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सात्त्विक भोजन।
श्रीकृष्ण के अनुसार, सात्त्विक भोजन वह भोजन है जो शुद्ध, ताजा, और स्वाभाविक रूप से ऊर्जा देने वाला होता है। यह प्रकार का भोजन शरीर और मन दोनों को शांत और संतुलित करता है। सात्त्विक भोजन हल्का होता है, आसानी से पचता है और इसे ग्रहण करने से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह भोजन आयु, प्राण, शक्ति, स्वास्थ्य, सुख और तृप्ति को बढ़ाने वाला माना जाता है। सात्त्विक भोजन में ताजे फल, सब्जियाँ, अनाज, दूध, और अन्य पौष्टिक खाद्य पदार्थ आते हैं। इस भोजन का विशेष गुण यह है कि यह न केवल शरीर को पोषण देता है बल्कि मन को भी शुद्ध करता है। यह ध्यान और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है। सात्त्विक भोजन करने वाले व्यक्ति में संतुलन, शांति और सकारात्मकता का संचार होता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति सात्त्विक भोजन का सेवन करता है, उसकी आयु लंबी होती है, उसकी प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है और वह शारीरिक एवं मानसिक रूप से सशक्त रहता है। सात्त्विक भोजन की यह विशेषता है कि यह व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है और उसके स्वास्थ्य को बनाए रखता है।
राजसिक भोजन।
राजसिक भोजन वह भोजन होता है जो अत्यधिक मसालेदार, तैलीय, खट्टा, तीखा या बहुत अधिक स्वादिष्ट होता है। इस प्रकार के भोजन को ग्रहण करने से तात्कालिक रूप से ऊर्जा और उत्तेजना मिलती है, लेकिन यह दीर्घकालिक रूप से शरीर और मन को हानि पहुँचाता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि राजसिक भोजन करने से व्यक्ति की इच्छाएँ और लालसाएँ बढ़ती हैं। इस भोजन से मन में अस्थिरता, क्रोध, और तृष्णा उत्पन्न होती है।राजसिक भोजन में अत्यधिक मिर्च-मसाले, नमक, तेल, और अन्य तले-भुने खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। इस प्रकार का भोजन हमारी पाचन शक्ति पर भारी पड़ता है और इसके सेवन से शरीर में अम्लता और अन्य रोग पैदा हो सकते हैं। इस भोजन का मुख्य दोष यह है कि यह हमारी मानसिक शांति को भंग करता है और हमारी ऊर्जा को असंतुलित करता है।राजसिक भोजन करने वाले लोग अक्सर बहुत ज्यादा तनाव, चिंता और मानसिक असंतुलन का सामना करते हैं। यह भोजन व्यक्ति की इच्छा शक्तियों को बढ़ावा देता है और उसे भौतिक सुखों के प्रति आकर्षित करता है। श्रीकृष्ण के अनुसार, राजसिक भोजन के लगातार सेवन से व्यक्ति की आयु कम होती है, क्योंकि यह शरीर में विषैले तत्वों का संचय करता है और शरीर की प्राकृतिक प्रणाली को कमजोर करता है।
तामसिक भोजन।
श्रीकृष्ण द्वारा वर्णित तीसरा प्रकार का भोजन तामसिक है। तामसिक भोजन वह भोजन होता है जो बासी, सड़ा-गला, अत्यधिक पका हुआ, या किसी भी प्रकार से अपवित्र होता है। इस प्रकार का भोजन हमारी शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्थितियों को गहराई से प्रभावित करता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि तामसिक भोजन व्यक्ति के शरीर में विषाक्तता बढ़ाता है, जिससे उसकी आयु कम होती है और वह रोगों से घिरा रहता है।तामसिक भोजन में मांसाहार, शराब, अत्यधिक पुराना भोजन, और अन्य अपवित्र पदार्थ शामिल होते हैं। इस प्रकार के भोजन से व्यक्ति के मन में आलस्य, निष्क्रियता, और निराशा का संचार होता है। तामसिक भोजन करने वाला व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो जाता है, उसकी जीवनशक्ति कमजोर पड़ जाती है और वह आध्यात्मिक दृष्टिकोण से पिछड़ जाता है।श्रीकृष्ण बताते हैं कि तामसिक भोजन करने वाले लोग अक्सर अवसाद, आलस्य और जड़ता के शिकार हो जाते हैं। यह भोजन न केवल शरीर को बीमारियों का घर बनाता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। तामसिक भोजन के सेवन से व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति कमजोर होती है और वह जीवन के ऊंचे उद्देश्यों को समझने में असमर्थ हो जाता है।
श्रीकृष्ण की दृष्टि से भोजन का प्रभाव और आयु।
श्रीकृष्ण के अनुसार, व्यक्ति जो भी खाता है, वह उसके मन, शरीर और आत्मा पर गहरा प्रभाव डालता है। भोजन न केवल शारीरिक शक्ति का स्रोत है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का भी प्रमुख स्रोत है। जो व्यक्ति सात्त्विक भोजन का सेवन करता है, वह शुद्धता, शांति और सशक्तता को प्राप्त करता है। वहीं, राजसिक और तामसिक भोजन के सेवन से व्यक्ति की आयु कम होती है और वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है।आयु को कम करने वाले तीन प्रकार के भोजन की श्रीकृष्ण द्वारा दी गई व्याख्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत सटीक है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी यह मानता है कि अत्यधिक तैलीय, मसालेदार, और अस्वस्थ्यकर भोजन का सेवन करने से हमारे शरीर में विषैले तत्वों का संचय होता है, जो अनेक प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। इसके अलावा, बासी और अपवित्र भोजन से हमारा पाचन तंत्र कमजोर होता है और शरीर के विभिन्न अंगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।श्रीकृष्ण ने यह बताया है कि भोजन का सीधा संबंध हमारे जीवन की गुणवत्ता से है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि सात्त्विक भोजन न केवल आयु को बढ़ाता है, बल्कि मन को भी शांत और स्थिर बनाता है। यह भोजन व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है और उसे जीवन के उच्चतम उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।
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