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  • TheRichest
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गणेश चतुर्थी की कहानी (The Story of Ganesh Chaturthi)

गणेश चतुर्थी का उत्सव भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसकी एक पौराणिक कथा बहुत प्रसिद्ध है।

कहते हैं एक बार की बात है, जब माँ पार्वती स्नान करने जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर के उबटन (स्क्रब) से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। इस प्रकार एक सुंदर, तेजस्वी और बलशाली बालक का जन्म हुआ। माँ पार्वती ने उसे अपना पुत्र माना और उसे द्वारपाल बनाकर यह आदेश दिया कि जब तक वह स्नान कर रही हैं, कोई भी अंदर न आने पाए।

थोड़ी देर बाद भगवान शिव वहाँ आए और अंदर जाने लगे। उस बालक ने उन्हें रोक दिया। भगवान शिव अपने ही घर में रुकावट होने पर क्रोधित हो गए। उन्होंने बालक को समझाने का प्रयास किया, लेकिन बालक माँ के आदेश का पालन करते हुए टस से मस न हुआ। यह देखकर भगवान शिव के क्रोध की सीमा न रही और उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि उस बालक को हटाया जाए।

भगवान शिव के गणों और उस बालक के बीच भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन माँ पार्वती के तेज से उत्पन्न उस बालक को कोई परास्त नहीं कर पाया। अंततः भगवान शिव स्वयं क्रोध में आए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।

जब माँ पार्वती स्नान करके बाहर आईं और उन्होंने यह दृश्य देखा तो उनका हृदय दुःख और क्रोध से भर गया। उन्होंने संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने का निश्चय किया। देवताओं में खलबली मच गई। सभी भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे।

माँ पार्वती के क्रोध को शांत करने और स्थिति को संभालने के लिए, भगवान शिव ने आदेश दिया कि उत्तर दिशा में जाकर सबसे पहले मिलने वाले जीव का सिर काटकर लाया जाए और उस बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित किया जाए। भगवान शिव के गण उत्तर दिशा में गए और सबसे पहले उन्हें एक हाथी का बच्चा दिखाई दिया। उन्होंने उसका सिर काटकर ले आए।

भगवान शिव ने वह हाथी का सिर उस बालक के धड़ पर रखा और उसे पुनः जीवित कर दिया। सभी देवताओं ने उस बालक को आशीर्वाद दिया और अमरत्व प्रदान किया। भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि सृष्टि में कोई भी शुभ कार्य उनकी पूजा के बिना शुरू नहीं होगा। माँ पार्वती का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने उस गजानन बालक को अपने हृदय से लगा लिया। भगवान शिव ने उन्हें प्रथम पूज्य और गणों का स्वामी घोषित किया। इस प्रकार उनका नाम 'गणपति' या 'गणेश' पड़ा।

यही कारण है कि आज भी कोई भी नया काम, त्योहार या उत्सव हम भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के साथ शुरू करते हैं। गणेश चतुर्थी का यह पावन पर्व हमें सिखाता है कि बुद्धि, समृद्धि और समस्याओं के निवारण के लिए हमें गणपति बप्पा की शरण में आना चाहिए।

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