आदि शंकराचार्य जी वो शख्स है जिनके कारण आज हिंदू धर्म जिंदा है। उन्होंने 7 वर्ष की
आयु में सन्यास ग्रहण किया। पूरे भारत मे हिन्दू धर्म की जागृति के लिए भ्रमण
किया। आदि शंकराचार्य जी ने संजीवन समाधि ली थी।
आदि शंकराचार्य, चमकदार आध्यात्मिक प्रकाश के
अद्भुत स्रोत थे। उन्होंने सारी भारत भूमि को अपने ज्ञान से आलोकित(प्रकाशमान)
किया। उनके उपदेश सदा ही बहुत प्रभावशाली रहे हैं और आज भी बहुत असरदार हैं। यहाँ,
सदगुरु हमें आदि शंकराचार्य के दिव्य जीवन की, आध्यात्मिक दृष्टि से
महत्वपूर्ण,
आदि शंकराचार्य एक बार एक व्यक्ति के साथ
शास्त्रार्थ में उतरे और जीत गये। फिर उस व्यक्ति की पत्नी ने आदि शंकराचार्य के
साथ शास्त्रार्थ शुरू किया। तर्क के मामले में आदि शंकराचार्य का स्तर बहुत ऊँचा
था और ऐसे विद्वान के साथ आप आसानी से तर्क नहीं कर सकते, तो उसने ऐसे बात की,
"आप ने मेरे पति को हराया है, पर वे पूर्ण नहीं हैं। हम दोनों एक पूर्ण भाग
के दो आधे आधे भाग हैं। इसलिये, आपको मेरे साथ भी शास्त्रार्थ करना होगा। इस तरह
के तर्क को आप यूँ ही अनसुना नहीं कर सकते, तो आदि शंकराचार्य का उस स्त्री के साथ
शास्त्रार्थ शुरू हुआ। जब उसने देखा कि वो हार रही है तो उसने उनसे यौन संबंधों के
विषय पर प्रश्न करना शुरू किया। शंकराचार्य जो कुछ कह सकते थे, वो उन्होंने कहा पर
वो ज्यादा गहरे विवरणों में उतर गयी और पूछा, "आप अनुभव से क्या जानते
हैं"? आदि शंकराचार्य ब्रह्मचारी थे। वे समझ गये कि ये उन्हें हराने की चाल
थी। तब वे बोले, "ठीक है, हम एक महीने के लिये रुक जाते हैं। हम एक महीने बाद
यहीं से शुरू करेंगे, जहाँ पर हम रुक रहे हैं"।
फिर वे एक गुफा में गये और अपने शिष्यों से बोले, "चाहे जो हो जाये, किसी को
इस गुफा में आने मत देना क्योंकि मैं कुछ समय के लिये अपना शरीर यहाँ छोड़ रहा हूँ
और कोई दूसरी संभावना देखता हूँ"। जीवन ऊर्जा (प्राण शक्ति) अपने आपको पाँच
आयामों में अभिव्यक्त करती है - प्राण वायु, समान, अपान, उदान और व्यान! प्राण
शक्ति के इन पाँच आयामों के अलग अलग काम हैं। प्राण श्वसन क्रिया, विचार प्रक्रिया
और स्पर्श के अनुभव को संभालता है। आप कैसे पता लगाते हैं कि कोई ज़िंदा है या मर
गया है? साँस रुक जाने पर उसे मरा हुआ माना जाता है। साँस तभी रुकती है जब प्राण
वायु बाहर निकलने लगती है। लगभग डेढ़ घंटे में प्राण वायु पूरी तरह से बाहर निकल
जाती है।
इसीलिये, ये हमारी परंपरा है कि साँस रुक जाने और मृत घोषित होने के बाद भी मृत
व्यक्ति का अंतिम संस्कार तुरंत नहीं करते, डेढ़ घंटे रुकते हैं क्योंकि उस समय तक
उसकी विचार प्रक्रिया और स्पर्श अनुभव पूरी तरह से बंद नहीं होते। कई प्रकार से वो
व्यक्ति अभी भी जीवित है क्योंकि और इतने समय में उसे चिता की आग का अहसास हो सकता
है, क्योंकि प्राण वायु के बाकी आयाम तो अभी भी शरीर में हैं। अंतिम आयाम व्यान 12
से 14 दिनों तक वहीं रह सकता है। शरीर का टिके रहना और एक रूप में रहना व्यान की
वजह से ही होता है। जब आदि शंकराचार्य अपने शरीर में से बाहर निकले तो उन्होंने
अपने व्यान को प्रणाली में ही रहने दिया क्योंकि शरीर को उसके सही रूप में रखना
ज़रूरी था।
उसी समय ऐसा हुआ कि एक राजा को किसी कोबरा ने डस लिया था और वो मर गया था। जब
कोबरा का ज़हर किसी के शरीर में घुसता है तो खून जमने लगता है और साँस लेना कठिन हो
जाता है। कई तरह से, अगर किसी
को इस शरीर में प्रवेश करना हो तो ये एक अच्छी स्थिति होती है।
तो आदि शंकराचार्य को ये मौका मिला और वे आसानी से राजा के शरीर में प्रवेश पा
गये। उसके बाद उन्होंने वो सब कर लिया जिससे वे अनुभव से उन सवालों का जवाब दे
सकें जो उन्हें शास्त्रार्थ में पूछे गये थे। राजा के कुछ नज़दीकी बुद्धिमान लोग थे
जिनके ध्यान में ये बात आ गयी कि जिस आदमी को उन्होंने मृत घोषित किया था, वो
अचानक ही बहुत सारी ऊर्जा के साथ उठ बैठा था पर उसका व्यवहार पहले जैसा नहीं था और
ऐसा लगता था कि उस शरीर में कोई और आ गया था।
पाठक गण को चाहिये की प्रत्येक पूजा अराधाना ऐवम प्रयोग के पशच्यात इन अराधनओ मै हुइ त्रुटियों के लिये इष्ट देव, देवियो से छमा याचना अनिवार्य तोर पर दुहराये, अन्यथा हो सकता है कि "लेने के देने" कि नौबत आ जाये ।
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श्रीमच्छङ्कराचार्य कृतम् श्रोत्र निधि Sri Machchankaracharya kratam shrotr nidhi
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