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Скачать или смотреть ये कौन सा भारत है भाई !

  • JM News
  • 2025-10-12
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ये कौन सा भारत है भाई !
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राज्य में हिंदुओं, खासी और जयंतिया समुदायों के लिए पर्याप्त क्रिमेटोरियम नहीं हैं। कई क्षेत्रों में निकटतम दाह-स्थल 10 किलोमीटर से अधिक दूर होता है, जिससे शव को लंबी दूरी तक ले जाना पड़ता है। इससे परिवारों को आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक कष्ट होता है।
मेघालय हाई कोर्ट ने 2024-2025 में कई PIL (जनहित याचिकाओं) में इसकी निंदा की है, जहां अदालत ने सरकार को एक महीने के अंदर सुविधाएं चालू करने का आदेश दिया। उदाहरण के लिए, शिलांग जैसे प्रमुख शहरों में भी क्रिमेटोरियम अपर्याप्त या गैर-कार्यात्मक हैं।
भूमि अधिग्रहण और स्थान की तंगी:पहाड़ी इलाकों में भूमि सीमित है, और भारी वर्षा के कारण दाह-स्थलों का रखरखाव मुश्किल होता है। पर्यावरणीय जोखिम (जैसे जल स्रोतों का प्रदूषण) भी बढ़ जाते हैं।
हाई कोर्ट ने साझा क्रिमेटोरियम के लिए भूमि अधिग्रहण का निर्देश दिया है, लेकिन प्रक्रिया धीमी है।
सामुदायिक विवाद और साझा उपयोग की अनिच्छा:हिंदू और आदिवासी (खासी-जयंतिया) समुदाय एक ही तरह का दाह संस्कार करते हैं, लेकिन वे क्रिमेटोरियम साझा करने को तैयार नहीं। प्रत्येक समुदाय अपना अलग स्थान चाहता है, जो विवाद पैदा करता है।
ईसाई समुदाय (जो दफनाते हैं) के कब्रिस्तानों से अलग क्रिमेटोरियम की मांग पर भी टकराव होता है। अदालत ने अमीकस क्यूरी (न्यायिक सलाहकार) को स्टेकहोल्डर्स के साथ बैठकें आयोजित करने का आदेश दिया है।
विरोध क्यों होता है?विरोध मुख्य रूप से स्थानीय आदिवासी समुदायों (खासी, जयंतिया) और कभी-कभी ईसाई बहुसंख्यकों से आता है। कारण निम्नलिखित हैं:विरोध का कारण
विस्तार
धार्मिक और सांस्कृतिक भेदभाव
आदिवासी समुदाय अपनी परंपराओं (जैसे निआम खासी या निआम त्रेई) को अलग रखना चाहते हैं। हिंदू दाह संस्कार को "बाहरी" मानकर साझा उपयोग का विरोध करते हैं। ईसाई दफन प्रथा के कारण क्रिमेशन को अस्वीकार्य लगता है।
भूमि और संसाधनों पर कब्जे का डर
भूमि की कमी के कारण नए क्रिमेटोरियम के निर्माण को स्थानीय लोग "अनावश्यक कब्जे" के रूप में देखते हैं। आदिवासी भूमि अधिकार (जैसे सिक्स्थ शेड्यूल) के तहत वे बाहरी (गैर-आदिवासी) हितों का विरोध करते हैं।
पर्यावरणीय चिंताएं
पहाड़ी क्षेत्र में दाह से धुआं, राख और जल प्रदूषण की आशंका। भारी बारिश वाले इलाके में अनियंत्रित दाह स्थल मिट्टी कटाव और जल स्रोत दूषित कर सकते हैं।
सामाजिक-राजनीतिक तनाव
हिंदू अल्पसंख्यक होने से कभी-कभी हिंसक विरोध (जैसे 2020 में HNLC द्वारा बंगाली हिंदुओं को धमकी)। हाई कोर्ट ने इसे असमानता (संविधान के अनुच्छेद 38(2)) के रूप में देखा है।

वर्तमान स्थिति और समाधान प्रयास:हाई कोर्ट का हस्तक्षेप: 2025 में अदालत ने PIL का दायरा बढ़ाकर ईसाई कब्रिस्तानों को भी शामिल किया। एक समिति गठित की गई है जो भूमि आवंटन और साझा सुविधाओं पर काम कर रही है। अगस्त 2025 तक कुछ समुदायों ने साझा क्रिमेटोरियम पर सहमति जताई है।
सरकारी कदम: राज्य सरकार ने नए क्रिमेटोरियम निर्माण का प्रस्ताव रखा, लेकिन कार्यान्वयन धीमा है। अमीकस क्यूरी ने जिलाधिकारियों को 10 किमी दायरे में सुविधाओं की जांच का आदेश दिया।
सामाजिक सुझाव: कुछ रिपोर्ट्स में ईसाई समुदाय को क्रिमेशन अपनाने की सलाह दी गई है (जैसा वैश्विक स्तर पर हो रहा है), लेकिन यह संवेदनशील मुद्दा है।

ये चुनौतियां हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों (संविधान के अनुच्छेद 25) का उल्लंघन दर्शाती हैं। यदि स्थिति में सुधार न हो, तो परिवारों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है या वैकल्पिक (जैसे दफन) अपनाना पड़ता है, जो उनकी परंपरा के विरुद्ध है।

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