गीता उत्सव भाग 2

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विरासत से विकास' की संकल्पना के मूल विचार में सनातन परम्पराएँ, मान्यताएँ और उसके कल्याणकारी सामाजिक परिणाम रहे हैं। श्रीम‌द्भगवद्‌गीता के कर्मयोग सिद्धांत से निष्ठापूर्वक अपने कर्मपथ पर दृढ़ होकर चलने की अभिप्रेरणा मिलती है..
वस्तुतः श्रीम‌द्भगवद्‌गीता भारतीय मनीषा के दर्शन और चिंतन का मूल आधार है, जो स‌ङ्कर्म के माध्यम से मनुष्य को अपने में ही दिव्यता का अनुभव करा देती है।
भगवान श्रीकृष्ण की विद्यास्थली सांदीपनि आश्रम, उज्जैन रही है। हमारा सौभाग्य ही है कि हम सभी इस पावन भूमि के निवासी हैं। इस नाते यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है कि हम भगवान श्रीकृष्ण के जीवन आदर्शों एवं वचनों को अपने दैनिक कार्य- व्यवहार में लाये, क्योंकि जहाँ श्रीकृष्ण हैं, वहीं श्री है, वहीं समृद्धि है, वहीं विजय है, वहीं विभूति है और यही अचल नीति है। श्रीमद्भगवद्‌गीता की अमरवाणी इसी परम सत्य से साक्षात्कार कराती है। श्रीम‌द्भगवद्‌गीता की सहस्त्रों-सहस्त्र सदियों की यह प्रवाहमान विचार-यात्रा स्वयं में ही इसके शिखरस्थ होने का प्रत्यक्ष साक्ष्य है। भगवान श्रीकृष्ण के इस अमृतमयी संदेश का पुनस्मरण ही आयोजन का अभिप्रेत है..

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