कर्ण काली मंत्र साधना विधि
मंत्र:
“ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्लीं ह्रीं कर्ण काली खं स्फोटय क्रीं क्रीं क्रीं फट्॥”
1. साधना का उद्देश्य
कर्ण काली साधना अत्यंत गूढ़ एवं तांत्रिक साधना मानी जाती है। यह साधना साधक को अदृश्य शक्तियों से रक्षा, शत्रु नाश, तांत्रिक बाधा मुक्ति, आत्मबल वृद्धि और गुप्त ज्ञान प्रदान करती है।
2. साधना का समय एवं स्थान
इस साधना का शुभारंभ अमावस्या, कृष्णपक्ष की अष्टमी या रवि/शनिवार की रात्रि में करना श्रेष्ठ होता है।
साधना एकांत, श्मशान, निर्जन स्थान या घर के पूजा कक्ष में भी की जा सकती है, परंतु पूर्ण शुद्धता व गुप्तता आवश्यक है।
उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन ग्रहण करें।
3. आवश्यक सामग्री
लाल या काले वस्त्र
काला आसन (कुशा, ऊन या काले कपड़े का)
लाल/काले फूल
चंदन/काजल से बनाया गया कर्ण काली यंत्र
सरसों के तेल का दीपक
धूप/अगरबत्ती
तांबे/काले लोहे की थाली में रखी जलपूर्ण कलश
नैवेद्य (गुड़, नारियल, उड़द की दाल, मदिरा या नींबू)
4. पूजन विधि
स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
आसन पर बैठकर संकल्प लें – “मैं अमुक कार्य सिद्धि के लिए कर्ण काली साधना करता हूँ।”
गणपति, गुरु व कुलदेवी/कुलदेवता का ध्यान कर पूजा करें।
कर्ण काली यंत्र या प्रतिमा को स्थापित कर आवाहन करें।
दीप प्रज्वलित कर धूप, पुष्प, नैवेद्य अर्पित करें।
5. मंत्र जप विधि
मालाः रुद्राक्ष या काली हकीक की माला।
जप संख्या: प्रारंभ में 11 माला प्रतिदिन (एक माला = 108 मंत्र)।
अवधि: कम से कम 21 दिन तक अथवा 108, 324, या 1008 माला पूर्ण होने तक।
जप करते समय मन, वाणी और शरीर की शुद्धि बनाए रखें।
6. न्यास एवं ध्यान
मंत्र जप से पूर्व “कर्ण काली ध्यान” करें:
काली देवी के स्वरूप का ध्यान करें –
काले वर्ण की, त्रिनेत्री, रक्तमाला धारण किए, खप्पर व खड्गधारिणी।
कानों से अग्नि निकलती हुई, भयंकर रूप, परंतु साधक की रक्षक।
7. नियम व सावधानियाँ
साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें।
साधना गुप्त रखें, किसी से चर्चा न करें।
मांस, मदिरा, तामसिक भोजन, वर्जित कर्म से दूर रहें।
मन में भय आने पर गुरु/ईष्ट का स्मरण करें।
साधना पूर्ण होने पर हवन अवश्य करें।
8. पूर्णाहुति / हवन विधि
108 आहुतियाँ दें:
“ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्लीं ह्रीं कर्ण काली खं स्फोटय क्रीं क्रीं क्रीं फट् स्वाहा॥”
आहुति सामग्री: तिल, जौ, सरसों के बीज, नींबू के टुकड़े, घी मिश्रित।
9. सिद्धि के लक्षण
साधना के समय स्वप्न में देवी का दर्शन, भयावह दृश्य या प्रकाश पुंज का अनुभव।
जप करते समय कानों में अनाहत ध्वनि या गूंज का आना।
शत्रु भयभीत होना या विघ्न स्वतः दूर होना।
10. प्रयोग
शत्रु बाधा नाश हेतु – नींबू पर 108 मंत्र जपकर शत्रु की दिशा में फेंकें।
आत्मरक्षा हेतु – साधक गुप्त रूप से 7 बार मंत्र जप कर अंगूठी में फूंक मारे।
तांत्रिक प्रयोग निवारण हेतु – सरसों के दानों पर 108 मंत्र जप कर अग्नि में डालें।
विशेष नोट: यह साधना अत्यंत गूढ़ है। बिना गुरु दीक्षा व मार्गदर्शन के इसे करना खतरनाक हो सकता है। केवल योग्य साधक ही पूर्ण विधि से करें।
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