Magadh ka utkarsh | Magadh | Magadh Samrajya | Magadha Empire | Magadh kal in Hindi | Historic India

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मौर्यों के उत्थान के पहले की दो सदियों में मगध साम्राज्य के रूप में भारत में सबसे बड़े राज्य की स्थापना बिम्बिसार, अजातशत्रु और महापड्ड नन्द जैसे कई साहसी और महत्त्वाकांक्षी शासकों के प्रयासों से हुई। उन्होंने अपने राज्यों का निरंतर विस्तार किया और उसे सशक्त बनाया परन्तु मगध के विस्तार का यही एक कारण नहीं था। कुछ दूसरे महत्त्वपूर्ण कारण भी थे। लोहे के समृद्ध भण्डार मगध की आरंभिक राजधानी राजगीर के निकट स्थित थे। इस कारण मगध के शासक अपनी सेना के लिये लिए प्रभावी हथियार बनवा सके। उनके शत्रु सरलता से ऐसे हथियार प्राप्त नहीं कर सकते थे। लोहे की खानें पूर्वी मध्यप्रदेश में भी मिलती हैं, जो उज्जैन के अवन्ति राज्य से अधिक दूर नहीं थी। 500 ई.पू. के आसपास उज्जैन में निश्चय ही लोहे को गलाने और तपाकर ढालने का भी काम होता था। वहाँ के लौहार अच्छी किस्म के हथियार तैयार करते थे। यही कारण है कि उत्तर भारत की प्रभुता के लिए अवन्ति और मगध के बीच कड़ा संघर्ष हुआ। उज्जैन पर अधिकार करने में मगध को लगभग सौ साल का समय लगा।
मगध के लिए कुछ और भी अनुकूल परिस्थितियाँ थी। मगध की दोनों राजधानियाँ- पहली राजगीर और दूसरी पाटलिपुत्र, सामरिक दृष्टि से अत्यंत सुरक्षित स्थानों पर थीं। राजगीर पांच पहाड़ियों के एक समूह से घिरा होने के कारण दुर्भेद्य थी। तोपों का आविष्कार बहुत बाद में हुआ। उन दिनों राजगीर जैसे दुर्ग को तोड़ना सरल काम नहीं था। ईसा पूर्व पांचवीं सदी में मगध के शासक अपनी राजधानी पाटलिपुत्र ले गए। केन्द्र भाग में स्थित इस स्थल के साथ समस्त दिशाओं से संचार-सम्बन्ध स्थापित किए जा सकते थे। पाटलिपुत्र गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर स्थित था। पाटलिपुत्र से थोड़ी दूरी पर सरयू नदी भी गंगा से मिलती थी। पूर्व-औद्योगिक दिनों में, जब संचार में बड़ी कठिनाइयाँ थीं, नदी मार्गों का अनुसरण करते हुए सेना उत्तर, पश्चिम, दक्षिण, और पूर्व की ओर आगे बढ़ती थी। इसके अतिरिक्त लगभग चारों ओर से नदियों द्वारा घिरे होने के कारण पटना की स्थिति भी अभेड्ड बन गई थी। सोन और गंगा इसे उत्तर तथा पश्चिम की ओर से घेरे हुए थीं, तो पुनपुन इसे दक्षिण और पूर्व की ओर से घेरे हुए थी। इस प्रकार, पाटलिपुत्र सही अर्थों में एक जलदुर्ग था। उन दिनों इस नगर पर अधिकार करना सरल नहीं था।
मगध राज्य मध्य गंगा के मैदान में स्थित था। इस अत्यधिक उपजाऊ प्रदेश से जंगल साफ हो चुके थे। भारी वर्षा होती थी, इसलिए सिंचाई के बिना भी इलाके को उत्पादक बनाया जा सकता था। प्राचीन बौद्ध ग्रंथों के उल्लेखों के अनुसार इस प्रदेश में कई प्रकार के चावल पैदा होते थे। प्रयाग के पश्चिम की ओर के प्रदेश की अपेक्षा यह प्रदेश कहीं अधिक उपजाऊ था। परिणामतः यहाँ के किसान काफी अतिरिक्त अनाज पैदा करते थे जिसे शासक अपनी सेना के लिये एकत्रित कर लेते थे।
मगध के शासकों ने नगरों के उत्थान और मुद्राचलन से भी लाभ उठाया। उत्तर-पूर्वी भारत में व्यापार-वणिज्य की वृद्धि के कारण शासक पण्य-वस्तुओं पर मार्ग-कर लगा सकते थे और इस प्रकार अपनी सेना के खर्च के लिए धन एकत्र कर सकते थे। सैनिक संगठन के मामले में मगध को एक विशेष सुविधा प्राप्त थी। भारतीय राज्य घोड़े और रथ के उपयोग से भलीभांति परिचित थे किंतु मगध ही पहला राज्य था जिसने अपने पड़ोसियों के विरुद्ध हाथियों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया। देश के पूर्वी भाग से मगध के शासकों के पास हाथी पहुंचते थे। यूनानी स्रोतों से जानकारी मिलती है कि नन्दों की सेना में 6000 हाथी थे। दुर्र्गों को भेदने, सड़कों तथा यातायात की दूसरी सुविधाओं से रहित प्रदेशों और कच्छी क्षेत्रों में हाथियों का उपयोग किया जा सकता था। इन्हीं सब कारणों से मगध को दूसरे राज्यों को हराने और भारत में प्रथम साम्राज्य स्थापित करने में सफलता मिली।







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