राधा नाम का शास्त्रों में वर्णन 🙏🏻.

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जीव तत्व , माया तत्व और ईश्वर तत्व या कृष्ण तत्व
इन तीन तत्वों के मिश्रण से कई सारे तत्व बनते हैं जैसे - गुरु तत्व , शिव तत्व , धाम तत्व , नाम तत्व , भक्ति तत्व ,प्रेम तत्व और राधा तत्व |
राधा तत्व को जानने से पहले कृष्ण तत्व जानना जरुरी है |
क्योंकि राधा तत्व को कृष्ण तत्व के बिना नहीं समझा जा सकता |
पहले कृष्ण तत्व को समझते हैं -

ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः।अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणम्॥
ब्रह्मसंहिता पाँच वे अध्याय का पहला श्लोक
ब्रह्म जी कहते है मैं उस भगवान कृष्ण की आराधना करता हूँ जो सत्-चित्-आनन्द है। उनका कोई आदि और अन्त नहीं है और वे सभी कारणों के कारण हैं।"

अब भगवद्गीता में देखते हैं - भगवान स्वयं पुष्टि कर रहे हैं

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥7॥
BG 7.7
हे अर्जुन! मुझसे श्रेष्ठ कोई नहीं है। सब कुछ मुझ पर उसी प्रकार से आश्रित है, जिस प्रकार से धागे में गुंथे मोती।मुझसे बड़ा छोड़ो मेरे कोई बराबर भी नहीं है |

न मे विदु: सुरगणा: प्रभं न महर्षय: ।
अहमदादीर्हि देवानां महर्षिणां च सर्वश: ॥ २॥ Bg 10.2

न तो देवतागण मेरी उत्पत्ति या ऐश्वर्य को जानते हैं और न महर्षिगण ही जानते हैं ,क्योंकि मैं सभी प्रकार से देवताओं और महर्षियों का कारणस्वरूप हूँ अर्थात् उद्गम स्रोत हूँ मुझसे से ३३ कोटि देवता उत्पन्न होते हैं |

न तत्समश्चाभ्यधिकश्च दृश्यते।
परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते ।।
 (श्वेताश्वतरोपनिषद्-6.8) 

"न तो कुछ भी भगवान कृष्ण के बराबर है और न ही कुछ उनसे श्रेष्ठ है।"
अब भगावतम में देखते हैं -

एसबी 10.14.37
प्रपञ्चं निष्प्रपञ्चोऽपि विडम्बायसि भूतले ।
प्रपन्नजनतानन्दसन्दोहं प्रथितुं प्रभो ॥ पी.आर.पी.

मेरे प्रिय स्वामी, यद्यपि आपका भौतिक अस्तित्व से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी आप इस पृथ्वी पर आते हैं और भौतिक जीवन का अनुकरण करते हैं, केवल अपने शरणागत भक्तों के लिए आनंद के विविध रूपों का विस्तार करने के लिए।
और देखो -

10.14.38 bhagwatam
3.2.20 bhagwtm
३.२.२१ भागवात्म
12.13.1 bhagwatm

ये सब श्लोक ख़ुद से भी देख लेना |
अब राधा तत्व की और चलते हैं जो आज का मुख्य विषय है -
ऋग्वेद - यसह पाद रेणुम विलुंठम
परब्रह्म जिनकी चरण धूलि में लेट लगाते हैं वह हैं राधा

एकम ज्योतिर अभूत वेदो राधा माधव रूपकम
यदि परब्रह्म एक ज्योति दो रूप धारण करे तो एक राधा और एक माधव

इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते पिवा त्वस्य गिर्वण :(ऋग्वेद ३. ५ १. १ ० )

ओ राधापति श्रीकृष्ण ! जैसे गोपियाँ तुम्हें भजती हैं वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं। उनके द्वारा सोमरस पान करो।

त्वं नृचक्सम वृषभानुपूर्वी : कृष्नास्वग्ने अरुषोविभाही (ऋग्वेद )

इस मन्त्र में श्री राधा के पिता वृषभानु का उल्लेख किया गया है जो अन्य किसी भी प्रकार के संदेह को मिटा देता है ,क्योंकि वही तो राधा के पिता हैं। 

