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Скачать или смотреть अक्षय तृतीया पौराणिक व्रत कथा, पूजन विधि, महत्व, Akshay Tritiya 2020 katha, pujan vidhi, importance

  • Devlok ki Kahaniyan देवलोक की कहानियां
  • 2020-04-21
  • 271
अक्षय तृतीया पौराणिक व्रत कथा, पूजन विधि, महत्व, Akshay Tritiya 2020 katha, pujan vidhi, importance
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अक्षय तृतीया क्या है (Meaning of Akshay Tritiya)
वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आखा तीज कहते हैं। इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।[1] इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय तृतीया की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।

अक्षय तृतीया का महत्व (Importance and Significance of Akshay Tritiya)
अक्षय तृतीया के दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। अक्षय तृतीया के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।

अक्षय तृतीया की पूजन विधि (Akshay Tritiya Poojan Vidhi)
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ, गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित की जाती है। फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि की दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण भोज कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान भी पुण्यकारी माना गया है। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।

अक्षय तृतीया की पहली कथा (Akshay Tritiya ki katha 1)
अक्षय तृतीया की कथा के अनुसार धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का बहुत धनी प्रतापी राजा बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।

अक्षय तृतीया की दूसरी कथा (Akshay Tritiya ki katha 2)
स्कंद पुराण में उल्लेख है कि अक्षय तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम रूप में जन्म लिया। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।

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