Visit Chamoli | Delhi to Chamoli | अंग्रेजों का बसाया गांव | Gwaldam की खूबसूरती | Uttarakhand

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ग्वालदम गॉंव उत्तराखंड के चमोली और बागेश्वर के मध्य में बसा हुआ है।ग्वालदम से आगे बागेश्वर जिले की सीमा शुरू हो जाती है।एक तरह से ये गाँव गढ़वाल और कुमाऊँ के मध्य प्रवेश मार्ग है।ग्वालदम को अंग्रेजो ने बसाया था।प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद अंग्रेजों ने भारतीय जवानों और अधिकारियों को अलाइड फोर्सेस के साथ युद्ब लड़ने के लिए सम्मानित किया और हर रैंक के अनुसार सभी को ग्वालदम में जमीनों का आबंटन भी किया।

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ग्वालदम गॉंव में भी माँ नंदा की पूजा अर्चना की जाती है।बधाण पट्टी में कई गांवों में इसका आयोजन होता है।नंदा की डोली बेदनी बुग्याल से वापसी में ग्वालदम गाँव में आती है।ग्वालदम गॉंव चमोली जिले की सबसे बड़ी ग्राम सभा है जहाँ करीब ढाई सौ से अधिक परिवार रहते है।

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अंग्रेजों ने ग्वालदम में चाय खाना और डाक खाना भी स्थापित किया।1905 में जब लॉर्ड कर्जन ने ग्वालदम से आगे जाने की इच्छा जताई तो उनके लिए ग्वालदम से लेकर जोशीमठ तपोवन तक पूरी 6 फुट की पैदल रोड बनाई गई जिसे आज भी लार्ड कर्जन ट्रैक कहा जाता है।


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लार्ड कर्जन रोड जो चमोली जिले के ग्वाल्दम से क्वारी पास होते हुए तपोवन तक जाती है।देश की आजाद होने के बाद भी उच्च हिमालय क्षेत्रों में आज भी कई गांवों में सडक नही पहुची लेकिन 116 साल पहले वायसराय जार्ज कर्जन के लिए 1902 में 6 फुट की 200 किमी सडक बना दी गई।खुद लार्ड कर्जन ने इस रोड पर 200 किमी का सफर ग्वाल्दम से लेकर तपोवन तक किया था।इस ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर रोड को में सुविधाओं के अभाव में पर्यटकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पडता है,जगह जगह रोड क्षतिग्रस्त है और कई जगत खतरनाक भी है। 

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ग्वालदम एक ऐसा हिल स्टेशन गाँव है जहाँ की आबोहवा आपको आनंद और सुकून प्रदान करती है।घने जंगल के बीच में स्थित समुद्र तल से 1920 मीटर की ऊँचाई पर बसा ग्वालदम अंग्रेजों की पहली पसंद हुआ करता था।यहाँ से त्रिशूल(7120)नंदा घुँघटी(6309 मी) चोटियाँ निहारना एक अलग रोमांच पैदा करता है।ये गाँव गढ़वाल और कुमाऊँ दोनों जगहों के प्रमुख शहरों से जुड़ा है।आप बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग में कर्णप्रयाग यहाँ पहुँच सकते है।जबकि कुमाऊँ में कौसानी से मात्र 40 किमी की दूरी पर ग्वालदम बसा है।
ग्वालदम गाँव से ऊपर एक छोटा कस्बा है जहाँ रात्रि विश्राम और खाने के लिए होटल और ढाबे मौजूद है।जब ग्वालदम से आगे सड़क नही थी तब बेदनी बुग्याल,रूपकुंड और क्वारी पास ट्रैक ग्वालदम से पैदल शुरू होता था।

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एक जमाने में यहाँ के आलू और सेब काफी मशहूर हुआ करते थे।गढ़वाल और कुमाऊँ के मध्य में स्थित ये इलाका आलू,सेब और चाय की मंडी हुआ करता था।हालांकि अभी बहु सेब और आलू का उत्पादन होता है लेकिन जंगली जानवरों का आतंक इतना ज्यादा है कि अब लोगों ने खेतों को बंजर छोड़ दिया है।

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ग्वालदम गाँव से ही विश्व प्रसिद्ध मैत्री अंदोलन की शुरुआत हुई थी।1994 में पर्यावरणविद कल्याण सिंह रावत ने शादी विवाह के शुभ मौके पर पेड़ लगाने की अपील की और ऐसे पूरे विश्व में सराहना मिलती गई।पद्मश्री कल्याण सिंह रावत के इस सराहनीय पहल से अब तक हजारों जोड़े अपनी शादी में पेड़ लगा चुके है।

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ग्वालदम गाँव बाजार से करीब 3 किमी की दूरी पर नीचे बसा हुआ है।हर साल जब लोकजात यात्र होती है तो इस गॉंव में भी इस लोकपर्व को मनाया जाता है जिसे सेलपाती कहाँ जाता है।तीन दिवसीय ये पर्व गाँव में पूरे रीति रिवाज, पारंपरिक वेशभूषा और ढोल दमाऊ के साथ मनाया जाता है।ग्वालदम से कुछ दूरी पर माँ बधाणगढ़ी का मन्दिर स्थित है।

प्रमुख शहरों से ग्वालदम की दूरी

ऋषिकेश से ग्वालदम -238 km
कौसानी से ग्वालदम-40
पंतनगर हवाई अड्डा-250
नैनिताल से दूरी-150

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ऋषिकेश से आगे आ वेदर रोड के निर्माण का कार्य चल रहा है।पूरी सड़क डबल लेन कि बनाई जा रही है जिससे आप जल्दी ऋषिकेश से कर्णप्रयाग पहुँच जाएंगे।इसके साथ ही ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन का भी कार्य प्रगति पर है।आने वाले समय में आप मात्र 2 से 3 घने में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेल मार्ग से पहुँच जाएंगे और 2 घंटे में कर्णप्रयाग से ग्वालदम पहुँच जाएंगे।

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