेरदार फ्रॉक। नीचे गुलाबी रंग की फ्रिल।

उन दिनों फ्रॉक के ऊपर की जेब में रूमाल और बालों में इतराते रंग-बिरंगे रिबन का चलन था।

लेमन कलर का बड़े प्लेटोंवाला गर्म फ्रॉक जिसके नीचे फ़र टँकी थी।

दो ट्यूनिक भी याद हैं। एक चॉकलेट रंग का और अंदर की कोटी प्याज़ी। दूसरा ग्रे और उसके साथ सफ़ेद कोटी।

मुझे अपने मोज़े और स्टॉकिंग भी याद हैं!

बचपन में हमें अपने मोज़े खुद धोने पड़ते थे। वह नौकर या नौकरानी को नहीं दिए जा सकते थे। इसकी सख्त मनाही थी।

हम बच्चे इतवार की सुबह इसी में लगाते। धो लेने के बाद अपने-अपने जूते पॉलिश करके चमकाते। जब जूते कपड़े या ब्रश से रगड़ते तो पॉलिश की चमक उभरने लगती।

सरवर, मुझे आज भी बूट पॉलिश करना अच्छा लगता है। हालांकि अब नयी-नयी किस्म के शू आ चुके हैं। कहना होगा कि ये पहले से कहीं ज्यादा आरामदेह हैं। हमें जब नए जूते मिलते, उसके साथ ही छालों का इलाज शुरू हो जाता।

जब कभी लंबी सैर पर निकलते, अपने पास रुई जरूर रखते। जूता लगा तो रुई मोजे के अंदर हाँ, हमारे - तुम्हारे बचपन में तो बहुत फर्क हो चुका है।

हर शनीचर को हमें ऑलिव ऑयल या कैस्टर ऑयल पीना पड़ता। यह एक मुश्किल काम था। शनीचर को सुबह ही नाक में इसकी गंध आने लगती।

छोटे शीशे के गिलास, जिन पर ठीक खुराक के लिए निशान पड़े रहते, उन्हें देखते ही मितली होने लगती।

मुझे आज भी लगता है कि अगर हम न भी पीते वह शनिवारी दवा तो कुछ ज्यादा बिगड़ने वाला नहीं था। सेहत ठीक ही रहती।

तुम्हें बताऊँगी कि हमारे समय और तुम्हारे समय में कितनी दूरी हो चुकी है। यहाँ तक कि बचपन की दिलचस्पियाँ भी बदल गई हैं।

याद रहे, उन दिनों कुछ घरों में ग्रामोफ़ोन थे, रेडियो और टेलीविजन नहीं थे।

हमारे बचपन की कुलफ़ी आइसक्रीम हो गई है। कचौड़ी समोसा, पैटीज में बदल गया है। शहतूत और फ़ाल्से और खसखस के शरबत कोक-पेप्सी में।

उन दिनों कोक नहीं, लेमनेड, विमटो मिलती थी।

शिमला और नयी दिल्ली में बड़े हुए बच्चों को वेंगर्स और डेविको रेस्तरों की चॉकलेट और पेस्ट्री मजा देनेवाली होती। हम भाई-बहनों की ड्यूटी लगती शिमला माल से ब्राउन ब्रेड लाने की।

हमारा घर माल से ज्यादा दूर नहीं था। एक छोटी-सी चढ़ाई और गिरजा मैदान पहुँच जाते। वहाँ से एक उतराई उतरते और माल पर। कन्फेक्शनरी काउंटर पर तरह-तरह की पेस्ट्री और चॉकलेट की खुशबू मनभावनी!

हमें हफ्ते में एक बार चॉकलेट खरीदने की छूट थी। सबसे ज्यादा मेरे पास ही चॉकलेट-टॉफ़ी का स्टॉक रहता। मैं चॉकलेट लेकर खड़े खड़े कभी न खाती घर लौटकर साइडबोर्ड पर रख देती और रात के खाने के बाद बिस्तर में लेटकर मजा ले ले खाती।

शिमला के काफल भी बहुत याद आते हैं। खट्टे-मीठे कुछ एकदम लाल, कुछ गुलाबी, रसभरी, कसमल सोचकर ही मुँह में पानी भर आए। चेस्टनट एक और गजब की चीज। आग पर भूने जाते और फिर छिलके उतारकर मुँह में।

चने जोर गरम और अनारदाने का चूर्ण। हाँ, चने जोर गरम की पुड़िया जो तब थी. वह अब भी नज़र आती है। पुराने कागजों से बनाई हुई इस पुड़िया में निरा हाथ का कमाल है। नीचे से तिरछी लपेटते हुए ऊपर से इतनी चौड़ी कि चने आसानी से हथेली पर पहुँच जाएँ। एक वक्त था जब फ़िल्म का गाना - चना जोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार, चना जोर गरम - उन दिनों स्कूल के हर बच्चे को आता था।

कुछ बच्चे पुड़िया पर तेज़ मसाला बुरकवाते। पूरा गिरजा मैदान घूमने तक यह पुड़िया चलती। एक-एक चना-पापड़ी मुँह में डालने और कदम उठाने में एक खास ही लय-रफ़्तार थी।

छुटपन में हमने शिमला रिज पर बहुत मज़े किए हैं। घोड़ों की सवारी की है। शिमला के हर बच्चे को कभी-न-कभी यह मौका मिल ही जाता था।

हम जाने क्यों घोड़ों को कुछ कमतर करके समझते। उन पर हँसते थे। ननिहाल के घोड़े खूब हृष्ट-पुष्ट और खूबसूरत। उनकी बात फिर कभी।

शाम को रंग-बिरंगे गुब्बारे। सामने जाखू का पहाड़। ऊँचा चर्च। चर्च की घंटियाँ बजतीं तो दूर-दूर तक उनकी गूँज फैल जाती। लगता, इसके संगीत से प्रभु ईशू स्वयं कुछ कह रहे हैं।

सामने आकाश पर सूर्यास्त हो रहा है। गुलाबी सुनहरी धारियाँ नीले आसमान पर फैल रही हैं। दूर-दूर फैले पहाड़ों के मुखड़े गहराने लगे और देखते-देखते बत्तियाँ टिमटिमाने लगीं। रिज पर की रौनक और माल की दुकानों की चमक के भी क्या कहने! स्कैंडल पॉइंट की भीड़ से उभरता कोलाहल ।

सरवर, स्कैंडल पॉइंट के ठीक सामने उन दिनों एक दुकान हुआ करती थी, जिसके शोरूम में शिमला-कालका ट्रेन का मॉडल बना हुआ था। इसकी पटरियाँ-उस पर खड़ी छोटे-छोटे डिब्बों वाली ट्रेन। एक ओर लाल टीन की छतवाला स्टेशन और सामने सिग्नल देता खंबा-थोड़ी-थोड़ी दूर पर बनीं सुरंगें!

Комментарии

Информация по комментариям в разработке

Похожие видео

  • О нас
  • Контакты
  • Отказ от ответственности - Disclaimer
  • Условия использования сайта - TOS
  • Политика конфиденциальности

video2dn Copyright © 2023 - 2025

Контакты для правообладателей [email protected]