हरी भक्त प्रलहाद (भाग -1) | Hari Bhakta Pralhad (Part-1) Movie | Tilak

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गंगा मैया माता उमा को क्याधु के श्राप की कथा सुनती हैं । एक बार अंगिरा ऋषि विष्णु जी से मिलने के लिए आए थे तो उन्हें सत्या रोकती है और कहती है की विष्णु भगवान आराम कर रहे है आप उनसे अभी नहीं मिल सकते। जी से क्रोधित होकर ऋषि अंगिरा उसे नाग लोक में जनम लेने का श्राप दे देते हैं। नारद मुनि जी तभी वहाँ आते हैं और ऋषि अंगिरा को बताते हैं की आपने ये ग़लत किया है वह इसके लायक़ नहीं थी। ऋषि अंगिरा कहते हैं की अगले जनम में भी यह विष्णु भगवान की भक्त ही होगी और इसका विवाह हरिण्यकश्यप के साथ होगा और सत्या के गर्भ से विष्णु भक्त प्रलहाद का जन्म होगा जो असुर लोक में विष्णु जी की भक्ति की शुरुआत करेगा। इसलिए ये मेरे मुख से ऐसा श्राप निकला है। क्याधु की विदाई के वक्त वह अपनी माता के साथ विलाप करती है। क्याधु की नाग लोक से अपने पति के साथ विदाई की जाती है। शुक्राचार्य हरिण्यकश्यप को बताते हैं की मैंने अंधकासुर को राजा के पद से हटा दिया है और तुम्हें असुर राज घोषित कर दिया है। इंद्र देव गंगा मैया के पास जाता है और उनसे कहता है की मैं हरिण्यकश्यप असुर राज पर हमला करके उन्हें अभी हरा देता हूँ क्योंकि हरिण्यकश्यप वचन नहीं निभाएगा और हम पर हमला अवश्य ही करेगा। गंगा मैया उन्हें समझाती हैं की आप ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि भगवान विष्णु के भक्त प्रलहाद के जनम में अड़चन होगी और आपको अपनी संधि का वचन निभाना चाहिए। इंद्र देव गंगा मैया से क्षम माँगते हैं और असुर लोक पर आक्रमण करने की बात को छोड़ देते हैं। गंगा मैया नारद मुनि को हरिण्यकश्यप के राज्याभिषेक में जाने को कहते हैं। हरिण्यकश्यप का राज्याभिषेक किया जाता है। हरिण्यकश्यप अपने बेटे अल्हाद को कहता है की जहां कहीं भी विष्णु की पूजा होती है उसे रोक दो और सभी को दंडित करने का आदेश देता है। हरिण्यकश्यप के सैनिक सभी विष्णु भक्तों को मार देता है और विष्णुके मंदिर और मूर्तियों को नष्ट करवा देता है। हरिण्यकश्यप के दानव उसे बताते है की उन्होंने हर जगह से विष्णु भक्तों को मार दिया है और विष्णु की मूर्तियों को नष्ट कर दिया है। हरिण्यकश्यप की पत्नी सुमुखी हरिण्यकश्यप को कहती है की अब जब सभी विष्णु की मूर्तियाँ नष्ट हो चुकी हैं तो आपको अब विष्णु के स्थान पर भगवान के रूप में विराजना चाहिए। रात्रि में क्याधु अपने पास छुपाई हुई एक विष्णु मूर्ती को निकालती है और उनसे अपना दुःख साझा करती है और उनसे कहती हैं की उसके पति को सद बुद्धि दे तभी वह सुमुखी आ जाती है और क्याधु मूर्ती को वापस से छुपा देती है। हरिण्यकश्यप शुक्राचार्य से स्वर्ग पर आक्रमण करने की आज्ञा लेने जाता है। गुरु शुक्राचार्य हरिण्यकश्यप को स्वर्ग पर हमला करने से रोक देता है और उसे कहता है की उसे देवताओं पर आक्रमण करने से पहले शक्तियाँ और अमर्तव पाने के लिए तप करके ब्रह्मा जी का प्रसन्न