10 - Shrimad Bhagwat Katha - Pujya Sant Shri Ramchandra Dongre Ji Maharaj

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Received from dear Bhagawad bandhus by Lord-Divine Mother-Sri Gurudev's Benevolent Grace.


Shri Ramchandra Dongre Ji Maharaj narrating Srimad Bhagwat is like a living moving heart warming waterfall of true feeling flowing from the depths of Giriraj Govardhan...straight into the Hearts of thirsting devotees and shradhaalu... Sharing with all.. this magnanimous generous bounty of blessedness....so all can have their fill to their hearts' content... Jai Shri Hari Jai Guru Bhagawan



'हमारे नीतिशास्त्रों में सेवा-सहायता को सर्वोपरि धर्म बताया गया है, और कहा गया है कि इसकी शुरुआत घर में माता-पिता की सेवा से की जा सकती है। जो व्यक्ति इन सेवा-धर्मों को अपना लेता है, वह स्वतः मोक्ष पा जाता है।
महान संत रामचंद्र डोंगरे जी महाराज एक बार गुजरात में श्रीमद्भागवत की कथा सुना रहे थे। एक युवक बड़ी तन्मयता से उनकी कथा सुन रहा था। लीला प्रसंगों को सुनकर उसकी आंखें नम हो जाती थीं। जैसे ही रात को सात बजते, वह कथा बीच में छोड़कर घर लौट जाता।
एक दिन वह कथा से पूर्व डोंगरे जी के दर्शन के लिए आया। संत जी ने उससे पूछ लिया, बेटा, तुम कथा बीच में छोड़कर क्यों चले जाते हो? युवक ने बताया कि महाराज, मेरी माताजी का निधन हो चुका है। घर में पिताजी अकेले रहते हैं। उन्हें दिखाई नहीं देता। दिन छिपते ही मैं घर पहुंचकर दीया जलाता हूं। पिता जी को दवा देता हूं। उनके लिए भोजन तैयार करता हूं। जब तक वह सो नहीं जाते, उनके चरण दबाता हूं। इसलिए पूरी कथा नहीं सुन पाता। डोंगरे जी उस अनूठे पितृभक्त के समक्ष नतमस्तक हो उठे। युवक को संकोच में देखकर बोले, मैं तो मातृ-पितृ भक्तों की कथा ही सुनाता हूं। तुम तो अपने हाथों से माता-पिता की सेवा करते हो। यह कहते-कहते उन्होंने युवक के हाथों को अपने हाथों में ले लिया। युवक की आंखों से अश्रुधारा बह उठी।' Source: https://www.amarujala.com/columns/opi​...

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