इस प्रकार से राधा शब्द ऋग्वेद में कई बार आता है | -

यस्या रेणुं   पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त :

                             -(अथर्व वेदीय राधिकोपनिषद )

राधा वह शख्शियत है जिसके कमल वत   चरणों की रज श्रीकृष्ण अपने माथे पे लगाते हैं। 

अब चलते ब्रह्मवैवर्त पुराण में -
राधा से पूछा गया कृष्ण कौन है - मम एक पौरुष्म रूपम गोपिका मन मोहन्मं
कृष्ण मेरा पौरुष रूप है जो गोपिका के मन को मोहित करते हैं |

अन्य पुराणों में भी श्री राधे का वर्णन देखते हैं |

वेदव्यास जी ने श्रीमदभागवतम के अलावा १७ और पुराण रचे हैं इनमें से छ :में श्री राधारानी का उल्लेख है। 

यथा राधा प्रिया विष्णो : (पद्म पुराण )

राधा वामांश संभूता महालक्ष्मीर्प्रकीर्तिता (नारद पुराण ) 

तत्रापि राधिका शश्वत (आदि पुराण )

रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने (मतस्य पुराण १३. ३७ )

राध्नोति सकलान कामान तेन राधा प्रकीर्तित :(देवी भागवत पुराण )

राधोपनिषद में श्री राधा रानी के २८ नामों का उल्लेख है। भागवतम में गोपी ,रमा तथा "श्री " इत्यादि शब्द राधा के लिए ही प्रयुक्त हुए हैं। 

जबकि लोग कहते हैं भागवतम् में राधा नाम कि उल्लेख नहीं मिलता है |

कामयामह एतस्य श्रीमत्पादरज : श्रिय :

कुंचकुंकु मगंधाढयं मूर्ध्ना वोढुम गदाभृत : (श्रीमदभागवतम )

हमें राधा के चरण कमलों की रज चाहिए जिसका कुंकुम श्रीकृष्ण के पैरों से चस्पां है (क्योंकि राधा उनके चरण अपने ऊपर रखतीं हैं ). यहाँ "श्री "राधा के लिए ही प्रयुक्त हुआ है महालक्ष्मी के लिए नहीं। क्योंकि द्वारिका की रानियाँ तो महालक्ष्मी की ही वंशवेळ हैं। वह महालक्ष्मी के चरण रज के लिए उतावली क्यों रहेंगी। 

रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिर्यथार्भक : स्वप्रतिबिम्ब विभ्रम :

                                     -(श्रीमदभागवतम १ ०. ३३.१ ६ )

रमापति (रमा के स्वामी )गोपियों के संग रास करते हैं। यहाँ रमा राधा के लिए ही आया
जब श्री कृष्ण महारास के दरमियान अप्रकट(दृष्टि ओझल ,अगोचर ) हो गए गोपियाँ प्रलाप करते हुए महाभाव को प्राप्त हुईं। 

वे रमापति (रमा के पति ) के रास का अनुकरण करने लगीं।  स्वांग भरने  लगीं। यहाँ भी रमा का अर्थ  राधा ही है  लक्ष्मी नहीं हो सकता क्योंकि  विष्णु रासरचैया नहीं रहे हैं।
ये सभी प्रमाण बहुत संक्षिप्त में हैं अन्य बहुत शास्त्र हैं जहां श्रीमती राधा रानी गुणगान किया गया है |
राधा कृष्ण भिन्न नहीं हैं राधाकृष्ण की आह्लादनी शक्ति हैं जो कृष्ण को परमानंद देती हैं राधा शक्ति हैं तो कृष्ण शक्तिमान |
बिना शक्ति के कैसा शक्तिमान |
कविराज गोस्वामी कहते हैं - चैतन्य चरितामृत में -

rādhā — pūrṇa-śakti, kṛṣṇa — pūrṇa-śaktimān
dui vastu bheda nāi, śāstra-paramāṇa
तो मिश्रा जी जैसे कथावाचकों को पहले शास्त्रों का अध्यन करना चाहिए तब श्रौताओं के समक्ष बोलना चाहिए |
हरे कृष्ण

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