राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले गायक को क्यों एक मंदिर में भजन गाने की अनुमति नहीं है ?

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अगर बात करें सम्मन व पुरस्कारों की, तो येसुदास साहब को उनकी आवाज ने वो स्थान दिलाया जो कम ही लोगों को प्राप्त होता है। उन्हें भारत सरकार ने वर्ष 1975 में पद्मश्री, वर्ष 2002 में पद्मभूषण व वर्ष 2017 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। उन्हें आठ बार राष्ट्रीय पुरस्कार से व 26 बार केरल स्टेट के बेस्ट सिंगर का अवॉर्ड दिया जा चुका है। उन्हें फिल्मफेयर ने भी दो बार अवॉर्ड दिया है।
उन्हें कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों की सरकारों और देसी-विदेशी संस्थाओं ने पुरस्कार दिया है। कहते हैं एक बार तो येसुदास ने लोगों से अपील की कि वो उन्हें और सम्मान या पुरस्कार न दें। हालांकि बाद में उन्होंने स्पष्ट करते हुए बताया था कि इस अपील का आशय था कि वो स्मान के लालच में नहीं गाते हैं, और नयी पीढ़ी के कलाकारों को सम्मान या अवॉर्ड मिले जिससे ुन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिले।
अब बात इन महान गायक के उस सपने की, जो अबतक है अधूरा। दरअसल, येसुदास जन्म से तो ईसाई हैं, लेकिन सनातन धर्म और इसके देवी-देवता के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। उन्होंने सनातन देवी देवताओं की सैकड़ों स्तुतियां गायी हैं और शबरीमाला के अयप्पा मंदिर के द्वार तो उनके गाये भजन हरिवर्षणम से ही खुलते और बंद होते हैं।
उन्हें केरल में तिरुवनन्तपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर में भी जाने की अनुमति मिली जहां गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। येसुदास को उनकी दिव्य आवाज के कारण वॉयस ऑफ गॉड, यानी भगवान की आवाज तक कहा जाता है।
लेकिन इतना कुछ होने के बावजूद एक मंदिर ऐसा भी है, जिसमें भजन गाने की उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पायी है। केरल में दक्षिण का द्वारका कहे जाने वाले गुरुवायूर श्रीकृष्ण मंदिर में बैठ कर कृष्ण भक्ति भजन गाने की उनकी तीव्र इच्छा है, लेकिन मंदिर प्रशासन ने उन्हें अबतक इसकी अनुमति नहीं दी है। हालांकि जब पहली बार मंदिर प्रशासन ने उनकी अपील को खारिज किया तो उन्होंने एक मलयालम भजन गाया जिसके बोल थे गुरुवायूर अंबला नागायल
यह भजन इतना मार्मिक था कि जिसने भी इसका मर्म समझा, वह रोए बिना न रह सका, लेकिन इसपर भी मंदिर प्रशासन का दिल नहीं पसीजा। वर्ष 2021 में शिवागिरी श्री नारायण ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी सचिदानंद ने भी मंदिर प्रशासन से अपील की तो बोर्ड के अध्यक्ष केबी मोहनदास ने कहा कि वह इसका सम्मान करते हैं, लेकिन मंदिर के तंत्री, यानी प्रधान पुजारी की आज्ञा जरूरी है, और वो इसपर खामोश हैं।
के जे येसुदास हर साल अपना जन्मदिन पर वो केरल के कोल्लूर स्थित मोकंबिका मंदिर में मां सरस्वती की उपासना करते हैं।
येसुदास जी की पत्नी का नाम प्रभा है। इनके तीन पुत्र हैं- विनोद, विजय तथा विशाल। दूसरे पुत्र विजय येसुदास एक संगीतकार हैं, जिन्हें वर्ष 2007 तथा 2013 में सर्वश्रेष्ठ पुरुष गायक के तौर पर 'केरल राज्य फ़िल्म अवॉर्ड' मिला था।
वर्ष 2012 में वो मुंबई से केरल शिफ्ट हो गये, और वहां अपना स्टुडियो बना कर कई फिल्में भी बनायीं। हालांकि कहा जाता है कि सनातन में आस्था रखने के कारण कट्टरपंथियों से येसुदास को धमकियां मिल रही थीं, और यही उनके मुंबई छोड़ने की वजह बनी, लेकिन खुद इन गायक ने इसे स्वीकार नहीं किया। उनका कहना था कि वो अपने घर वापस आकर बेहद प्रसन्न महसूस कर रहे हैं।
केरल के कोचीन में एक ईसाई परिवार में 10 जनवरी, 1940 को जन्मे इस महान गायक का पूरा नाम कट्टासेरी जोसेफ येसुदास है। इनके पिता ऑगस्टाइन जोसेफ़ एक मंझे हुए मंचीय कलाकार एवं गायक थे, जबकि मां एलिस कुट्टी या एलिजाबेथ एक गृहणी थीं। ऑगस्टाइन हर हाल में अपने बड़े बेटे येसुदास को पार्श्वगायक बनाना चाहते थे। येसुदास के पिता, जब अपने कैरियर के शीर्ष पर थे, तब कोच्चि स्थित उनके घर पर दिन रात दोस्तों और प्रशंसकों का जमावड़ा लगा रहता था; किंतु जब बुरे दिन आए, तब बहुत कम ही लोग ऐसे थे, जो मदद
येसुदास का बचपन ग़रीबी में बीता, पर उन्होंने उस छोटी-सी उम्र से अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे और ठान लिया था कि अपने पिता का सपना पूरा करना ही उनके जीवन का उद्देश्य है। उनके पहले गुरू उनके पिता के एक दोस्त व संगीतकार कुंजन वेलू भगवथार थे। महज सात साल की आयु में उन्होंने कोच्ची फोर्ट में आयोजित संगीत प्रतियोगिता को जीतकर सबको चौंका दिया।
येसुदास से कहा गया कि ईसाई होकर कर्नाटक संगीत क्यों सीख रहे हो। इन बातों को अनसुना कर वो आगे बढ़ते रहे। फिर एक समय ऐसा भी आया जब वो अपने 'आर.एल.वी. संगीत अकादमी' की फ़ीस भी बमुश्किल भर पाते थे। ऐसा भी दौर था, जब चेन्नई के संगीत निर्देशक उनकी आवाज़ में दम नहीं पाते थे और आकाशवाणी त्रिवेन्द्रम ने उनकी आवाज़ को प्रसारण के लायक नही समझा, लेकिन जिद के पक्के उस कलाकार ने सब कुछ धैर्य के साथ सहा।
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