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Скачать или смотреть Ayurved ke Maulik Siddhant | त्रिदोष, धातु और मल

  • AyurSutra Studies
  • 2025-09-30
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Ayurved ke Maulik Siddhant | त्रिदोष, धातु और मल
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Описание к видео Ayurved ke Maulik Siddhant | त्रिदोष, धातु और मल

यह सूत्र आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है, जो महर्षि सुश्रुत द्वारा दिया गया है।

इसका अर्थ और व्याख्या इस प्रकार है:

अर्थ (Meaning):

दोष (Dosha):
वात, पित्त और कफ — ये शरीर के तीन मूलभूत नियामक तत्व हैं, जो जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।

धातु (Dhatu):
रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र — ये शरीर के सात मूलभूत घटक या ऊतक (tissues) हैं, जो शरीर को धारण करते हैं और पोषण प्रदान करते हैं।

मल (Mala):
मूत्र (Urine), पुरीष (Feces) और स्वेद (Sweat) — ये शरीर के अपशिष्ट (waste products) हैं, जिनका शरीर से बाहर निकलना अनिवार्य है।

मूलं हि (Moolam Hi): ही निश्चित रूप से / निश्चय ही मूल हैं, आधार हैं, जड़ हैं।
शरीरम् (Shareeram): शरीर।

पूरा अर्थ:
"दोष, धातु और मल ही शरीर के मूल (आधार/जड़) हैं।"

व्याख्या (Explanation):

यह सूत्र बताता है कि मानव शरीर इन तीन तत्वों पर आधारित है और इन्हें ही शरीर का आधारभूत स्तंभ (Basic Pillars) माना जाता है।

1. दोष, धातु और मल ही शरीर को धारण करते हैं:
जब ये तीनों तत्व अपनी सामान्य (Balanced/Samya) अवस्था में होते हैं, तो शरीर स्वस्थ रहता है और अपनी क्रियाएँ सुचारु रूप से करता है।
जब इनमें से किसी में भी विकृति (Imbalance/Vaishamya) आती है, चाहे वह कमी हो या अधिकता, तो वह रोगों (Diseases) को जन्म देती है।

2. दोष (वात, पित्त, कफ): ये शरीर में ऊर्जा और क्रियाशीलता लाते हैं। ये अन्य धातुओं और मलों को दूषित भी कर सकते हैं (इसीलिए इन्हें 'दोष' कहा जाता है)। स्वस्थ अवस्था में ये 'धातु' (धारण करने वाले) कहलाते हैं।

3. धातु (सप्त धातु): ये शरीर का निर्माण, पोषण और संरचना प्रदान करते हैं। जैसे अस्थि (हड्डी) शरीर को ढाँचा देती है, और रस धातु (पोषक द्रव) पोषण देती है।

4. मल (मूत्र, पुरीष, स्वेद): यद्यपि ये अपशिष्ट हैं, लेकिन इनका शरीर में एक निश्चित मात्रा में रहना और समय पर बाहर निकलना अत्यंत आवश्यक है। मलों का संतुलन (न कम न ज़्यादा) भी स्वस्थ शरीर को बनाए रखने के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि दोष और धातुओं का संतुलन।

संक्षेप में, यह सूत्र आयुर्वेद की वह आधारशिला है जो बताती है कि स्वस्थ जीवन इन तीनों — दोष, धातु और मल — के संतुलन पर निर्भर करता है। इनकी स्थिरता ही स्वास्थ्य है और इनकी विषमता ही रोग है।

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