Maneka Gandhi vs Union of India case 1978 | Maneka Gandhi Case which changed the definition of life

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नमस्कार मैं शशिधर और आप देख रहे है ध्येय टीवी
तो हमारी ऐतिहासिक फैसलों की जर्नी आ पहुंची है एक ऐसे मामले पर जिसने भारत के संविधान में एक जान डाल दी या बल्कि ये कहना चाहिए की संविधान की आत्मा को सुनिश्चित कर दिया। केशवानंद भारती मामले के बाद संविधान की एक नयी परिधि स्थापित की गयी और उस परिधि में ही लोगों के अधिकारों की व्याख्या की जाने लगी।
एक संविधान को लम्बे समय तक जीवित रहना होता है और कोई संविधान तभी वैलिड बना रह सकता है जबतक वह लोगों की ज़रूरतों के हिसाब से खुद को एडजस्ट करता जाये सोचिये १९५० के समय का बना हुआ संविधान आज भी उतना ही प्रासंगिक यानि रेलेवेंट क्यों है ?इसीलिए क्यूंकि वो आज आपके और मेरे अधिकार को सुनिश्चित करता है और मेरी और आपकी, आज की ज़रूरत को पूरा करता है और जानते हैं ये किस वजह और किस मामले में हुआ ?
वो था मेनका गाँधी केस जो की १९७८ में हुआ
तो आइये जानते है क्या था मेनका गाँधी का ये ऐतिहासिक मामला।

दरअसल मेनका गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की पुत्रवधु यानि डॉटर इन लॉ थी जिन्होंने राजनैतिक पत्रिका शुरू की थी जिसका नाम था सूर्य उन्होंने इस मंच का उपयोग कांग्रेस पार्टी की छवि सुधरने के लिए करना शुरू किया खासकर उस छवि को जिसको इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी लगा कर धूमिल कर दिया था
उसी समय इस पत्रिका में तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम के बेटे की कुछ विवादस्पद फोटो भी प्रकाशित की गयी कुल मिला कर सब कुछ तत्कालीन सरकार के विरुद्ध जा रहा था
अब आते हैं असल मुद्दे पर दरअसल मेनका गाँधी को १ जून १९७६ को एक पासपोर्ट जारी किया गया था और उसी पासपोर्ट पर इमरजेंसी के दौरान ही मेनका गाँधी एक भाषण देने के लिए भारत से बहार जाना चाहती थीं पर ४ जुलाई १९७७ को दिल्ली के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय से एक चिठ्ठी मिली जिसके अंतर्गत यह आदेश दिया गया की भारतीय पासपोर्ट अधिनियम १९६७ की धारा १०(३)(C ) के अंतर्गत भारत सरकार ने मेनका गाँधी के पासपोर्ट को जनहित के आधार पर सीज़ कर दिया है और अंतिम आदेश तक वो भारत के बाहर अब कहीं यात्रा नहीं कर सकेंगी।
और उन्हें पत्र प्राप्त होने के ७ दिन के अंदर अपने पासपोर्ट को कार्यालय में जमा कराने का आदेश दिया गया
अब मेनका गाँधी भी पढ़ी लिखी और तत्कालीन समय में एक पत्रकार भी थीं, उन्होंने क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी को एक पत्र लिखकर उनसे अपने पासपोर्ट को रद्द किये जाने का कारण पूछा पर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने उन्हें जनहित के आधार पर कारण बताने से इंकार कर दिया।
इसी को आधार बनाते हुए मेनका गाँधी ने सरकार की इस कार्यवाही को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना और सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की



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