#पवार (पंवार) वंश का उदय
पवार, (पंवार) (परमार) वंश का उदय मध्यकालीन भारत में एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है, जिसका प्रभाव मालवा, गढ़वाल, राजस्थान, गुजरात और अन्य क्षेत्रों में देखा गया। पंवार वंश, जिसे परमार वंश के नाम से भी जाना जाता है, राजपूतों के अग्निवंश समूह का हिस्सा माना जाता है। इस वंश का उदय और विस्तार निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
#1. उद्गम और उत्पत्ति
मिथक और कथा: परमार वंश की उत्पत्ति के बारे में मिथकीय कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार यह वंश आबू पर्वत पर ऋषि वशिष्ठ द्वारा अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ। इस कथा का उल्लेख परमार राजा सिंधुराज के दरबारी कवि पद्मगुप्त परिमल की रचना नवसाहसांकचरित में मिलता है। इस कथा के अनुसार, वशिष्ठ ने विश्वामित्र के खिलाफ युद्ध में सहायता के लिए अग्निकुंड से एक वीर पुरुष का निर्माण किया, जिसे परमार (शत्रु को मारने वाला) नाम दिया गया।
ऐतिहासिक आधार: ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, परमार वंश की स्थापना 9वीं शताब्दी में मालवा क्षेत्र में हुई, जिसके प्रारंभिक शासक उपेंद्र या कृष्णराज माने जाते हैं। वे शुरू में राष्ट्रकूटों के सामंत थे।
#2. मालवा में परमार वंश का उदय
प्रारंभिक शासक: परमार वंश ने 9वीं या 10वीं शताब्दी में मालवा और आसपास के क्षेत्रों में शासन शुरू किया। सियाका (लगभग 949-972 ई.) ने राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेत पर आक्रमण कर परमारों को एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में स्थापित किया।
मुंज और भोज का युग: सियाका के उत्तराधिकारी वाक्पति मुंज ने मालवा को शक्तिशाली बनाया और दक्षिणी राजपूताना के हिस्सों पर कब्जा किया। इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक राजा भोज (1000-1055 ई.) था, जिसने मालवा को सांस्कृतिक और सैन्य दृष्टि से चरम पर पहुंचाया। भोज ने भोजपुर शहर और भोजशाला की स्थापना की, और उन्हें कविराज के नाम से भी जाना जाता है।
@#राजधानी: धारा (वर्तमान धार, मध्य प्रदेश) इस वंश की प्रमुख राजधानी थी
#3 गढ़वाल में पंवार वंश
कनकपाल और स्थापना: गढ़वाल (वर्तमान उत्तराखंड) में पंवार वंश की स्थापना कनकपाल ने 888 ई. में की। कनकपाल, जो संभवतः गुर्जर प्रदेश (मालवा या गुजरात) से आए थे, ने चांदपुर गढ़ (चमोली) के शासक भानुप्रताप की पुत्री से विवाह किया और दहेज में चांदपुर परगना प्राप्त किया। यहीं से उन्होंने गढ़वाल में परमार वंश की नींव रखी।
विस्तार: कनकपाल के बाद इस वंश ने गढ़वाल के 52 गढ़ों को एकीकृत कर एक शक्तिशाली राज्य बनाया। अजयपाल को गढ़वाल का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है, जिसने सभी गढ़ों पर एकछत्र शासन स्थापित किया।
#4. अन्य क्षेत्रों में विस्तार
राजस्थान और गुजरात: परमार वंश की शाखाएं आबू, किराडू, और जालोर में भी स्थापित हुईं। आबू के परमारों का शासन 950 ई. के आसपास वाक्पतिराज से शुरू हुआ। किराडू में 11वीं-12वीं शताब्दी में सोच्छराज और सोमेश्वर जैसे शासकों ने शासन किया।
मालवा के परमारों की अन्य शाखाएं: मालवा के परमार राजा उदयादित्य के पुत्र जगदेव पंवार अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। इस वंश ने मालवा, उज्जयिनी, और आबू पर्वत तक शासन किया।
5. सांस्कृतिक योगदान
कला और साहित्य: परमार वंश ने कला, साहित्य, और स्थापत्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। राजा भोज ने संस्कृत साहित्य को प्रोत्साहन दिया और कई ग्रंथों की रचना की। उदयादित्य ने उदयपुर में नीलकंठ शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
कुलदेवी और धार्मिकता: परमारों की कुलदेवी सच्चियाय माता थी, जिनका मंदिर जोधपुर के पास ओसियां में स्थित है।
विवाद और मतभेद
#संस्थापक विवाद: गढ़वाल में पंवार वंश के संस्थापक के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ कनकपाल को संस्थापक मानते हैं, जबकि अन्य अजयपाल को इसका श्रेय देते हैं। हालांकि, कनकपाल के पक्ष में अधिक प्रमाण उपलब्ध हैं।
#नामकरण:# परमार शब्द का अपभ्रंश पंवार या पवार हुआ, जो स्थानीय भाषाओं और मुगलकालीन प्रभाव से हुआ।
निष्कर्ष
पंवार (परमार) वंश का उदय 9वीं शताब्दी में मालवा और गढ़वाल में एक शक्तिशाली राजपूत वंश के रूप में हुआ। इस वंश ने न केवल सैन्य शक्ति बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। मालवा में राजा भोज और गढ़वाल में कनकपाल और अजयपाल जैसे शासकों ने इस वंश को गौरवशाली बनाया। हालांकि, 14वीं शताब्दी में मालवा में और 19वीं शताब्दी में गढ़वाल में इसका पतन हुआ, लेकिन इस वंश की विरासत आज भी उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, और राजस्थान में देखी जा सकती है।
परमार वंश के शासकों की सूची सीरीयल नम्बर। शासक शासनकाल (ई.पू.)
1 परमार कल्पित
2 उपेंद्र कृष्णराजा 9वीं शताब्दी के प्रारंभ में
3 वैरीसिंह (प्रथम) 9वीं शताब्दी के प्रारंभ में
4 सियाका (I) 9वीं शताब्दी के मध्य
5 वाक्पतिराज (प्रथम) 9वीं शताब्दी के अंत से 10वीं शताब्दी के प्रारंभ तक
6 वैरीसिंह (द्वितीय) 10वीं शताब्दी के मध्य
7 सियाका (द्वितीय) 940–972
8 वाक्पतिराज (द्वितीय) उर्फ मुंज 972–990
9 सिंधुराजा 990–1010
10 भोज 1010–1055
11 जयसिंह प्रथम 1055–1070
12 उदयादित्य 1070–1086
13 लक्ष्मदेव 1086–1094
14 नरवर्मन 1094–1133
15 यशोवर्मन 1133–1142
16 जयवर्मन प्रथम 1142–1143
17 'बल्लाला' नामक एक अपहर्ता और बाद में सोलंकी राजा कुमारपाल के अधीन (1143 से 1175 ई. तक) का अंतराल 1143–1175
18 विंध्यवर्मन 1175–1194
19 सुभटवर्मन 1194–1209
20 अर्जुनवर्मन प्रथम 1210–1215
21 डेवपाला 1215/1218–1239
22 जैतुगीदेव 1239–1255
23 जयवर्मन द्वितीय 1255–1274
24 अर्जुनवर्मन द्वितीय 1274–1285
25 भोज द्वितीय 1285–1301
26 महालकदेव 1301–1305
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