khubsurat Ghazal

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दुश्मन से रिश्ता जोड़ के अच्छा नहीं किया
दिल को मिरे मरोड़ के अच्छा नहीं किया

मां को अकेला छोड़ के अच्छा नहीं किया
जन्नत से मुंह को मोड़ के अच्छा नहीं किया

छतरी थी तेरे सर पे दुआ वालदेन की
तूने उसी को तोड़ के अच्छा नहीं किया

तुम ही तो इक सहारा मिरी जिंदगी का थे
तुमने भी साथ छोड़ के अच्छा नहीं किया

मैं तुझको बोलता हूं उम्य्या के नौजवां
दामन अली का छोड़ के अच्छा नहीं किया
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