संघ का प्रचारक बनना: भारत निर्माण की एक अनोखी साधना
संघ का प्रचारक बनना केवल एक कार्य नहीं, बल्कि एक तपस्या है। यह राह आसान नहीं, बल्कि चुनौतियों से भरी हुई होती है। आज की दुनिया में जहाँ लोग घर, परिवार, व्यापार और सुख-सुविधाओं को सर्वोपरि मानते हैं, वहीं संघ के प्रचारक इन सबसे ऊपर उठकर राष्ट्रसेवा को अपना धर्म मानते हैं।
कुछ लोग घर छोड़ते हैं धन कमाने के लिए, कुछ ज्ञान पाने के लिए, कुछ यश प्राप्त करने के लिए। लेकिन संघ का प्रचारक अपना घर, मकान, दुकान, खेत, खलिहान और समस्त सांसारिक मोह छोड़कर निकलता है भारत को समृद्ध, सशक्त, स्वच्छ, स्वस्थ और स्वावलंबी बनाने के लिए।
संघ का प्रचारक क्या छोड़ता है?
जहाँ आज का युवा बंगलों और फार्महाउस के सपने देखता है, वहीं प्रचारक भारत माता के लिए हर सुख-सुविधा को त्याग देता है।
कोई करोड़पति बनने के लिए घर छोड़ता है।
कोई सांसद/विधायक बनने के लिए।
कोई अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए।
लेकिन संघ के प्रचारक निकलते हैं:
वीर सावरकर, डॉ. हेडगेवार, गुरु गोलवलकर, बाबा साहब अंबेडकर के सपनों को साकार करने। छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंह, आचार्य चाणक्य की कल्पनाओं को साकार करने।
उनका उद्देश्य क्या होता है?
संघ का प्रचारक भारत को केवल एक भौगोलिक राष्ट्र नहीं मानता, बल्कि एक जीवंत, सांस्कृतिक, आत्मीय इकाई मानता है। वे भारत को बनाना चाहते हैं:
भ्रष्टाचार मुक्त
नशा मुक्त
अपराध मुक्त
घुसपैठ मुक्त
धर्मांतरण मुक्त
आतंकवाद मुक्त
जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, पंथवाद से मुक्त भारत
यह कार्य किसी किताब या भाषण से नहीं होता, बल्कि जमीनी स्तर पर शाखा चलाकर, बच्चों और युवाओं में राष्ट्रवाद की भावना जगाकर होता है।
संघ की शाखा: राष्ट्र निर्माण की प्रयोगशाला
संघ की शक्ति उसकी शाखाओं से आती है। यह शाखा केवल व्यायाम करने की जगह नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण की प्रयोगशाला है। यहाँ बालक और युवक सीखते हैं:
अनुशासन
नेतृत्व
सेवा
राष्ट्र के प्रति समर्पण
कई लोग संघ को गलत समझते हैं क्योंकि वे कभी उसकी शाखा में नहीं गए। यदि आप सच में जानना चाहते हैं कि संघ क्या करता है, तो एक सप्ताह शाखा में जाकर देखिए।
संघ का गीत: राष्ट्रभक्ति का मंत्र
"नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे" – यह केवल गीत नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण का मंत्र है। इसे भारत के हर स्कूल में अनिवार्य किया जाना चाहिए। इससे बच्चों के भीतर राष्ट्रवाद की भावना जन्म लेगी।
यदि संघ नहीं होता, तो क्या होता?
करोड़ों लोग धर्मांतरण का शिकार हो चुके होते।
भारत में अराजकता फैल चुकी होती।
राष्ट्रभक्ति की भावना कमजोर हो जाती।
संघ की वजह से आज भी भारत की सांस्कृतिक और वैचारिक रीढ़ मजबूत है।
क्या आप संघ से जुड़ सकते हैं?
हाँ, बिल्कुल!
शाखा शुरू करने के लिए 50 लोग नहीं चाहिए। केवल 2 लोग भी शाखा शुरू कर सकते हैं।
अपने मोहल्ले, पार्क, गांव में संघ की शाखा शुरू कीजिए। अपने नजदीकी प्रचारक से संपर्क कीजिए। संघ की किताबें पढ़िए: "बंच ऑफ थॉट्स", डॉ. हेडगेवार की जीवनी आदि।
शुरुआत मुश्किल लग सकती है, लेकिन एक बार आपने हिम्मत दिखाई, तो आप बदलाव खुद महसूस करेंगे।
संघ से जुड़ने के लाभ:
जीवन में अनुशासन आएगा।
सोच सकारात्मक बनेगी।
घर की संस्कृति बदलेगी।
समस्याओं का समाधान अपने आप मिलेगा।
यह काम केवल प्रचारकों का नहीं, हम सबका है। अगर वकील, डॉक्टर, शिक्षक, व्यापारी सभी थोड़ा थोड़ा सहयोग करें, तो भारत को एक समृद्ध राष्ट्र बनने से कोई रोक नहीं सकता।
एक विनम्र अनुरोध:
मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि इस वीडियो को अधिक से अधिक शेयर कीजिए।
एक सप्ताह के लिए स्वयं या अपने बच्चों को संघ की शाखा में भेजिए।
संघ को जानिए, समझिए और फिर निर्णय लीजिए।
भारत के लिए, भारत माता के लिए, भारत की संस्कृति के लिए —
संघ से जुड़िए, शाखा शुरू कीजिए।
#RSS #SanghPracharak #RashtriyaSwayamsevakSangh #IndiaFirst #NationBuilding #BharatMata #DrHedgewar #Savarkar #Chanakya #Nationalism
Информация по комментариям в разработке