करना होगा। हरिण्यकश्यप क्याधु को अपने तप के बारे में कहता है तो वह उसे कहती है की संसार में कोई भी अमर नहीं है और ना ही हो सकता है इसलिए आप अमर्तव पाने के लिए तप करना व्यर्थ है। हरिण्यकश्यप क्याधु की बात सुन कर क्रोधित होता है और उससे कहता है की तुम्हें किसने ये सब सिखाया है मुझे उसका नाम बताओ तो क्याधु उसे बताती है की मैंने आपको जिस कारण से तप करने जाने के लिए रोक है वह आपका होने वाला पुत्र है। पिता बनने की बात सुन कर खुश हो जाता है। क्याधु हरिण्यकश्यप को इसलिए रोकना चाहती थी की जब आपके पुत्र का जनम हो तब आप उसके पास रहें। हरिण्यकश्यप अपने पिता बनने की ख़ुशी में गीत संगीत का आयोजन करता है। गुरु शुक्राचार्य वहाँ आते हैं और क्याधु और हरिण्यकश्यप को बधाई देते हैं। हरिण्यकश्यप की नगरी में स्तंभासुर आता है। स्तंभासुर को हरिण्यकश्यप की नगरी में आने से रोकने के लिए हरिण्यकश्यप के सैनिक आगे आते है तो वह उन पर हमला कर देता है और हरिण्यकश्यप की नगरी में तोड़ फोड़ करने लगता है। हरिण्यकश्यप के सैनिक और प्रजा अपनी जान बचा कर भागते हैं और अपने राजा के पास जाकर अपनी रक्षा की गुहार लगाते हैं। हरिण्यकश्यप उनकी बात सुन कर अपने पुत्र को भेजता है ताकि उसे बंदी बना कर ले आए। युवराज अल्हाद और स्तंभासुर में युद्ध शुरू हो जाता है। स्तंभासुर ओर अल्हाद अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने ही वाला था की तभी स्तंभासुर सभी को स्तंभित कर देता है और वहाँ से हरिण्यकश्यप की ओर चल पड़ता है। हरिण्यकश्यप स्तंभासुर को रोकने के लिए स्वयं जाता है। दोनों एक दूसरे के सामने आ जाते हैं। हरिण्यकश्यप स्तंभासुर को अपनी शरण में आने के लिए कहता है। स्तंभासुर हरिण्यकश्यप को कहता है की गुरु शुक्राचार्य ने तुम्हें राजा कैसे बना दिया इसमें शुक्राचार्य का कोई षड्यंत्र है। हरिण्यकश्यप अपने गुरु का अपमान सुन उसे युद्ध के लिए ललकारता है। दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है। स्तंभासुर और हरिण्यकश्यप में युद्ध शुरू हो जाता है दोनों एक दूसरे ओर आक्रमण करते हैं हरिण्यकश्यप जैसे ही स्तंभासुर पर हावी होता है तो स्तंभासुर हरिण्यकश्यप को स्तंभित कर देता है और क्याधु का हरण करके अपने साथ ले जाने के लिए क्याधु को उठा लेता है। क्याधु अपनी रक्षा की पुकार हरिण्यकश्यप को लगाती है। यह सब देख कर गुरु शुक्राचार्य वहाँ आ जाते हैं। शुक्राचार्य स्तंभासुर को क्याधु को छोड़ने के लिए कहते हैं। लेकिन वह नहीं मानता और शुक्राचार्य को अंधकासुर पर किए गए अत्याचार का बदला लेने के लिए हरिण्यकश्यप को दंडित करने के लिए आय है। गुरु शुक्राचार्य उसे रोकने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं जैसे ही स्तंभासुर शुक्राचार्य को स्तंभित करने की कोशिश करता है लेकिन नहीं कर पाता। शुक्राचार्य हरिण्यकश्यप को सजीव कर देते हैं और उसे स्तंभासुर की स्तंभित करने की शक्ति से सुरक्षित कर देते हैं।

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