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Скачать или смотреть दशहरा के दौरान क्यों करते हैं देवी अपराजिता की पूजा? और उनके उपाय ||

  • the_divine_infinity
  • 2025-10-01
  • 99
दशहरा के दौरान क्यों करते हैं देवी अपराजिता की पूजा? और उनके उपाय ||
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Описание к видео दशहरा के दौरान क्यों करते हैं देवी अपराजिता की पूजा? और उनके उपाय ||

क्यों करते हैं देवी अपराजिता की पूजा?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अपराजिता पूजा को विजयादशमी का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। अपराजिता आश्विन शुक्ल दशमी को पहले अपराजिता का पूजन किया जाता है। अपराजिता का अर्थ है 'जो कभी पराजित न हो'। यह देवी शक्ति की संहारकारी और रौद्र शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। शस्त्र पूजा से पहले अपराजिता देवी की पूजा करते हैं। यह देवी हमें युद्ध सहित अन्य कई क्षेत्रों में विजय दिलाती है। इसीलिए दशमी के दिन देवी अपराजिता की पूजा होती है। जब देवी दुर्गा ने नव दुर्गाओं के रूप में दानवों का संपूर्ण विनाश किया, तो वह अपनी मूल शक्ति, आदिशक्ति अपराजिता के रूप में हिमालय में अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद श्रीराम ने उनकी आराधना की तो देवी ने उन्हें विजयी होने का वरदान दिया।
विजय मुहूर्त में की गई अपराजिता देवी की पूजा से भक्त को मिलती है हर संघर्ष में विजय और असफलता पर सफलता।

दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, भारत के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह दिन न केवल भगवान श्रीराम द्वारा रावण के वध का प्रतीक है, बल्कि मां दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक राक्षस के संहार की स्मृति में भी मनाया जाता है। इस दिन का नाम “विजयादशमी” इसलिए पड़ा क्योंकि यह विजय प्राप्त करने का शुभ मुहूर्त माना जाता है। भारत के हर राज्य में दशहरा की परंपरा अलग-अलग रूपों में निभाई जाती है, लेकिन अपराजिता पूजा सभी स्थानों पर एक समान भाव से की जाती है। यह पूजा उस देवी की होती है जो कभी पराजित नहीं होती -देवी अपराजिता ।यह पूजा देवी दुर्गा के अपराजिता स्वरूप की आराधना है, जो जीवन में विजय, शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करती है। इस दिन विजय मुहूर्त में की गई पूजा को हर प्रकार की सफलता का प्रतीक माना गया है।

देवी अपराजिता कौन हैं?

अपराजिता देवी को “अजेय शक्ति” का प्रतीक माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि जब देवता और असुरों के बीच संग्राम हुआ, तब देवी दुर्गा ने “अपराजिता” रूप धारण किया। इस रूप ने सम्पूर्ण ब्रह्मांड में विजय की शक्ति का संचार किया।‘अपराजिता’ का अर्थ है- वह जो कभी हार न माने, जिसे कोई पराजित न कर सके। शास्त्रों के अनुसार, देवी अपराजिता को विजय और सफलता की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। वे अपने भक्तों को साहस, दृढ़ निश्चय, और असफलता से लड़ने की शक्ति देती हैं।

अपराजिता पूजा का महत्व -क्यों की जाती है यह पूजा?

जीवन में विजय की प्राप्ति के लिए: कहा जाता है कि दशहरा के दिन अपराजिता देवी की पूजा करने से व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है – चाहे वह व्यापार, शिक्षा, परिवार या राजनीति हो।
असफलता और शत्रु पर विजय के लिए: अपराजिता पूजा शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करती है। यह पूजा व्यक्ति को आत्मबल और आत्मविश्वास प्रदान करती है।
आध्यात्मिक शक्ति का जागरण: यह पूजा व्यक्ति के भीतर स्थित दिव्य ऊर्जा को जागृत करती है। देवी अपराजिता की आराधना से मन स्थिर और विवेकपूर्ण होता है।
नवरात्रि के समापन का प्रतीक: नौ दिनों की दुर्गा पूजा और साधना के बाद दशमी को देवी को अपराजिता स्वरूप में पूजकर विदा किया जाता है। इसे “विजय और कृतज्ञता का दिन” कहा गया है।

अपराजिता पूजा की परंपरा और विधि

अपराजिता पूजा सामान्यतः विजय मुहूर्त में की जाती है। यह मुहूर्त सूर्यास्त के पहले 1.5 घंटे का माना गया है। इस समय पूजा करने से अपराजिता देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

पूजा विधि विस्तार से:

स्थान चयन: पूजा के लिए घर का पूर्व या उत्तर दिशा वाला हिस्सा चुनें। इसे शुद्ध जल और गंगाजल से पवित्र करें।
अपराजिता देवी की स्थापना: मिट्टी या चित्र के रूप में देवी अपराजिता की प्रतिमा स्थापित करें। कई स्थानों पर शमी वृक्ष के नीचे पूजा की परंपरा भी है।
पूजा सामग्री: जल, चावल, फूल, दीपक, धूप, चंदन, नारियल, सुपारी, सिंदूर, फल और मिठाई रखें।
मंत्र उच्चारण: पूजा के समय भक्त निम्न मंत्र का जाप करते हैं – “ॐ अपराजितायै नमः।”
आरती और प्रार्थना: देवी से प्रार्थना करें कि वे जीवन में सभी कठिनाइयों को दूर करें और सफलता का आशीर्वाद दें।
दान और प्रसाद वितरण:पूजा के बाद गरीबों को दान देने की परंपरा है। माना जाता है कि इससे देवी प्रसन्न होती हैं।

शास्त्रीय मान्यता – अपराजिता पूजा का उल्लेख

अपराजिता पूजा का उल्लेख स्कंद पुराण और देवी भागवत पुराण में मिलता है।इन ग्रंथों में कहा गया है कि जब भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की, तब उन्होंने देवी अपराजिता की पूजा कर युद्ध में सफलता का आशीर्वाद मांगा था।इसी प्रकार, पांडवों ने भी वनवास समाप्ति के बाद विजय मुहूर्त में देवी अपराजिता की पूजा कर अपने शस्त्र पुनः प्राप्त किए थे।इसलिए यह पूजा न केवल देवी की आराधना है, बल्कि “विजय की कामना और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति” भी है।

विजय मुहूर्त और सीमा-भेदन की परंपरा

दशहरा के दिन एक विशेष अनुष्ठान किया जाता है जिसे सीमा-भेदन कहा जाता है।प्राचीन समय में राजा या योद्धा युद्ध पर निकलने से पहले अपराजिता पूजा करते थे और राज्य की सीमा पार कर “सीमा-भेदन” करते थे।
यह परंपरा विजय प्राप्ति और आत्मविश्वास का प्रतीक है।आज भी यह परंपरा सैनिकों और राजघरानों में जीवित है -जो इस दिन शस्त्र-पूजन और विजय मुहूर्त में प्रार्थना करते हैं।

अपराजिता पूजा के लाभ

1. सभी प्रकार की सफलता प्राप्त होती है।
2. शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है।
3. जीवन में स्थिरता और आत्मविश्वास आता है।
4. परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
5. मनुष्य का कर्म, परिश्रम और निर्णयशक्ति सशक्त होती है।

अपराजिता पूजा का संदेश – हार मत मानो

अपराजिता पूजा हमें यह सिखाती है कि , “जीवन में कोई भी परिस्थिति ऐसी नहीं होती जिसे श्रद्धा और साहस से पराजित न किया जा सके।” यह पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानव आत्मा की अजेयता का उत्सव है।

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