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Скачать или смотреть भगवान बुद्ध और उनका धर्म / The buddha and his dhamma - लेखक - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर

  • Buddh marg
  • 2025-11-02
  • 79
 भगवान बुद्ध और उनका धर्म / The buddha and his dhamma - लेखक -  डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर
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Описание к видео भगवान बुद्ध और उनका धर्म / The buddha and his dhamma - लेखक - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर

१. साम्प्रदायिक दुःख (Traditional Dukkha) और सांथितिक दुःख (Santhithik Dukkha)

🔸 साम्प्रदायिक दुःख:

यह वह दुःख है जिसे पुराने धार्मिक ग्रंथों और पारंपरिक विचारधाराओं में “जीवन का स्वभाविक दुःख” कहा गया।
जैसे —

जन्म का दुःख

जरा (बुढ़ापा) का दुःख

व्याधि (रोग) का दुःख

मरण (मृत्यु) का दुःख

प्रिय से वियोग का दुःख

अप्रिय के साथ मिलन का दुःख

इच्छाओं की अपूर्णता का दुःख


➡️ अर्थ: पारम्परिक दुःख मानव जीवन की अनिवार्य सच्चाई बताई गई है — जिसे हर जीव अनुभव करता है।


---

🔸 सांथितिक दुःख (Santhithik Dukkha):

डॉ. आंबेडकर के अनुसार, यह समाज द्वारा निर्मित दुःख है — जो सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक असमानता से उत्पन्न होता है।
जैसे —

राग द्वेष मोह शरीर में होनी वाली भावना

जाति व्यवस्था से उत्पन्न दुःख

ऊँच-नीच और भेदभाव का दुःख

अन्यायपूर्ण सामाजिक ढाँचे से उत्पन्न पीड़ा

अंधविश्वास, कर्मकांड और शोषण की पीड़ा


➡️ अर्थ: सांथितिक दुःख को बुद्ध ने मिटाने की बात की, क्योंकि यह मनुष्य की बनाई हुई व्यवस्था से पैदा होता है और इसे बदला जा सकता है।


---

🧘‍♂️ २. आत्मवादी (Ātmavādī) और अनात्मवादी (Anātmavādī)

🔸 आत्मवादी (Ātmavādī):

यह मान्यता कहती है कि शरीर के भीतर एक स्थायी आत्मा या जीव है, जो जन्म-मरण से परे है।

यह विचार ब्राह्मणवाद और उपनिषदों की मान्यता से जुड़ा है।


🔸 अनात्मवादी (Anātmavādī):

बुद्ध का विचार इसके विपरीत था। उन्होंने कहा —
“न आत्मा है, न परमात्मा — केवल तत्वों (धातुओं) का समूह है।”

मनुष्य “पंचस्कंध” (रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान) का योग है।

जब यह योग टूटता है, तो "मैं" (अहं) समाप्त हो जाता है।


➡️ बुद्ध का अनात्मवाद ही “ज्ञान द्वारा मुक्ति” (निब्बान) का मार्ग है।


---

३. भिक्षु (Bhikkhu) और गृहस्थ (Householder)

🔸 भिक्षु:

जिसने गृह का त्याग कर धम्म और ध्यान में जीवन समर्पित किया।

बुद्ध ने भिक्षुओं के लिए विनय-पिटक में आचारसंहिता बनाई।

उनका लक्ष्य था — आत्मशुद्धि, करुणा और प्रज्ञा का विकास।


🔸 गृहस्थ:

जो परिवार और समाज में रहकर धम्म के सिद्धांतों को जीवन में अपनाता है।

बुद्ध ने गृहस्थों के लिए पाँच शील बताए —

1. प्राणी हत्या से विरत रहना


2. चोरी न करना


3. कामवासना पर संयम


4. असत्य भाषण न करना


5. मादक पदार्थों से दूर रहना




➡️ दोनों मार्गों का उद्देश्य एक ही था — दुःख से मुक्ति और शील, समाधि, प्रज्ञा का विकास।


---

🌸 ४. 14 अक्तूबर 1956 – बाबा साहेब और दीक्षाभूमि (Nagpur)

📅 ऐतिहासिक घटना:

दिनांक: 14 अक्टूबर 1956

स्थान: दीक्षाभूमि, नागपुर

घटना: डॉ. भीमराव आंबेडकर और उनके 5 लाख अनुयायियों का बौद्ध धर्म में सामूहिक दीक्षा ग्रहण।


🔹 घटना का महत्व:

1. डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू धर्म की जाति-व्यवस्था से मुक्ति के लिए यह निर्णय लिया।


2. उन्होंने भविष्य का नया मार्ग — “धम्म का मार्ग” अपनाया।


3. इस दीक्षा के समय उन्होंने और उनके अनुयायियों ने २२ प्रतिज्ञाएँ (Vows) लीं, जिनमें:

मैं ब्राह्मण देवताओं में विश्वास नहीं रखूंगा।

मैं बुद्ध, धम्म और संघ को अपनाऊँगा।

मैं समानता, करुणा और विवेक पर आधारित जीवन जीऊँगा।




🔹 प्रतीकात्मक महत्व:

यह केवल धर्म परिवर्तन नहीं था, बल्कि “मानव मुक्ति आंदोलन” था।

इस घटना ने भारत के समाज, संस्कृति और राजनीति को नया रूप दिया।

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