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Скачать или смотреть क्यों राजा शल्य ने नकुल और सहदेव के मामा होने के बावजूद कौरव की तरफ से युद्ध किया?

  • Dhaarmo Rakshitaa Rakshitah धर्मो रक्षति रक्षितः
  • 2023-11-21
  • 284
क्यों राजा शल्य ने नकुल और सहदेव के मामा होने के बावजूद कौरव की तरफ से युद्ध किया?
कौरवों के सेनापतियों की मृत्यु कैसे हुईकैसे हुआ कौरव पक्ष के सभी सेनापतियों का अंतकौरवों के साथ छल हुआशल्य की मृत्यु कैसे हुईभीष्म को क्यों मिली बाणों की शैयाक्या श्री कृष्ण ने इन्हें छ्ल से मारा थाअर्जुन और कर्ण का अंतिम युद्धद्रोणाचार्य की मृत्यु कैसे हुईकैसे पांडवो के मामा शल्य बने दुर्योधन के सेनापतिपांडवों से लोहा लेने के लिए कौरवों ने बुलाया अलंबूसमहाभारत 18 दिन का युद्धभीष्म का अंतिम युद्धकर्ण की मृत्यु कैसे हुईभीष्म की मृत्यु कैसे हुई
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क्यों राजा शल्य ने नकुल और सहदेव के मामा होने के बावजूद कौरव की तरफ से युद्ध किया?
जब महाभारत का काल व तिथि निश्चित हो गई थी तब शल्य अपने भांजों के पक्ष में पांडवों की ओर से युध्द करने निकले थे। शल्य स्वयं न सिर्फ एक महान योद्धा थे बल्कि उनकी सेना भी अत्यंत शक्तिशाली और पराक्रमी थी। जब दुर्योधन को इसका पता चला तो वो परेशान हो गया और किसी भी तरह से शल्य पाण्डवों के पक्ष में युद्ध न करे इसके उपाय करने लगा।
जब शकुनि को इस चिंता का पता चला तो उसने सुझाव दिया कि किसी अन्य उपायों से शल्य को पांडवों का साथ देने से रोक पाना असंभव है अतः उसने एक युक्ति खोजी कि जिस रास्ते से शल्य अपनी सेना के साथ आने वाले थे उस राह में उनके लिए पड़ाव डाल दिए और आराम, खाने पीने आदि की उत्तम व्यवस्था भी की। जब शल्य ने पूँछा के ये सभी प्रबंध किसने किये रो उनको बताया गया कि ये सभी प्रबंध उनके प्रिय भांजे ने किया है। यहाँ ये जानना आवश्यक है कि दुर्योधन भी शल्य का भांजा ही लगा अतः उसने झूँठ नहीं बोला। उधर शल्य ने समझा के नकुल-सहदेव ने ये प्रबंध किए हैं अतः न सिर्फ उन्होंने आतिथ्य ग्रहण किया बल्कि ढेरों आर्शीवचन भी कहे।
चलते समय उन्होंने अपने भांजों से मिलने की इच्छा जताई तो दुर्योधन आदि उनके समक्ष खड़े हो गए। ये देखकर शल्य हतप्रभ रह गए और दुविधा में पड़ गए क्योंकि निकले थे वो पांडवों के पक्ष में युध्द करने को किंतु अन्न ग्रहण कर लिया दुर्योधन का, इस ही कारण विवश होकर उन्होंने दुर्योधन के पक्ष में युद्ध किया।
शल्यवाद नाम से मशहूर जो एक तरीका है अपने विरोधी या शत्रु को परास्त करने का उस वाद के जनक माने जाते हैं शल्य मामा। ये वैसे तो माद्री के भाई थे मगर इन्होंने कौरवों का साथ दिया युद्ध मे।
इसके कारण अनेक थे। शल्य भी एक महान योद्धा ही थे। वह ये बात भी जानते थे कि ये भारतीय युद्ध दोनो पक्षों के सारे योद्धाओं को नष्ठ करके ही समाप्त होना है। ये सब तो भगवान श्रीकृष्ण ने पहले से ही तय किया था। युद्ध तो एक निमित्त या बहाना था सब पृथ्वी के भर को कम करने का।
संक्षेप में कहे तो शल्य का किरदार तो केवल आचार्य द्रोण के मृत्यु के पश्चात ही शुरू हुआ। शल्य को कर्ण का सारथ्य करने का सुझाव दिया था दुर्योधन ने। क्योंकि अर्जुन का सारथी तो साक्षात भगवान ही थे एक अच्छे सारथी बिना कर्ण को लड़ाई में जितने में काफी कष्ट होता तब शल्य बड़ी आसानी से सारथ्य करने की बात तो मान गए मगर शर्त एक थी चाहे शल्य जो भी कहे कर्ण ने उसके साथ एक राजा जैसा ही व्यवहार करना होगा नही तो वो सारथ्य नही करेंगे।
युद्ध के मैदान में जाते वक्त कर्ण को इतना प्रताड़ित किया था शल्य ने और सब बाते कर्ण चुपचाप सुनता रहा क्योंकि उसे एक अच्छे सारथी की जरूरत थी।
यह जो तरीका शल्य ने अपनाया था कर्ण के व्यक्तित्व को ठेस पहुचने का वह तो एक प्रकार से पांडवों को साथ देने जैसा ही था।
यही तरीका है दुश्मन को बगैर लड़ाई के आधा परास्त करने का जो आज भी शल्यवाद नामसे मशहूर है। कितने देश और व्यक्ति केवल उन्हें उलाहना देनेसे या उनको कमजोर दिखानेसे आधे पस्त हो जाते हैं। आज भी ऐसे कितने देश है जो जेवल पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध से मानसिक रूप से परास्त महसूस करते हैं।
अब आप भारत मे ही देखिये केवल अंग्रेजी भाषा साफ नही बोल पानेके कारण कितने लोग अपने आप में न्युनगण्ड जैसे मानसिकता में चले जाते हैं जबकि जापान,चीन और जर्मनी ऐसे कितने देश जहां के लोग अंग्रेजी बिल्कुल नही जानते फिर भी दुनिया के समृद्ध तथा तांत्रिक विकास के मामले में सर्वोच्च है । भारतीय लोगों पर यही शल्यवाद पिछले 150 वर्षोंसे राज कर रहा है।
शल्य की भूमिका युद्ध मे बहोत महत्वपूर्ण ही थी।




#mahabharat #pandav #arjun #radhakrishna #hanuman



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