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Скачать или смотреть ।। शुक्राचार्य कैसे बने दैत्यों के गुरु ❓❓।। और ।। उन्हें भगवान विष्णु से इतनी नफरत क्यों थी ।। 🤔🤔🤔

  • Kahani
  • 2025-12-19
  • 22
।। शुक्राचार्य कैसे बने दैत्यों के गुरु ❓❓।। और ।। उन्हें भगवान विष्णु से इतनी नफरत क्यों थी ।। 🤔🤔🤔
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Описание к видео ।। शुक्राचार्य कैसे बने दैत्यों के गुरु ❓❓।। और ।। उन्हें भगवान विष्णु से इतनी नफरत क्यों थी ।। 🤔🤔🤔

शुक्राचार्य की कहानी 🤔 🤔 🤔 🤔

Shukracharya story 🤔 🤔 🤔 🤔


शुक्राचार्य कैसे बने दैत्यों के गुरु ❓ ❓❓ ❓

और

उन्हें भगवान विष्णु से इतनी नफरत क्यों थी 🤔🤔😧

उन्हें नवग्रह में शामिल क्यों किया 🫤🫤🤔

शुक्राचार्य का जन्म 🤔🤔🤔🤔

Shukracharya kaise bane daityon ke guru ❓ ❓❓ ❓

Aur

Unhe bhagwan Vishnu se itni nafrat kyu thi 🤔🤔😧

Unhe navgrah me shamil kyu kiya 🫤🫤🤔

Shukracharya ka janm 🤔🤔🤔🤔


Kahani summary:

★ शुक्राचार्य कैसे बने दैत्यों के गुरु ★


1. शुक्राचार्य कैसे बने दैत्यों के गुरु और उन्हें भगवान विष्णु से इतनी नफरत क्यों थी उन्हें नवग्रह में शामिल क्यों किया गया
आईए जानते है कहानी में


ऋषि शुक्राचार्य असुरों के गुरु माने जाते हैं लेकिन उनके असुरों के गुरु बनने की कथा बेहद ही दिलचस्प है। बाद में ऋषि शुक्राचार्य को नवग्रहों में भी स्थान मिला लेकिन उससे पहले उन्होंने असुरों का गुरु बनने का फैसला क्यों किया चलिए इस बारे में जानते हैं...

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऋषि शुक्राचार्य महर्षि भृगु के पुत्र और भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद के भांजे थे।
शुक्राचार्य का जन्म शुक्रवार को हुआ, इसलिए महर्षि भृगु ने इसका नाम शुक्र रखा था। जब शुक्राचार्य थोड़े बड़े हुए, तो उनके पिता ने उन्हें अंग ऋषि के पास शिक्षा के लिए भेज दिया।


वहाँ शुक्राचार्य के साथ उनके अंग ऋषि के पुत्र बृहस्पति भी पढ़ते थे। माना जाता है कि शुक्राचार्य की बुद्धि बृहस्पति की तुलना में ज्यादा कुशाग्र थी, लेकिन फिर भी अंगऋषि अपे पुत्र की शिक्षा पर अधिक ध्यान देते थे और इस कारण शुक्राचार्य ने उस आश्रम को छोड़ सनक ऋषि और गौतम ऋषि से शिक्षा लेने लगे। शिक्षा पूर्ण होने के बाद जब शुक्राचार्य को पता चला कि बृहस्पति को देवों ने अपना गुरु नियुक्त किया है, तो उन्होंने भी ईर्ष्यावश दैत्यों के गुरु बनने की मन में ठान ली। लेकिन असुर हमेशा युद्ध में देवों से हारते थे।

इसलिए, शुक्राचार्य मन ही मन ये सोचने लगे कि अगर वह भगवान को शिव को प्रसन्न करके उनसे संजीवनी मंत्र प्राप्त कर लेते हैं, तो वह दैत्यों को विजय दिलवा सकते हैं। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या शुरु कर दी। गुरु को तपस्या में लीन देख सभी दैत्य शुक्राचार्य की माता ख्याति के शरण में चले गए और जो भी देवता दैत्य को मारने आता, ख्याति उसे मूर्छित कर देतीं या फिर अपनी शक्तियों से लकवा ग्रस्त कर देतीं। ऐसे में दैत्य बलशाली हो गए और धरती में पाप बढ़ने लगा।


शुक्राचार्य क्यों करते थे भगवान विष्णु से नफ़रत
जब दैत्यों का अत्याचार बढ़ने लगा, तो पापियों का नाश करने के लिए भगवान विष्णु ने शुक्राचार्य की मां और भृगु ऋषि की पत्नी ख्याति का सुदर्शन चक्र से सिर काट दिया क्योंकि उनके रहते देव कभी भी असुरों का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। जब इस बात का पता शुक्राचार्य को लगा, तो उन्हें भगवान विष्णु पर बड़ा क्रोध आया और उन्होंने मन ही मन उनसे बदला लेने की ठान ली।





शुक्राचार्य एक बार फिर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गए और भगवान शिव से संजीवनी मंत्र प्राप्त किया। शुक्राचार्य ने दैत्यों के राज्यों को पुनः स्थापित कर अपनी मां की मृत्यु का बदला लिया। ऐसा माना जाता है कि तब से शुक्राचार्य और भगवान विष्णु एक दूसरे के शत्रु बन गए। उधर जब महर्षि भृगु को जब इस बात की पता चला कि भगवान विष्णु ने उनकी पत्नी ख्याति का वध कर दिया है, तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि उन्होंने एक स्त्री का वध किया है, इसलिए उनको बार-बार पृथ्वी पर मां के गर्भ से जन्म लेना होगा और गर्भ में रह कर कष्ट भोगना पड़ेगा।


नवग्रह में कैसे शामिल हुए शुक्राचार्य जब भी दैत्यों और देवताओं के बीच कोई भी युद्ध होता, तो शुक्राचार्य घायल या मृत दानवों को पुनः जीवित कर देते,जिससे दानवों का स्वर्ग समेत पृथ्वी पर आधिपत्य स्थापित हो गया। बाद में देवताओं की मदद करने के लिए महादेव ने शुक्राचार्य को निगल लिया, ताकि वो अपनी विद्याओं का दुरुपयोग असुरों को प्राण देने में ना करें। बाद में, शुक्राचार्य ने महादेव के पेट से ही उन्हें वापस प्रसन्न कर लिया और महादेव ने शुक्राचार्य को शुभ ग्रह का आशीर्वाद देते हुए नव ग्रहों में शामिल कर दिया।

अब ये सब जानकारी पुराणों द्वारा ली गई है
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