#mahabharat #ekalvya
मैं हूं एकलव्य🔥|| Jisne Bina Guru Ke Arjun Ko Bhi Peeche Chhod Diya || Mahabharat Ki Sacchi
#thekalpsingh
Jisne Bina Guru Ke Arjun Ko Bhi Peeche Chhod Diya || Mahabharat Ki Sacchi
Jisne Bina Guru Ke Arjun Ko Bhi Peeche Chhod Diya || Mahabharat Ki Sacchi
Jisne Bina Guru Ke Arjun Ko Bhi Peeche Chhod Diya || Mahabharat Ki Sacchi
कोई पूछे ना पूछे...
मैं हूँ उस मिट्टी का तीरंदाज़,
जिसने अर्जुन से भी आगे चलना सीखा,
बिना किसी गुरु के...
फिर भी गुरु को भगवान माना।
ना ताज मिला, ना शस्त्र मिला,
बस जंगल का सन्नाटा और माटी की सिलवट मिला।
द्रोण से माँगा ज्ञान – मिला उपेक्षा का वार,
क्योंकि मेरा नाम ‘एकलव्य’ था, ना कोई महल, ना दरबार।
मैं रोया नहीं... मैंने ठाना —
खुद को ही बनाऊँगा धनुर्धर, खुद को ही सिखाऊँगा वादा।
गुरु की मूर्ति बनाई, दिल से चरणों में झुका,
हर सुबह तीर चलाया, हर रात सपना बुना।
मैं एकलव्य हूँ, जंगल मेरा गुरुकुल था,
ना applause, ना तालियाँ, पर हौंसला मुकम्मल था।
मैंने खुद को गढ़ा, तप की आग में जला,
ना था कोई मंच, पर आत्मा से बड़ा कोई क़िला?
फिर आया दिन जब द्रोण ने मेरा हुनर देखा,
एक तीर — और अर्जुन की संकल्पना हिल गई गहरी रेखा।
गुरु ने माँगा गुरु-दक्षिणा — मेरा दाहिना अंगूठा,
दिल काँपा... पर वचन था — गुरु जो बोले, वो सच्चा।
मैंने अंगूठा काट दिया — कोई आह भी न निकाली,
ना सवाल, ना प्रतिरोध — बस श्रद्धा ही निकाली।
लोग पूछते हैं – “क्या वो सही था?”
मैं कहता हूँ — “हाँ, क्योंकि वो मेरी गुरु-भक्ति थी, अधूरी नहीं थी।”
एकलव्य हूँ, माटी का अर्जुन,
ना किसी राजसी पंक्ति में, फिर भी सबसे दृढ़ और पूर्ण।
धनुर्विद्या मेरी आत्मा थी, भक्ति मेरा धर्म,
गुरु की आज्ञा ही मेरे जीवन का मर्म
नहीं पूछता मेरा नाम,
ना महाभारत में मेरी जयघोष है,
पर वो जंगल, वो मिट्टी,
अब भी जानती है कि
“वो एकलव्य था... जिसने अर्जुन से आगे तीर चलाया था।
Информация по комментариям в разработке