काशी प्रसिद्ध ब्राह्मणी शारदा और कबीर साहेब | Kabir Saheb 2D Animation Moral Story | Sant Rampal Ji

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Script of story
1. एक समय की बात है, काशी शहर में एक शारदा नाम की ब्राह्मण महिला रहती थी। शारदा के पुत्र का नाम सर्वानंद था, जो की उस समय के ब्राह्मणों में सबसे ज्ञानी और विद्वान माना जाता था। सर्वानंद की धारावाहिक संस्कृत के सामने कोई नही टिक पाता था।
इसलिए ब्राह्मण जाति में होने के कारण शारदा अपनी जाति और धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानती थी। शारदा बीमार रहने लग गई थी। इतनी बीमार हो गए थी की चारपाई से उठ ही नही सकती थी। अपनी जिंदगी के अंतिम स्वास गिन रही थी।


2. शारदा ने बीमारी से छुटकारा पाने के लिए हरसंभव प्रयास किए थे। लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकलता। धर्मगुरु कहते थे की ये आपकी बीमारी प्रारब्ध कर्मो के कारण है। इसे भोगना ही पड़ेगा।

3. परमेश्वर कबीर अपने लीलामय शरीर में आए हुए थे तथा एक जुलाहे की भूमिका निभाते हुए सत्संग और सत उपदेश दिया करते थे। कबीर साहेब जी द्वारा बताई गई भक्ति साधना से कई लोगो को कष्ट तथा असाध्य रोगों से निजात मिली थी। जिनमे कई ब्राह्मण जाति के भक्त भी परमात्मा से उपदेशी थे।

4. शारदा का एक रिश्तेदार ब्राह्मण भी कबीर साहेब जी का भक्त था। एक दिन शारदा से मिलने वह उसके घर गया।

इतना कहकर ब्राह्मण वहां से चला गया।
शारदा सोचती रह गई और रिश्तेदार से अच्छा व्यवहार न करने पर अपने आप को कोस रही थी।

ऐसा सोचकर शारदा अपने भाग्य को कोस रही थी।

5. कुछ दिनों बाद उसी नगर में शारदा के मकान से कुछ दूरी पर कबीर साहेब किसी भक्त के घर सत्संग करने आए।
घर के भक्तो ने आसपास के लोगो को सत्संग में आने के लिए आमंत्रित किया। शारदा के घर भी एक महिला गई।

इतना कहकर वह चली गई।

सारा दिन शारदा सोचती रही की क्या किया जाए। अंत में उसने एक उपाय निकाला।


6. शाम के समय कबीर साहेब सत्संग करने बैठ गए। भक्त और बहने कबीर साहेब से आशीर्वाद ले कर बैठ रहे थे। एक दीपक की रोशनी थी।
शारदा भी लंबा घूंघट डाल कर आई। शारदा ने कबीर साहेब को प्रणाम किया। जैसे ही कबीर साहेब ने शारदा को आशीर्वाद दिया, शारदा की बीमारी बिल्कुल समाप्त हो गई। शारदा ने घूंघट उठाया ही भी था की कबीर शरण ने कहा


7. तभी शारदा ने अपना घूंघट उतार दिया और कबीर साहेब से माफी मांगी। शारदा ने अपनी सारी पीड़ा बताई और समाज के सामने सच्चाई उजागर की। तब शारदा ने कबीर साहेब से दीक्षा ग्रहण कर ली और सतभक्ति प्रारंभ की।

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