स्कूल चले हम अभियान न कि

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स्कूल चले हम अभियान उन आदिवासी बच्चों के लिए जो मजबूरीवश कलम की जगह कुल्हाड़ी पकड़कर जंगल चले हम अभियान में सम्मिलित हो गए हैं। घाटीगाँव क्षेत्र में सहरिया आदिवासी बच्चे अधिकतम या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं या फिर बाहर कमाने चले जाते हैं। मैंने बहुत सारे बच्चों से बात की तो पता चला कि कुछ ऐसे बच्चे हैं जो सुबह से कुल्हाड़ी लेकर जलाऊ लकड़ी लेने जंगल जाते हैं और माता पिता धान का रोपा लगाने किसानों के यहां चले जाते हैं। आप अनपढ़ थे इसमें आपकी कोई गलती नहीं लेकिन आपके बच्चे अनपढ़ रहेंगे तो ये किसी अपराध से कम नहीं। सरकार द्वारा स्कूलों में यूनिफार्म, मध्यान भोजन दिया जाता है उसके बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ रहा है क्योंकि परिजनों द्वारा विशेष रुचि नहीं ली जाती है। काम में हाथ बटवा लो तो बड़े बुजुर्ग बच्चों के काम से खुश हो जाते हैं और पढ़ाई के प्रति चिंता कम कर देते हैं। हजारों को प्रेरित करने के लिए एक बच्चे की ज़िंदगी में सकारात्मक परिवर्तन लाने के उद्देश्य से मेरे पास एक सेट स्कूल की सामग्री थी जिससे भारत आदिवासी नाम के बच्चे को सजा धजाकर प्राथमिक स्कूल लेकर गए जो पिछले एक साल से स्कूल छोड़ चुका था और जलाऊ लकड़ी का गठ्ठा लेकर रास्ते से गुजर रहा था। बच्चे और पौधे एक जैसे ही होते हैं जिनके इर्दगिर्द नकारात्मक चीजें पनपती हैं और इन्हें जल्दी दुष्प्रभावित करती हैं। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए माली की तरह देखभाल करने की जरूरत होती है। जुलाई महीने में नए बस्ते, नई किताबें जिनसे खुशबू आती है, नई कॉपियाँ, पूठा और नई ड्रेस के लिए यदि जिज्ञासा व उत्साह बच्चों के मन में नहीं है तो इसमें परिजनों की कमी है जिसे दूर करने आवश्यकता है क्योंकि बच्चे देश से पहले माता पिता के भविष्य होते हैं।
#schoollife

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