krishna janmashtami special song 2018 (श्री कृष्णा जन्माष्टमी भजन 2018 )

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krishna janmashtami is 2 September . श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर इस वर्ष अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र एक साथ मिल रहे हैं। सोमवार का दिन होने से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जयंती स्वरूपा हो गई है। यह सुयोग ढाई दशक बाद बना है। जयंती होने से इस बार जन्माष्टमी मोक्षदायिनी और करोड़ों यज्ञों का फल प्रदान करने वाली मानी जा रही है। इस वर्ष उपवास के लिए सप्तमीयुक्त अष्टमी भी मिल रही है।
शैव संप्रदाय के लोग दो और वैष्णव संप्रदाय के लोग तीन सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाएंगे। सोमती तंत्र, ब्रह्मपुराण और श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र से रहित हो तो केवला कहलाती है। इन दोनों के साथ यदि सोमवार अथवा बुधवार का दिन हो तो इसे जयंती कहा जाता है। जयंती में अनेक पुण्यों का फल मिलता है।
रोहिणी नक्षत्र युक्त अष्टमी पर किया गया उपसास करोड़ों यज्ञों के समान फल देने वाला होता है। इस दौरान पूजा-पाठ के प्रभाव से जीवन के कष्ट दूर होते हैं।

पं. विष्णुपति त्रिपाठी के अनुसार दो सितंबर को अष्टमी तिथि शाम 05: 09 मिनट पर लगेगी जो तीन सितंबर को दोपहर 02:29 बजे तक रहेगी। वहीं रोहिणी नक्षत्र दो सितंबर को शाम 06:29 बजे लगेगा और तीन सितंबर को शाम 05:34 बजे तक रहेगा। शैव संप्रदाय में सप्तमीयुक्त अष्टमी में उपवास और रोहिणी युक्त अष्टमी में श्रीकृष्ण का जन्म कराने का विधान है। इस वर्ष इस दोनों ही स्थितियां बन रही हैं। पांच वर्ष के बाद रोहिणी युक्त अष्टमी बिना किसी अन्य योग के प्राप्त हो रही है। वैष्णव अष्टमी में उपवास करते हैं। उनके लिए श्रीकृष्णजन्माष्टमी तीन सितंबर को होगी।

पूजन विधि

केले के खंभे,आम और अशोक की पत्तियों से तोरणद्वार सजाएं। मुख्यद्वार पर मंगल कलश एवं मूसल स्थापित करें। मध्यरात्रि में गर्भ के प्रतीक खीरा से भगवान का जन्म कराएं। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम की विधि पूर्वक पूजा करें। पंचामृत स्नान के बाद षोडषोपचार पूजन करें। भगवान को वस्त्र, अलंकार इत्यादि से सुसज्जित करें। फूल,धूप, दीप समर्पित करें। अन्न रहित भोग एवं प्रसूति के समय मिष्ठान्न, सेठौरा, ओछवानी नारियल, छुहारा, पंजीरी, नारियल के मिष्ठान, मेवे आदि भगवान को अर्पित करें। रात्रि जागरण करते हुए सामूहिक रूप से भगवान की स्तुति करें।

दूसरे दिन भगवान पर कपूर, हल्दी, दही, घी, जल, तेल तथा केसर आदि चढ़ाने के बाद एक दूसरे को लगाएं। पुन: भगवान को भोग अर्पित करके पूजन करें। श्रीमद्भागवत में इसे नंदोत्सव कहा गया है।

पारण का विधान

स्नान से निवृत्त होकर सबसे पहले अपने गुरु को प्रणाम करें। हाथ में पुष्प और तुलसीदल लेकर भगवान श्रीकृष्ण का आहवान यह कहते हुए करें ‘हे जगतपतये, हे जगन्नाथ, हे पुरुषोत्तम, पार्षदों एवं भगवती देवी सहित बैकुंठ से अवतरित होकर यहां पर विराजें।’ इस प्रकार प्रभु को आसन देकर षोडषोपचार विधि से पूजन अर्चन करें। पंचामृत एवं दुग्धाभिषेक के साथ माता देवकी सहित बालकृष्ण शृंगार करें। विशेष अर्घ्य के बाद धूप, दीप, नैवेद्य, भोग अर्पित करें। पुष्पांजलि के बाद विप्र जनों को दक्षिणा देकर पारण करें।

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