The Pasi's ancient rulers of oudh =
The presence of the Pasis in the area was attested by their huge population. In 1871 they numbered 700,000. In local folklore they are said to have ruled over vast areas. In Avadh their area of control stretched as far as Amethi. Also, local tradition related that the area in which the Pasis lived was known as the 'ganjar plain, or plain of iron; so called from the warlike demeanor of the natives, and it seems to have given the name of Ganjaria to the whole of Oudh' (W.C. Benet, Gazetteer of the Province of Oudh
East cheru ,bhars on the center ,and west held part Rajpasis .
Bhars and pasis ancient times same caste same race hindu tribe 1872
By W. crook Tribes and castes northern Western and oudh 1896,p.139
( W.crooke 1896) :
In parts of Ondh they have a tradition which professes to explain their connection with other possibly allied tribes on the basis of a series of ridieulous folk etymologies. Thus the Rajpâsis say that they are a branch of the Pásis and originally came from Gujarát. Tilok Chand, instead of being the eponymous hero of the Bais Rajputs, was according to them a Bhar king and called his family Rajbansi or "those of royal lineage" and from this came the name Rajpási. while the remnant were ealled Rájpâsi or " royal " Pâsis. It is said that the Pasis and Aralkhs there always claim kindred with the Bhars,! All through Oudh the Pâsis have traditions that they were lonis of the country and that their kings reigned at Sandila, Dhaurahra, Mitauli and Râmkot in the Districts of Kheri, Handoi and Unão, Râmkot, where the town of Bângarmau in Unáo now stands, is said to have been one of their chief strongholds. The last of the lords of Rámkot, Rája Santhar, threw off his allegiance to Kanauj and refused to pay tribute. On this Râja Jaychand gave the Gânjar country to the Banâphar heroes, Alha and Udal and they attacked and destroyed Râmkot, leaving it the shapeless mass of ruins which we now find it.' Similar traditions prevail in other parts of Oudh.
अर्थात = अवध के कुछ हिस्सों में उनकी एक परंपरा है जों लोक कथाओं के आधार पर संभवत: अपनी अन्य संबंधित जनजातियों के साथ उनके संबंध की व्याख्या करने का दावा करता है इस प्रकार राजपासियों का कहना है कि वे पासी की एक शाखा हैं और मूल रूप से गुजरात से आए थे। तिलोक चंद, बैस राजपूतों के नाम के नायक होने के बजाय, उनके अनुसार एक भर राजा थे और अपने परिवार को राजबंसी या "शाही वंश के लोग" कहते थे और इसी से इसका नाम राजपासी पड़ा। अब बाकी बचे राजपासी या " Royal" शाही पासी लोग थे। ऐसा कहा जाता है कि वहां के पासी और आरख हमेशा भर के सजाति होने का दावा करते हैं, अवध के माध्यम से सभी पासियों की परंपराएं हैं कि वे देश के स्वामी थे और उनके राजाओं ने संडीला, धौरहरा, मितौली और रामकोट में खीरी, हरदोई और उन्नाव, मितौली के जिलों में शासन किया, जहां अब उन्नाव में बांगरमऊ का शहर खड़ा है। कहा जाता है कि उनके प्रमुख गढ़ों में से एक था। रामकोट के राजाओं के अंतिम, राजा सातन ने कन्नौज के प्रति अपनी निष्ठा फेंक दी और उन्हें कर ( tax ) देने से इनकार कर दिया। इस पर राजा जयचंद ने बनाफर के नायकों, आल्हा और उदल को गांजर देश दिया और उन्होंने रामकोट पर आक्रमण किया और उसे नष्ट कर दिया, जिससे यह खंडहरों का आकारहीन द्रव्यमान बन गया जो अब हमें मिल गया है। ' अवध के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह की परंपराएं प्रचलित हैं
निष्कर्ष : उपयुक्त पैराग्राफ के अध्ययन से यह बात समझ आती है राजा त्रिलोक चंद ने नाम के आगे एक नया उपनाम / उपाधि जुड़ चुका था वह है राजपासी दूसरी चीज यह थीं कि राजा त्रिलोक चंद पासी उसी भारशिव राजवंश के थे जो अपने समय से 600 साल पीछे यानी दूसरी से तीसरी सदी में शक्तिशाली थे , राजा त्रिलोकचन्द पासी ने अपने वंश के लोगो कि विखंडित शक्तियों को मजबूत कर एक बार पुन : राजवंश खड़ा किया , पूरे अवध , दिल्ली , पहाड़ी क्षेत्रों को जीत कर बहराइच को अपनी राजधानी स्थापित किया , राजा त्रिलोक चंद पासी बहराइच से राज करता था ।
यह सिलसिला बिलकुल उसी तरह से था जैसे नागो ने भारशिव राजवंश की स्थापना की उसी क्रम में इससे हमे यह पता चलता है कि 918 ई राजा त्रिलोक चंद अपने परिवार और वंश के लिए एक नया नाम राजपासी रख लिया , बाकी जाति के लोग अपने पुराने नाम भारशिव जों अपभ्रंश होकर भर नाम से बने रहे है और यह सभी पासी जाति के अंतर्गत है अवध में जहां जहां भर नाम से किले खंडहर है जो भारशिवो से संदर्भित रहा है वहां आज भी पासी जाति बाहुल्य है
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