Colour_Story॥Rajendera_Bhatt ॥ Water colour Portrait ॥ Storyteller

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जगमाल।सिरसा। हरियाणा: पूज्य मैनेजर साहिब जी की जीवनी
आदरणीय गुरुबख्श सिंह जी मैनेजर साहिब जी का जन्म 21 नवंबर 1915 को गांव सालाना फतेहगढ़ साहिब (पंजाब) में हुआ था । आपके पिता का नाम श्री चनन सिंह और माता का नाम श्रीमती हरनाम कौर था। आपके माता पिता शुरु से व्यास हूजुर महाराज सावन शाह जी की शरण में जाते थे । आप केवल दो वर्ष के थे, जब आपकी मां का निधन हो गया। उसके बाद अपनी मामी ईश्वर कौर जी के पास गांव लोहगर् ,रायकोट (पंजाब) में रहने लगे। आप महज 13 साल के थे, जब आपको 1928 में हूजुर महाराज से नाम दीक्षा मिली । आप ने बुनियादी शिक्षा ए. एस. हाई स्कूल गांव महिमा सिंह वाला ,खन्ना (पंजाब)से और एफ.ए , डी, एम कॉलेज मोगा (पंजाब) से करने के बाद वन विभाग नाभा पंजाब में काम करने लगे ।1943 में लाहौर के डी. सी. ऍम स्टोर में कलर्क के रूप में कार्य करने लगे। उन दिनों डेरा व्यास जाने के लिए आपके पास काफी समय हुआ करता था। आपके कार्य को देखते हुए आपको राहत अधिकारी और फिर डी, सी, ऍम स्टोर के मेनेजर के रूप में बठिंडा भेज दिया गया। वहां लगभग दो साल तक आपने कार्य किया और 1947 के आखिरी दिनों में सिरसा के डी. सी. ऍम स्टोर में कार्य करने के लिए आ गए ।हुजुर महाराज सिरसा अक्सर आया करते थे, हूजुर राधा स्वामी सत्संग घर सिरसा में रुका करते थे, उन दिनों आपको नोकरी छोड़ कर उनके पास जाना अधिक अच्छा लगता था । वहां पूज्य परम संत शाह मस्ताना जी से आपकी भेट हुई।2 अप्रैल 1948 में हुजुर महाराज जोति, जोत में समा गये, उनके जाने के बाद आप मानो अकेले से हो गए।फिर आप अक्सर बेपरवाह दाता शाह मस्ताना जी के पास जाया करते थे, एक दिन अपने अनजाने में कह दिया की कोई भगवान नही ये सब झूठ है, नाटक है, मैं कब से यहां आता हू मैंने अब तक अन्दर ना कुछ देखा न महसूस किया। ये सब सुन कर मस्ताना जी नाराज हो गए और कहा की तुम मेरे सामने ये सब कह रहे हो अगर तुम सच में कुछ देखना चाहते हो तो कम से कम 15 दिन की छुटी ले के आओ आप 15 दिन की छुटी ले कर उनके पास चले आये, मस्ताना जी ने आपको अपनी कुटिया के बाथरूम में रहने की अनुमति दी और आपको चाय और खिचड़ी के बिना कुछ नही दिया जाता था। 13 दिन बाद अंदर जो किरण आपने देखी उसकी ख़ुशी की कोई सीमा नही थी ।आपका तबादला होने के कारण आपने नौकरी छोड़ दी और परिवार को छोड़ के डेरा सच्चा सौदा में बेपरवाह ताकत शाह मस्ताना जी के साथ रहने लगे।जहां आप जोरदार सेवा और सिमरन करने लगे। मस्ताना जी आपको मैनेजर के नाम से बुलाते थे।18 अप्रैल 1960 को बेपरवाह ताकत शाह मस्ताना जी जिस्मानी चोला त्याग कर जोति, जोति में समा गए ।अत: आपने 18 फरवरी 1966 को कालांवाली मंडी के जगमालवाली गांव के पास मस्ताना शाह बिलोचिस्तानि आश्रम MBA का निर्माण किया,आपने वहां पे शब्द सूरत पर उपदेश शुरू किया।लोगो को अंदर का रास्ता बताया व नाम दान की बक्शीस दी।30 जुलाई 1998 को आप जिस्मानी चोला छोड़ कर सचखंड चले गये और अपने रूप में अपनी रूहानी शक्तियो सहित सब कुछ पूज्य बहादुर चंद वकील साहिब जी को सौंप दिया ।श्रोत इण्टरनेट मीडिया

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