देख देख राधा रूप अपार।dekh dekh radha roop apar|Sanskrit Saptgangam| विद्यापति पदावली | hindi B.A |

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देख देख राधा रूप अपार।dekh dekh radha roop apar|Sanskrit Saptgangam| विद्यापति पदावली | hindi B.A |
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देख-देख राधा-रूप अपार । अपरूब के विहि आनि मिलाओल खिति तल लावनि-सार। अंगहि अंग अनंग मुरछायत हेरए पड़ए अथीर । मनमथ कोटि मथन करू जे जन से हेरि महि मधि गीर । कत-कत लखिमी चरण-तल नेओछए रंगिनि हेरि विभोरि । करू अभिलाख मनहिं पद-पंकज अहोनिसि कोर अगोरि ।।

अर्थ- कवि ने इस पद में राधा के अपार रूप सौन्दर्य का वर्णन किया है- खो राधा के अपार रूप सौन्दर्य को देखो। कौन रचनाकार (किस विधाता) ने स भूतल पर ऐसा अपूर्व सौन्दर्य का सार सारे संसार से एकत्र कर एक स्थान र लाकर मिला दिया है। अथवा सौन्दर्य का सार तत्व राधा का जो रूप दिखायी

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