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Скачать или смотреть Signs of Mantra Siddhi (मंत्र सिद्धि के लक्षण - 2) | वक्रतुण्ड कल्प, भैरवी तंत्र | व्यक्तिगत अनुभव

  • Journeys with Maa
  • 2025-07-23
  • 1910
Signs of Mantra Siddhi (मंत्र सिद्धि के लक्षण - 2) | वक्रतुण्ड  कल्प,  भैरवी तंत्र | व्यक्तिगत अनुभव
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Описание к видео Signs of Mantra Siddhi (मंत्र सिद्धि के लक्षण - 2) | वक्रतुण्ड कल्प, भैरवी तंत्र | व्यक्तिगत अनुभव

मंत्र सिद्धि के लक्षण - वक्रतुण्ड कल्प, भैरवी तंत्र, नारद पंचरात्र, इत्यादि से
व्यक्तिगत अनुभव - क्या होता है जब हम महादेव शरणागति होते है और हमारे गुरु भगवान कृष्ण होते है?

चित्त की प्रसन्नता - वक्रतुण्ड कल्प
मन की सन्तुष्टि - वक्रतुण्ड कल्प
अल्पभोजन - वक्रतुण्ड कल्प
निंद्रानाश - वक्रतुण्ड कल्प
सपने में जलाशय या पके फल - वक्रतुण्ड कल्प
सर्वत्र प्रकाश दिखना - भैरवी तंत्र
शरीर प्रकाशयुक्त हो जाना - भैरवी तंत्र

"नारद पञ्चरात्र" में कहा गया है कि जब साधक को मन्त्र सिद्धि प्राप्त होती है, तो उसके अनुभव असाधारण हो जाते हैं। बाहर और भीतर दोनों स्तर पर आश्चर्यचकित कर देने वाले दृश्य और भाव उत्पन्न होते हैं।

कभी वह अपने आपको बिल्कुल जड़ और स्थिर अनुभव करता है, और अगले ही क्षण भीतर से ऊर्जा, चेतना और आनन्द से भर उठता है। कभी ऐसा लगता है मानो आकाश से नगाड़ों की ध्वनि आ रही हो, तो कभी मधुर वाद्य यंत्रों और संगीत की आवाज सुनाई देती है।

कभी कपूर या कस्तूरी जैसी दिव्य सुगंधें महसूस होती हैं। कभी अपने शरीर को ऊपर उड़ता हुआ अनुभव करता है, तो कभी चंद्र और सूर्य से भरे हुए दिव्य आकाश का साक्षात्कार होता है।

कभी हाथी, गाय, बैल आदि की ध्वनियाँ सुनाई देती हैं, तो कभी जल से भरे बादल तेज़ी से आकाश में मंडराते हुए दिखते हैं। विचित्र तारों और आकाशगामी योगियों के दर्शन होते हैं। सूर्य के तेज में जलते हुए दृश्य दिखते हैं।

कभी हंस और मोर की मधुर आवाजें सुनाई देती हैं, कभी घने बादल दिखाई देते हैं। कभी दिन में रात जैसा अनुभव होता है और कभी रात में पूरे संसार को दिन के समान चमकता हुआ देखता है।

मंत्र सिद्धि के बाद साधक का स्वरूप भी बदल जाता है—

वह तेज और बल से भरपूर हो जाता है, उसका तेज सूर्य के समान और उसका सौंदर्य चन्द्रमा जैसा होता है।
उसकी गति पक्षी जैसी हल्की और तेज हो जाती है, और उसके भीतर एक गंभीर आत्मबल प्रकट होता है।
वह अब आसन के बंधन में नहीं पड़ता—चाहे जितनी देर तक जप करे, उसे थकान नहीं होती।

मन्त्र सिद्धि प्राप्त साधक बल, तेज, सौंदर्य, गति और गंभीरता—सभी से परिपूर्ण हो जाता है। उसका शरीर पक्षी की तरह हल्का हो जाता है, उसकी गति स्वतंत्र होती है। वह अधिक मल-मूत्र से ग्रस्त नहीं होता, न ही समय से पहले बुढ़ापा उसके शरीर पर आता है।

जब जप करने वाला इन सब चिन्हों को महसूस करता है, तब समझ लेना चाहिए कि मन्त्र सिद्ध हो चुका है और देवता प्रसन्न हैं। ऐसे समय में उसे और अधिक जप करके आत्मज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए।

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