Dna of arya & dravid || who is india's mulniwasi || aryan invenjion theory ||vsk malwa || reality ||
नमस्कार जब हमने तथ्य पूर्ण तरिके से पिछले वीडियो में बताया की हिन्दू ,मूलनिवासी ,आर्य ,आदिवासी व भारतीय ये सभी शब्द पर्यायवाची हैं तो धर्म परिवर्तन के लिए भारत के मूल समाज को बांटकर धर्म परिवर्तन में लगें लोग बोखला गए क्योकि उन्हें पता हैं की जब यह पता चल जायेगा की हिन्दू और आदिवासी एक ही हैं तो हम किस आधार पर धर्म परिवर्तन करेंगे और अपनी तो दूकान ही बंद हो जाएगी इसीलिए अब वे केस करने की धमकिया व गलियां दे रहे हैं तो अब आपकी धमकियों और गलियों को सर माथे रखकर हम इस श्रृंखला को आगे हम आगे बड़ा रहें हैं मेने कहा था की संविधान इस विषय पर क्या कहता हैं इस विषय पर आपको बताऊंगा ki डीएनए रिपोर्ट इस मुद्दे पर क्या कहती हैं और आर्यन इंवर्जन थ्योरी सही हैं या गलत
यह बहुत बहुत प्रचारित किया जाता है कि आर्य बाहरी और आक्रमणकारी थे। उन्होंने भारत पर आक्रमण करके यहां के द्रविड़ लोगों को दास बनाया। पहले अंग्रेजों ने भी फिर हमारे ही इतिहाकारों ने इस झूठ को प्रचारित और प्रसारित किया। आर्य को उन्होंने एक जाति माना और द्रविड़ को दूसरी। इस तरह विभाजन करके उन्होंने भारत का इतिहास लिखा। इतिहासकारों द्वारा किया गया यह विभाजन भारत को तोड़ गया।
आर्यन इन्वेजन थ्योरी गलत है?
भारत की सरकारी किताबों में आर्यों के आगमन को आर्यन इन्वेजन थ्योरी कहा जाता है। इन किताबों में आर्यों को घुमंतू या कबीलाई बताया जाता है। यह ऐसे खानाबदोश लोग थे जिनके पास वेद थे, रथ थे, खुद की भाषा थी और उस भाषा की लिपि भी थी। मतलब यह कि वे पढ़े-लिखे, सभ्य और सुसंस्कृत खानाबदोश लोग थे। यह दुनिया का सबसे अनोखा उदाहरण है। इतिहासकारों के एक वर्ग मानता है कि यह थ्योरी मैक्स मूलर ने जानबूझकर गढ़ी होगी?
मैक्स मूलर ने ही भारत में आर्यन इन्वेजन थ्योरी को लागू करने का काम किया था, लेकिन इस थ्योरी को सबसे बड़ी चुनौती 1921 में मिली। अचानक से सिंधु नदी के किनारे एक सभ्यता के निशान मिल गए। कोई एक जगह होती, तो और बात थी। यहां कई सारी जगहों पर सभ्यता के निशान मिलने लगे। इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा। अब सवाल यह पैदा हो गया कि यदि इस सभ्यता को हिन्दू या आर्य सभ्यता मान लिया गया तो फिर आर्यन इन्वेजन थ्योरी का क्या होगा। ऐसे में फिर धीरे-धीरे यह प्रचारित किया जाने लगा कि सिंधु लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य।
जब अंग्रेजों और उनके अनुसरणकर्ताओं ने यह देखा कि सिंधु घाटी की सभ्यता तो विश्वस्तरीय शहरी सभ्यता थी। इस सभ्यता के पास टाउन-प्लानिंग का ज्ञान कहां से आया और उन्होंने स्वीमिंग पूल बनाने की तकनीक कैसे सीखी? वह भी ऐसे समय जबकि ग्रीस, रोम और एथेंस का नामोनिशान भी नहीं था।..तो उन्होंने एक नया झूठ प्रचारित किया। वह यह कि सिंधु सभ्यता और वैदिक सभ्यता दोनों अलग अलग सभ्यता है। सिंधु लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य। आर्य तो बाहर से ही आए थे और उनके काल सिंधु सभ्यता के बाद का काल है। इस थ्योरी को हमारे यहां के वामी इतिहासकारों ने जमकर प्रचारित किया।
पहला डीएनए शोध : फिनलैण्ड के तारतू विश्वविद्यालय, एस्टोनिया में भारतीयों के डीनएनए गुणसूत्र पर आधारित एक अनुसंधान हुआ। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉं. कीवीसील्ड के निर्देशन में एस्टोनिया स्थित एस्टोनियन बायोसेंटर, तारतू विश्वविद्यालय के शोधछात्र ज्ञानेश्वर चौबे ने अपने अनुसंधान में यह सिद्ध किया है कि सारे भारतवासी जीन अर्थात गुणसूत्रों के आधार पर एक ही पूर्वजों की संतानें हैं, आर्य और द्रविड़ का कोई भेद गुणसूत्रों के आधार पर नहीं मिलता है, और तो और जो अनुवांशिक गुणसूत्र भारतवासियों में पाए जाते हैं वे डीएनए गुणसूत्र दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं पाए गए।
शोधकार्य में वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका और नेपाल की जनसंख्या में विद्यमान लगभग सभी जातियों, उपजातियों, जनजातियों के लगभग 13000 नमूनों के परीक्षण-परिणामों का इस्तेमाल किया गया। इनके नमूनों के परीक्षण से प्राप्त परिणामों की तुलना मध्य एशिया, यूरोप और चीन-जापान आदि देशों में रहने वाली मानव नस्लों के गुणसूत्रों से की गई। इस तुलना में पाया गया कि सभी भारतीय चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाले हैं, 99 प्रतिशत समान पूर्वजों की संतानें हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत में आर्य और द्रविड़ विवाद व्यर्थ है। उत्तर और दक्षिण भारतीय एक ही पूर्वजों की संतानें हैं।
शोध में पाया गया है कि तमिलनाडु की सभी जातियों-जनजातियों, केरल, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश जिन्हें पूर्व में कथित द्रविड़ नस्ल से प्रभावित माना गया है, की समस्त जातियों के डीनएन गुणसूत्र तथा उत्तर भारतीय जातियों-जनजातियों के डीएनए का उत्पत्ति-आधार गुणसूत्र एकसमान है। उत्तर भारत में पाये जाने वाले कोल, कंजर, दुसाध, धरकार, चमार, थारू, दलित, क्षत्रिय और ब्राह्मणों के डीएनए का मूल स्रोत दक्षिण भारत में पाई जाने वाली जातियों के मूल स्रोत से कहीं से भी अलग नहीं हैं।
इसी के साथ जो गुणसूत्र उपरोक्त जातियों में पाए गए हैं वहीं गुणसूत्र मकरानी, सिंधी, बलोच, पठान, ब्राहुई, बुरूषो और हजारा आदि पाकिस्तान में पाए जाने वाले समूहों के साथ पूरी तरह से मेल खाते हैं। जो लोग आर्य और दस्यु को अलग अलग बानते हैं उन्हें बाबासाहब आम्बेडकर की किताब 'जाती व्यवस्था का उच्चाटन' (Annihilation of caste) को अच्छे से पढ़ना चाहिए
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