१.
श्रीहरिवल्लभि सौम्यरुचे, विष्णुप्रिये कमलालये।
वेदविनोदिनी धर्ममयी, लक्ष्मि जय जय माँ भवते॥
भावार्थ:
हे श्रीहरि विष्णु की प्रिय, सौम्य तेजस्विनी, कमल पर वास करने वाली देवी!
जो वेदों में आनंद देती हैं और धर्म से पूर्ण हैं — हे लक्ष्मी माता, आपको बारम्बार वंदन।
२.
सिन्दुरसुन्दरि चन्द्रमुखि, भक्तजनार्तिहरणि शिवे।
शंखधरा वरदा वरिणि, लक्ष्मि जय जय माँ भवते॥
भावार्थ:
हे सिंदूर के समान शोभायमान, चंद्रमा-से मुख वाली, भक्तों के दुख हरने वाली कल्याणमयी देवी!
शंख धारण करने वाली, वरदान प्रदान करने वाली लक्ष्मी माता को नमन।
३.
स्वर्णविलासिनी रत्नमयी, कोटिसुरार्चिता पुण्यदा।
द्रव्यमयी दयारूपधरी, लक्ष्मि जय जय माँ भवते॥
भावार्थ:
हे स्वर्ण जैसी आभा वाली, रत्नमयी, असंख्य देवताओं द्वारा पूजित और पुण्य प्रदान करने वाली देवी!
द्रव्य (धन) स्वरूपा और करुणामयी लक्ष्मी माता को प्रणाम।
४.
क्षीरसमुद्रसुतारमणे, वन्दितलोकसुशोभिते।
दीर्घसुमंगलसंस्थितये, लक्ष्मि जय जय माँ भवते॥
भावार्थ:
क्षीरसागर (दूध के समुद्र) से उत्पन्न, समस्त लोकों द्वारा पूजित और शोभायमान देवी!
जो दीर्घकाल तक मंगल प्रदान करती हैं — ऐसी महालक्ष्मी को वंदन।
५.
शुभ्रवसन्त्रिय संकटनाशि, पुण्यविवर्धिनि सत्यरते।
योगनिवासिनि मोक्षमयी, लक्ष्मि जय जय माँ भवते॥
भावार्थ:
शुभ्र वस्त्रधारी, संकटों का नाश करने वाली, पुण्य बढ़ाने वाली, और सत्य में स्थित देवी!
जो योग में प्रतिष्ठित हैं और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं — ऐसी लक्ष्मी माता को वंदन।
६.
नित्यनवोदय कान्तिवती, भक्तहृदयप्रवेशिनी।
धर्मपथे चलितप्रेरके, लक्ष्मि जय जय माँ भवते॥
भावार्थ:
जो नित्य नए तेज से उदित होती हैं, भक्तों के हृदय में प्रवेश करती हैं,
और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा देती हैं — ऐसी लक्ष्मी माता को नमन।
७.
श्रीफलहस्तधरे वरदे, दीपसमार्चिता भक्तिगमे।
अक्षयसंपदप्राप्तिकरे, लक्ष्मि जय जय माँ भवते॥
भावार्थ:
श्रीफल (नारियल) हाथ में धारण करने वाली, वर देने वाली, दीपों द्वारा पूजित,
और अक्षय (अक्षुण्ण) संपत्ति प्रदान करने वाली देवी लक्ष्मी को वंदन।
८.
या पठते हृदि श्रद्धायुता, लक्ष्म्यष्टकं शुभकाम्यता।
प्राप्नुयात् धनमोष्णं सुखं, लक्ष्मि जय जय माँ भवते॥
भावार्थ:
जो श्रद्धा से इस लक्ष्मी अष्टक का पाठ करता है, वह शुभ फलों की प्राप्ति करता है,
और अक्षय धन-सुख प्राप्त करता है — जय जय महालक्ष्मी माता।
🌸✨ श्री लक्ष्मी अष्टक - अक्षय तृतीया विशेष ✨🌸
अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर प्रस्तुत है "श्री लक्ष्मी अष्टक",
एक दिव्य स्तुति जो माँ लक्ष्मी के अनंत वैभव, करुणा और कृपा का गान करती है।
यह अष्टक देवी लक्ष्मी को समर्पित है, जो धन, ऐश्वर्य, पुण्य और मोक्ष की प्रदायिनी हैं।
हर श्लोक में लक्ष्मी माता के अलग-अलग शुभ और तेजस्वी स्वरूपों का स्तवन है —
जैसे कि कमलवासिनी, धर्ममयी, भक्तजनार्तिहरणि, स्वर्णविलासिनी, रत्नमयी और क्षीरसागर-कन्या।
श्रद्धापूर्वक इस अष्टक का पाठ या श्रवण करने से अक्षय पुण्य और धन की प्राप्ति होती है।
🌼 मूलभाव:
"जय जय माँ लक्ष्मी, जो धर्म, धन और दिव्यता की अधिष्ठात्री हैं।"
🌟 आज इस अक्षय तृतीया पर —
भक्ति भाव से माँ लक्ष्मी का आह्वान करें, और अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आमंत्रित करें। 🌟
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जय माँ लक्ष्मी! 🙏✨
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