Kalinjar Fort History || क्‍या है कालिंजर के किले का अनदेखा रहस्‍य || Mystery Of Kalinjar किला

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विन्ध्य पर्वत पर स्थित कालिंजर दुर्ग भारत के विशालतम एवं अपराजेय दुर्गों में से एक है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे अपराजेय किलों में बदल देती है। यहाँ पर भगवान भोले नाथ का नीलकंठ महादेव का स्वरूप है समुद्र मंथन के दौरान भगवान भोले नाथ ने विष पीकर यहाँ विश्राम किया था जहाँ आज भी भगवान के कंठ से विष पसीना बनकर बह रहा है कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला मेला यहां की एक सांस्कृतिक विरासत एवं धरोहर है।
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कालिंजर किले में पायल बजने की आवाज का क्या है रहस्य| Bundelkhand kalinjar fort is a mysterious place
कालिंजर दुर्ग विंध्याचल की पहाड़ी पर 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। दुर्ग की कुल ऊंचाई 108 फ़ीट है। इसकी दीवारें चौड़ी और ऊंची हैं। यह उत्तर प्रदेश के बाँदा जिला के कालिंजर कस्बे में है। बांदा से यह महज 60 किलोमीटर की दूरी पर है। बगैर टैक्सी किए कालिंजर फोर्ट घूमना आसान नहीं होगा। कालिंजर दुर्ग को मध्यकालीन भारत का सर्वोत्तम दुर्ग माना जाता था। इस पर महमूद ग़ज़नवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने आक्रमण कर इसे जीतना चाहा, पर कामयाब नहीं हो पाये। अंत में अकबर ने 1569 ई. में यह क़िला जीतकर बीरबल को सौंप दिया। बीरबल के बाद यह क़िला बुंदेल राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। इनके बाद क़िले पर पन्ना के हरदेव शाह का कब्जा हो गया। 1812 ई. में यह क़िला अंग्रेज़ों के अधीन हो गया। शेरशाह सूरी ने भी आधिपत्य पाने के लिए दुर्ग पर चढ़ाई की मगर दुश्मन के तोप का गोला लगने से उसकी मौत हो गई।

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