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Скачать или смотреть श्री गुर्वष्टकम | Sri Gurvashtakam by HG Amogh Lila Prabhu | ISKCON Mangal Aarti | Samsara Davanala

  • VSY KRISHNA
  • 2024-06-04
  • 219
श्री गुर्वष्टकम | Sri Gurvashtakam by HG Amogh Lila Prabhu | ISKCON Mangal Aarti | Samsara Davanala
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श्री गुर्वष्टकम | Sri Gurvashtakam by HG Amogh Lila Prabhu | ISKCON Mangal Aarti | Samsara Davanala


श्री श्रीगुर्वष्टक ( श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर रचित )

17 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्रकट हुए श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर कृष्णभावनाभावित शिष्य परंपरा में एक महान गुरु हैं। वे कहते हैं कि –
श्रीमद्‌गुरोरष्टकमेतदुच्चे-ब्राह्मे मुहूर्त्ते पठति प्रयत्नात।
यस्तेन वृन्दावन नाथ साक्षात्‌ सवैव लभ्या जनुषोऽन्त एव॥
“जो वयक्ति ब्रह्ममुहूर्त के शुभसमय में श्रीगुरु के प्रति गुणगान युक्त इस प्रार्थना का उच्चस्वर से एवं सावधानीपूर्वक गान करता है, उसे मृत्यु के समय वृन्दावननाथ-कृष्ण की प्रत्यक्ष सेवा का अधिकार प्राप्त होता है। ”

संसार-दावानल-लीढ-लोक
त्राणाय कारुण्य-घनाघनत्वम्।
प्राप्तस्य कल्याण-गुणार्णवस्य
वन्दे गुरोःश्रीचरणारविन्दम्॥1॥

(1) श्रीगुरुदेव (आध्यात्मिक गुरु) कृपासिन्धु (भगवान्‌) से आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। जिस प्रकार एक मेघ वन में लगी हुई दावाग्नि पर जल की वर्षा करके उसे शान्त कर देता है, उसी प्रकार श्री गुरुदेव सांसारिक जीवन की प्रज्वलित अग्नि को शान्त करके, भौतिक दुःखों से पीड़ित जगत का उद्धार करते हैं। शुभ गुणों के सागर, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत
वादित्रमाद्यन्‌-मनसो-रसेन।
रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥2॥

(2) श्रीभगवान्‌ के दिवय नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान्‌ श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना।
श्रृंगार-तन्‌-मन्दिर-मार्जनादौ।
युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥3॥

(3) श्रीगुरुदेव मन्दिर में श्रीश्रीराधा-कृष्ण के अर्चाविग्रहों के पूजन में रत रहते हैं तथा वे अपने शिष्यों को भी ऐसी पूजा में संलग्न करते हैं। वे सुन्दर सुन्दर वस्त्र तथा आभूषणों से श्रीविग्रहों का श्रृंगार करते हैं, उनके मन्दिर का मार्जन करते हैं तथा इसी प्रकार श्रीकृष्ण की अन्य अर्चनाएँ भी करते हैं। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

चतुर्विधा-श्री भगवत्‌-प्रसाद-
स्वाद्वन्न-तृप्तान्‌ हरि-भक्त-संङ्घान्।
कृत्वैव तृप्तिं भजतः सदैव
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥4॥

(4) श्री गुरुदेव सदैव भगवान्‌ श्रीकृष्ण को लेह्य अर्थात चाटे जानेवाले, चवर्य अर्थात्‌ चबाए जाने वाले, पेय अर्थात्‌ पिये जाने वाले, तथा चोष्य अर्थात्‌ चूसे जाने वाले - इन चार प्रकार के स्वादिष्ट भोगों का अर्पण करते हैं। जब श्री गुरुदेव यह देखते हैं कि भक्तगण भगवान्‌ का प्रसाद ग्रहण करके तृप्त हो गये हैं, तो वे भी तृप्त हो जाते हैं। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

श्रीराधिका-माधवयोर्‌अपार-
माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम्।
प्रतिक्षणाऽऽस्वादन-लोलुपस्य
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥5॥

(5) श्रीगुरुदेव श्रीराधा-माधव के अनन्त गुण, रूप तथा मधुर लीलाओं के विषय में श्रवण व कीर्तन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसास्वादन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसावस्वादन करने की आकांक्षा करते हैं। ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

निकुञ्ज-युनो रति-केलि-सिद्धयै
या यालिभिर्‌ युक्तिर्‌ अपेक्षणीया।
तत्राति-दक्ष्याद्‌ अतिवल्लभस्य
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥6॥

(6) श्रीगुरुदेव अतिप्रिय हैं, क्योंकि वे वृन्दावन के निकुंजों में श्रीश्रीराधा-कृष्ण की माधुर्य लीलाओं को अत्यन्त श्रेष्ठता से सम्पन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार का आयोजन करती हुई गोपियों की सहायता करने में निपुण हैं। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

साक्षाद्‌-धरित्वेन समस्त शास्त्रैः
उक्तस्तथा भावयत एव सद्भिः।
किन्तु प्रभोर्यः प्रिय एव तस्य
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥7॥

(7) श्रीभगवान्‌ के अत्यन्त अन्तरंग सेवक होने के कारण, श्री गुरुदेव को स्वयं श्रीभगवान्‌ ही के समान सम्मानित किया जाना चाहिए। इस बात को सभी श्रुति-शास्त्र व प्रामाणिक अधिकारिओं ने स्वीकार किया है। भगवान्‌ श्रीहरि (श्रीकृष्ण) के ऐसे अतिशय प्रिय प्रतिनिधि के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।

यस्यप्रसादाद्‌ भगवदप्रसादो
यस्याऽप्रसादन्न्‌ न गति कुतोऽपि।
ध्यायंस्तुवंस्तस्य यशस्त्रि-सन्ध्यं
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥8॥

(8) श्रीगुरुदेव की कृपा से भगवान्‌ श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। श्री गुरुदेव की कृपा के बिना कोई भी सद्‌गति प्राप्त नहीं कर सकता। अतएव मुझे सदैव श्री गुरुदेव का स्मरण व गुणगान करना चाहिए। कम से कम दिन में तीन बार मुझे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में सादर वन्दना करनी चाहिए।


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Sansar davanal मंगला आरती इस्कॉन with hindi Lyrics - भजन श्रील विश्वनाथ चक्रवती ठाकुर द्वारा
Mangal Arti Iskcon with lyrics

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