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Скачать или смотреть खाटूश्यामजी की अनसुनी कहानी खाटूश्याम इस त्यौहार के बारे में कोई नहीं जानता Khatushyam untold story

  • Brijdarshanm
  • 2025-10-02
  • 140
खाटूश्यामजी की अनसुनी कहानी खाटूश्याम इस त्यौहार के बारे में कोई नहीं जानता  Khatushyam untold story
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Описание к видео खाटूश्यामजी की अनसुनी कहानी खाटूश्याम इस त्यौहार के बारे में कोई नहीं जानता Khatushyam untold story

खाटूश्यामजी की अनसुनी कहानी खाटूश्याम इस त्यौहार के बारे में कोई नहीं जानता Khatushyam untold story- महाभारत से जुड़ा हुआ है टेसू का नाता, जानें- क्या है ब्रज में 'टेसू-झेंझी' की परंपरा?
टेसू की कहानी महाभारत काल के शक्तिशाली योद्धा बर्बरीक से जुड़ी है, जो खाटू श्याम के नाम से भी जाने जाते हैं। यह कहानी बताती है कि कैसे श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश मांग लिया और उन्हें तीन डंडों पर रखकर युद्ध देखने का वरदान दिया, जिसके बाद उनका विवाह नहीं हो पाया। इसी कारण, हर साल शरद पूर्णिमा पर टेसू और झेंझी का प्रतीकात्मक विवाह किया जाता है, जिसमें टेसू को तीन डंडों पर टिकाया जाता है।

नवरात्री समाप्त होते ही दसवीं से 5 दिन तक खेले जाने वाला टेसू-झेंझी का त्यौहार शुरू हो जाता है.जहन में धुंधली तस्वीरों ही सही पर सभी को याद होगा कि बचपन में 5 दिनों तक घर-घर जाकर,अनाज और पैसा इखट्टा करते थे.पूर्णमासी के दिन टेसू और झेंझी की शादी करा कर उनका विसर्जन कर दिया जाता है.

उत्तर प्रदेश के आगरा व आस पास के क्षेत्रों में नवरात्री समाप्त होते ही दसवीं से 5 दिन तक खेले जाने वाला टेसू-झेंझी का त्यौहार शुरू हो जाता है. इसके तहत 5 दिनों तक घर-घर जाकर,अनाज और पैसा इखट्टा किया जाता है. इसके बाद पूर्णमासी के दिन टेसू और झेंझी की शादी करा कर उनका विसर्जन कर दिया जाता है. हालांकि अब टेसू और झेंझी परंपरा पर भी महंगाई की मार पड़ी
गांव देहात में छोटे बच्चे घर-घर जाकर टेसू के गीत गाते हैं. साथ ही अनाज और रुपया इकट्ठा करते हैं. उस वक्त 5 से 6 फुट के टेसू चलन में थे. लोंगो में सबसे बड़ा टेसू खरीदने की होड़ लगी रही थी. लेकिन आधुनिकता के चलते शहरों में खासकर बड़े घरों में लोग अपने घर टेसू और झेंझी नहीं ले जाते हैं. गांव देहात में फिर भी ये परम्परा जिंदा
टेसू का नाता महाभारत से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि टेसू जिसे बर्बरीक के नाम से भी जानते हैं. बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे. वे बेहद शक्तिशाली थे और महाभारत के युद्ध में शामिल हुए थे. लेकिन उन्होंने अपनी मां को वचन दिया था कि महाभारत में जिस किसी की सेना भी सेना हारेगी वह उस सेना की ओर से युद्ध लड़ेंगे. पांडवों की सेना जीत रही थी, पांडवों के साथ साक्षात तीनों लोकों के नाथ श्री कृष्ण थे. पांडवों की सेना विजयी हो रही थी.
यह देख कर बर्बरीक ने कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ने का मन बनाया. लेकिन भगवान श्रीकृष्ण को पता था कि अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ेंगे तो वह 1 दिन में ही महाभारत युद्ध समाप्त कर देंगे और पांडवों की हार होगी. इसलिए उन्होंने साधु का भेष रखकर बर्बरीक से उनका सिर मांग लिया. बर्बरीक ने भी अपना सिर भगवान को अर्पित कर दिया. लेकिन उन्होंने इच्छा जाहिर की कि उन्हें महाभारत का युद्ध देखना है. इसलिए बर्बरीक के सिर को तीन डंडियों के सहारे पर्वत पर रख दिया, जहां से उन्होंने पूरी महाभारत देखी. कलयुग में खाटू श्याम के नाम से भी टेसू को जानते हैं.
#khatushyam #untoldstory #mathuravrindavan

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