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Скачать или смотреть ब्रम्हकपाल, गयाजी में पिण्डदान के उपरांत श्राद्ध करना चाहिए अथवा नहीं!

  • LIMTY KHARE
  • 2024-09-25
  • 401
ब्रम्हकपाल, गयाजी में पिण्डदान के उपरांत श्राद्ध करना चाहिए अथवा नहीं!
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Описание к видео ब्रम्हकपाल, गयाजी में पिण्डदान के उपरांत श्राद्ध करना चाहिए अथवा नहीं!

जानिए गया और ब्रम्हकपाली कहां हैं एवं इन स्थानों पर किए गए पिण्डदान एवं श्राद्ध का महत्व
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आप देख, सुन और पढ़ रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के धर्म प्रभाग में विभिन्न जानकारियों के संबंद्ध में . . .
हिंदू धर्म में पितृपक्ष एक महत्वपूर्ण महीना होता है, जिसमें हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। पिंडदान इस दौरान किया जाने वाला एक प्रमुख संस्कार है। यह माना जाता है कि पिंडदान करने से पितृदोष दूर होता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रम्हकपाल जिसे ब्रम्हकपाली भी कहा जाता है एवं गया जी जैसे तीर्थों में पिंडदान का विशेष महत्व है। अक्सर यह प्रश्न उठता है कि इन स्थानों पर पिंडदान करने के बाद क्या फिर श्राद्ध करने की आवश्यकता होती है?
पितरों की तृप्ति और उनकी प्रसन्नता के लिए आश्विन मास के पूरे कृष्णपक्ष में श्राद्ध किया जाता है। अब अक्सर लोग यह प्रश्न पूछते हैं कि गयाजी में श्राद्ध करने के बाद पितरों का वार्षिक श्राद्ध या पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करना चाहिए या नहीं। अनेक विद्वान यह कह देते हैं कि एक बार गयाजी में श्राद्ध कर दिया तो फिर वार्षिक या पितृपक्ष में श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। अनेक लोग यह प्रश्न भी पूछते हैं कि गयाजी में श्राद्ध करने के बाद बदरीनाथ स्थित ब्रम्हकपाल में श्राद्ध करना चाहिए या नहीं।
आईए सबसे पहले जानते हैं पिंडदान और श्राद्ध के बारे में . . .
सबसे पहले जानिए पिंडदान के संबंध में, यह एक संस्कार है जिसमें तिल के बने पिंडों को जल में प्रवाहित किया जाता है। यह माना जाता है कि ये पिंड पितरों को प्राप्त होते हैं और उन्हें शांति मिलती है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
वहीं, श्राद्ध एक श्राद्धकर्म है जिसमें पितरों के लिए भोजन पकाया जाता है और ब्राम्हणों को भोजन कराया जाता है। यह माना जाता है कि श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति मिलती है।
अब जानिए ब्रम्हकपाल, गयाजी और अन्य तीर्थों के महत्व के संबंध में,
ब्रम्हकपाल कहां पर स्थित है एवं उसका क्या महत्व है! ब्रम्हकपाल को एक पवित्र घाट माना जाता है। कहा जाता है कि इस घाट पर पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और घर में सुख शांति आती है। यही कारण है, जब हर वर्ष बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु आते हैं, तो ब्रम्हा कपाल के दर्शन करना नहीं भूलते। यहां पर आकर वो विधि विधान से पूजा करते हैं, ताकि उनके पितरों को शांति मिल सके और उनके जीवन में सुख शांति बनी रहे। यह स्थान बद्रीनाथ के निकट स्थित है और माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध उत्तरखंड के बदरीकाश्रम क्षेत्र के ब्रम्ह कपाल में किया जाता है। गया के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। कहते हैं जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी और स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।
पांडवों ने भी अपने परिजनों की आत्म शांति के लिए यहां पर पिंडदान किया था। श्रीमद् भागवत महापुराण अनुसार युद्ध अपने बंधु बांधवों की हत्या करने पर पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रम्हकपाल में ही अपने पितरों को तर्पण किया था। पुराणों के अनुसार यह स्थान महान तपस्वियों और पवित्र आत्माओं का है। श्रीमदभागवत पुराण अनुसार यहां सूक्ष्म रूप में महान आत्माएं निवासरत हैं।
ऐसी धारणा भी है कि ब्रम्ह कपाल में किया जाने वाला पिंडदान आखिरी माना जाता है। इसके बाद उक्त पूर्वज के निमित्त किसी भी तरह का पिंडदान या श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रम्हा, ब्रम्हा कपाल के रूप में निवास करते हैं। किसी काल में ब्रम्हा के पांच सिर थे उसमें से एक सिर कटकर यहीं गिरा था। अलकनंदा नदी के तट पर ब्रम्हाजी के सिर के आकार की शिला आज भी विद्यमान है।
हर वर्ष पितृपक्ष में भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष के दौरान यहां भीड़ रहती है। ब्रम्हकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वाेच्च तीर्थ (महातीर्थ) कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि ब्रम्हकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की जरूरत नहीं रह जाती।
स्कंद पुराण अनुसार पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी भी श्रेयस्कर हैं, लेकिन भू वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रम्हकपाल में किया गया पिंडदान इन सबसे आठ गुणा ज्यादा फलदायी है। ब्रम्ह कपाल पर ही शिव को ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी, क्योंकि उन्होंने ही ब्रम्हा का पांचवां सिर काट दिया था।
पुराणों अनुसार ब्रम्हज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास, ये चारों मुक्ति के साधन हैं, गया में श्राद्ध करने से ब्रम्हहत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते ...
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