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Скачать или смотреть Satish Pendam Birsa Brigade। गोंडवाना साम्राज्य की रानी दुर्गावती की जीवनी और इतिहास शौर्य गाथा,

  • Birsa Brigade
  • 2025-10-04
  • 6288
Satish Pendam Birsa Brigade। गोंडवाना साम्राज्य की रानी दुर्गावती की जीवनी और इतिहास शौर्य गाथा,
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Описание к видео Satish Pendam Birsa Brigade। गोंडवाना साम्राज्य की रानी दुर्गावती की जीवनी और इतिहास शौर्य गाथा,

आज 5 अक्टूबर रानी दुर्गावती जयंती*
⏩ रानी दुर्गावती का साहस नारीशक्ति के लिए प्रेरणा दायक है जिन्होंने अपने जीवन मैं 14 वर्षों तक सफलता पूर्वक स्वतंत्र शासन किया । आओ उनके इतिहास के बारे जाने ।

रानी दुर्गावती की जीवनी और इतिहास

⏩ रानी दुर्गावती का नाम भारत की उन महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में आता है जिन्होंने मात्रभूमि और अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया । रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरत सिंह की पुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी थीं । इनका राज्य क्षेत्र दूर-दूर तक फैला था । रानी दुर्गावती बहुत ही कुशल शासिका थीं इनके शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी । इनके राज्य पर ना केवल अकबर बल्कि मालवा के शासक बाजबहादुर की भी नजर थी । रानी ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े और उनमें विजय भी पाई ।

रानी दुर्गावती का जन्म और बचपन

⏩रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजा कीरत राय ( कीर्तिसिंह चंदेल ) के परिवार में कालिंजर के किले में 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था । राजा कीरत राय की पुत्री का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन होने के कारण उसका नाम दुर्गावती रखा गया । वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में आता है । इनके पिता राजा कीरत राय का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता था इनका सम्बन्ध उस चंदेल राज वंश से था राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में खदेड़ा था और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया । कन्या दुर्गावती का बचपन उस माहोल में बीता जिस राजवंश ने अपने मान सम्मान के लिये कई लडाइयां लड़ी । कन्या दुर्गावती ने इसी कारण बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी प्राप्त की ।

रानी दुर्गावती और उनका राज्य

⏩रानी दुर्गावती की राजधानी सिंगोरगढ़ थी । वर्तमान में जबलपुर-दमोह मार्ग पर स्थित ग्राम सिंग्रामपुर में रानी दुर्गावती की प्रतिमा से छः किलोमीटर दूर स्थित सिंगोरगढ़ का किला बना हुआ है | सिंगोरगढ़ के अतिरिक्त मदन महल का किला और नरसिंहपुर का चौरागढ़ का किला रानी दुर्गावती के राज्य के प्रमुख गढ़ों में से एक थे । रानी का राज्य वर्तमान के जबलपुर, नरसिंहपुर , दमोह, मंडला, छिंदवाडा और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था । रानी के शासन का मुख्य केंद्र वर्तमान जबलपुर और उसके आस-पास का क्षेत्र था । अपने दो मुख्य सलाहकारों और सेनापतियों आधार सिंह कायस्थ और मानसिंह ठाकुर की सहायता से राज्य को सफलता पूर्वक चला रहीं थीं । रानी दुर्गावती ने 1550 से 1564 ईसवी तक सफलतापूर्वक शासन किया । रानी दुर्गावती के शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और उनका राज्य भी लगातार प्रगति कर रहा था । रानी दुर्गावती के शासन काल में उनके राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गई । रानी दुर्गावंती ने अपने शासन काल में कई मंदिर, इमारते और तालाब बनवाये । इनमें सबसे प्रमुख हैं जबलपुर का रानी ताल जो रानी दुर्गावती ने अपने नाम पर बनवाया , उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरिताल और दीवान आधार सिंह के नाम पर आधार ताल बनवाया । रानी दुर्गावती ने अपने शासन काल में जात-पात से दूर रहकर सभी को समान अधिकार दिए उनके शासन काल में गोंड , राजपूत और कई मुस्लिम सेनापति भी मुख्य पदों पर आसीन थे । रानी दुर्गावती ने वल्लभ सम्प्रदाय के स्वामी विट्ठलनाथ का स्वागत किया । रानी दुर्गावती को उनकी कई विशेषताओं के कारण जाना जाता है वे बहुत सुन्दर होने के सांथ-सांथ बहादुर और योग्य शासिका भी थीं । उन्होंने दुनिया को यह बलताया की दुश्मन की आगे शीश झुकाकर अपमान जनक जीवन जीने से अच्छा मृत्यु को वरन करना है ।

रानी दुर्गावती और बाज बहादुर की लड़ाई

⏩शेर शाह सूरी के कालिंजर के दुर्ग में मरने के बाद मालवा पर सुजात खान का अधिकार हो गया जिसे उसके बेटे बाजबहादुर ने सफलतापूर्वक आगे बढाया । गोंडवाना राज्य की सीमा मालवा को छूती थीं और रानी के राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी। मालवा के शासक बाजबहादुर ने रानी को महिला समझकर कमजोर समझा और गोंडवाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई ।
बाजबहादुर इतिहास में रानी रूपमती के प्रेम के लिये जाना जाता है । 1556 में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया । रानी की सेना बड़ी बहादुरी के सांथ लड़ी और बाजबहादुर को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और रानी दुर्गावती की सेना की जीत हुई । युद्ध में बाजबहादुर की सेना को बहुत नुकसान हुआ । इस विजय के बाद रानी का नाम और प्रसिद्धी और अधिक बढ़ गई ।

रानी दुर्गावती और अकबर की लडाई

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