Nirmal Verma को पढ़ने के लिए ही मुझे जन्म लेना पड़ा! Gagan Gill ने निर्मल वर्मा की रचनाओं पर जो कहा

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- मुझे निर्मल वर्मा को पढ़ने के लिए जन्म लेना पड़ा!
- मनुष्य का बदलना आसान होता तो धर्म की ज़रूरत नहीं पड़ती!
- लेखक का असली जीवन उसके अंदर ही होता है!
- आपका अकेलापन कोई और दूर नहीं कर सकता!
- निर्मल वर्मा ने अपनी लेखनी से विदेश का तिलिस्म तोड़ा!
कहने वाले कहते हैं कि लिखने वाले दुनिया से फ़ना हो जाते हैं मगर उनकी रचनाएं मरा नहीं करतीं, वे ताउम्र जीवित रहती हैं, अपने पाठकों, चाहने वालों के बीच. पर सच तो यह है कि कोई बेहतरीन लेखक इस दुनिया से कभी जाता ही नहीं... और निर्मल वर्मा उन्हीं में से एक हैं. वे अपनी रचनाओं से, कथाओं, उपन्यासों से जिंदा हैं, और यही वजह है कि राजकम प्रकाशन समूह ने जब निर्मल जी की सभी कृतियों को नए स्वरूप में, नई साजसज्जा के साथ पुनर्प्रकाशित हुआ तो, जिनके चलते यह सहज, सुलभ हो पाया उनसे बात करना आवश्यक लगा. इसीलिए आज साहित्य तक के विशेष कार्यक्रम 'शब्द-रथी' में निर्मल जी की जीवनसंगिनी और जानीमानी रचनाकार, कवयित्री गगन गिल मौजूद हैं.
शब्द-रथी रचनाकार से उनकी चर्चित कृति पर चर्चा का कार्यक्रम हैं. पर ऐसा पहली बार हो रहा है, जब इस कार्यक्रम में किसी एक पुस्तक पर नहीं बल्कि निर्मल वर्मा की सभी पुस्तकों पर चर्चा हो रही है, वह भी गगन गिल से. जिन्होंने न जाने कितने रूपों में निर्मल वर्मा के सृजनात्मक रूप को न केवल उन्हीं से जाना बल्कि बहुत बार उनकी सहयात्री भी रहीं. इन
कृतियों में उपन्यास 'एक चिथड़ा सुख', 'रात का रिपोर्टर', 'वे दिन', 'अन्तिम अरण्य', 'लाल टीन की छत' और कहानी संग्रह 'परिंदे', 'सूखा', 'पिछली गर्मियों में', 'जलती झाड़ी', 'कव्वे और काला पानी', 'थिगलियां' और 'बीच बहस में' तथा एक यात्रा- वृत्तांत 'चीड़ों पर चांदनी' शामिल हैं.
तो साहित्य तक पर सुनिए गगन गिल संग वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय की ये खास बातचीत.

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