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डॉ. सुरेखा तिवारी | फोन 📞 : 088843 68700 (ऑनलाइन और इन-पर्सन अपॉइंटमेंट ऑनलाइन या कॉल द्वारा बुक किया जा सकता है ) | होम्योपैथिक सलाहकार और मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता | होम्योपैथिक क्लिनिक AECS लेआउट, बैंगलोर, इंडिया
गुस्सा एक बहुत बड़ा शब्द बनता जा रहा है। आजकल हम अपने क्लीनिक में लगभग रोज़ देखते हैं कि लोग कहते हैं, "मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है!" कोई कहता है, "बच्चे अच्छे से नहीं पढ़ रहे, मैं इतनी मेहनत करती हूँ, फिर भी गुस्सा आता है!" तो कोई कहता है, "साइकिल चलानी नहीं आ रही, मैंने बहुत कोशिश की, फिर भी गुस्सा आ रहा है!" एक व्यक्ति ने तो यहां तक कहा, "मैं इतनी मेहनत से पैसा कमाता हूँ, लेकिन जब बच्चे ठीक से खाना नहीं खाते या बाहर से खाना ऑर्डर कर लेते हैं, तो बहुत गुस्सा आता है!" गुस्से के इतने सारे रूप हैं और इसकी अलग-अलग तीव्रता (डिग्री) होती है। अगर इसे शब्दों में समझने की कोशिश करें, तो गुस्सा तब आता है जब कोई हमारी उम्मीदों के विपरीत कुछ कहता या करता है, जिससे हमारा मूड खराब हो जाता है। कभी-कभी हमें खुद भी नहीं पता होता कि हमें इतना गुस्सा क्यों आ रहा है। लेकिन असल में, यह आग हमारे अंदर ही जल रही होती है। एक पुराने कवि ने कहा है, "गुस्सा एक ज़हर है, जिसे तुम दूसरों की गलती के कारण खुद पीते हो, लेकिन मरते तुम ही हो!" गुस्सा आने और हमारे प्रतिक्रिया देने के बीच एक छोटा सा अंतराल होता है। अगर हम उस क्षण को पहचान लें और एक सेकंड के लिए ठहरकर सोच लें, तो हम अपनी प्रतिक्रिया को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं। सबसे पहली बात, जब गुस्सा आए, तो उसकी वजह को समझने की कोशिश करें। मान लीजिए, आपका बच्चा स्कूल से आया और उसने बैग उठाकर बिस्तर पर फेंक दिया, जबकि आपने अभी-अभी कमरा साफ किया था। इस पर आपको गुस्सा आ सकता है, लेकिन यह भी संभव है कि बच्चा खुद किसी टेंशन में हो। अगर आप एक पल रुककर सोच लें और गुस्से को शांत करने की कोशिश करें, तो हो सकता है कि आप उसे डांटने के बजाय शांति से समझा सकें। गुस्से की वजह को समझने से दो फायदे होते हैं। पहला, जो गुस्सा अंदर उमड़ रहा था, वह शांत हो जाता है। दूसरा, जिससे गलती हुई थी, वह व्यक्ति शायद अगली बार वही गलती न दोहराए। इसलिए, गुस्से को एक्सप्रेस करना सीखें, चिल्लाने के बजाय सही शब्दों में अपनी बात कहें। अगर बहुत गुस्सा आ रहा हो, तो एक कदम पीछे हटें। तुरंत प्रतिक्रिया न दें। अगर संभव हो, तो कहें, "मैं अभी इस पर कुछ नहीं कहूँगा/कहूँगी, लेकिन कल ज़रूर बात करेंगे!" या "मैं इस बारे में शाम को सोचकर बात करूँगा/करूँगी।" इससे आपको भी समय मिलेगा और आपकी प्रतिक्रिया भी अधिक संतुलित होगी।
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