कालसर्प योग के भंग होने पर बनता है कुंडली में कालमृता योग,Kaalmrita yog and its impact in Horoscope

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जब किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु और राहु के बीच अन्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालमृता दोष का निर्माण होता है। कालसर्प योग में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आते हैं तो काल मृतयोग में सभी ग्रह केतु और राहु के बीच में आ जाते हैं और इस योग से कुंडली पर केतु का प्रभाव ज्यादा होता है
ज्योतिष शास्त्र में राहु तथा केतु को मायावी ग्रह कहते हैं। छाया ग्रह होने के बावजूद भी इन ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में आश्चर्य जनक रूप से देखने को मिलता है। राहु-केतु का प्रभाव राक्षसी प्रभाव होता हैं। अत: इनका अधिकतर अशुभ प्रभाव ही देखने को मिलता हैं।
राहु शनि के समान पाप प्रभाव देने वाला ग्रह है तथा केतु मंगल के समान क्रूर प्रभाव देता है। ज्योतिष शास्त्र में ।राहू का अधिदेवता 'काल' है तथा केतु का अधिदेवता 'सर्प' है। इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों इन दोनों ग्रहों के पाप प्रभाव से बनने वाले योग को कालसर्प और कालमृता योग कहा जाता हैं। इस स्थिति में सभी ग्रह एक दूसरे से 180 अंश के भीतर स्थित होते हैं।
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