10th, 8.4, NCERT, त्रिकोणमिति की सर्वसमिका को सिद्ध करना, to prove the identity of trigonometry

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त्रिकोणमिति गणित की वह शाखा है जिसमें त्रिभुज और त्रिभुजों से बनने वाले बहुभुजों का अध्ययन होता है। त्रिकोणमिति का शब्दिक अर्थ है 'त्रिभुज का मापन'। त्रिकोणमिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है समकोण त्रिभुज का अध्ययन। त्रिभुजों और बहुभुजों की भुजाओं की लम्बाई और दो भुजाओं के बीच के कोणों का अध्ययन करने का मुख्य आधार यह है कि समकोण त्रिभुज की किन्ही दो भुजाओं (आधार, लम्ब व कर्ण) का अनुपात उस त्रिभुज के कोणों के मान पर निर्भर करता है। त्रिकोणमिति का ज्यामिति की प्रसिद्ध बौधायन प्रमेय (पाइथागोरस प्रमेय ) से गहरा सम्बन्ध है।


भारतीय गणितज्ञों ने त्रिकोणमिति के क्षेत्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान किया है। आर्यभट (476-550 ई.) ने अपने आर्यसिद्धान्त नामक ग्रन्थ में सबसे पहले ज्या (साइन), कोज्या (कोसाइन), उत्क्रम ज्या (versine) तथा व्युज्या (inverse sine) की परिभाषा की, जिससे त्रिकोणमिति का जन्म हुआ। वस्तुतः आज प्रयुक्त 'साइन' और 'कोसाइन' आर्यभट द्वारा पारिभाषित 'ज्या' और 'कोज्या' के ही बिगडे हुए रूप (अपभ्रंश) हैं। आर्यभट ने ही सबसे पहले साइन और वर्साइन (versine) (1 − cos x) की सारणी प्रस्तुत की है जो 3.75° के अन्तराल पर 0° से 90°तक के कोण के लिए है और दशमलव के चार अंकों तक शुद्ध है। अन्य भारतीय गणितज्ञों ने आर्यभट के कार्य को और आगे बढ़ाया।

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