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Скачать или смотреть भूलकर भी न बताएं किसी को ये बात |चाणक्य नीति| chanakya ki bate in hindi

  • पिटारा पौराणिक कहानियों का
  • 2020-03-03
  • 282
भूलकर भी न बताएं किसी को ये बात |चाणक्य नीति| chanakya ki bate in hindi
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Описание к видео भूलकर भी न बताएं किसी को ये बात |चाणक्य नीति| chanakya ki bate in hindi

जब भी कही कूटनीति की बात होती है तब हमारे मन मै जो पहला नाम आता है वो है महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य का, । जिन्होंने अपनी क्षमताओं और तार्किक सोच के बल पर समाज को एक नई विचार धारा दी।चाणक्य- चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे | वे कुशल राजनीतिज्ञ और चतुर अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए। चाणक्य के सिद्धांत और नीतियां इतनी व्यवहारिक हैं की आज भी बड़े बड़े अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ चाणक्य की नीतियों से प्रेरणा लेकर अपने निर्णयों को मूर्त रूप देते है।
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चाणक्य की कही बातें इतनी तर्कपूर्ण और सारगर्भित है कि उन्हें समझने से इंसान दुनिया की ठोकरें खाने से बच सकता है। ऐसी ही एक बात है जो आज के दौर में हर इंसान को समझना चाहिए। चाणक्य ने बताया है कि कौन सी बात कभी मुह से बाहर नही निकलना चाहिए क्योंकि एक बार वो बात मुह से निकल गयी तो पछताने के सिवाय कुछ हाथ नही लगता है। चाणक्य के इस ज्ञान को जानने से पहले आप मेरे चेनल को सब्सक्राइब कर दें।

श्लोक है-

मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत्। मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्य चापि नियोजयेत् ॥

इसका अर्थ है-
मन में सोचे हुए कार्य को कभी मुंह से बाहर नहीं निकालना चाहिए। मन्त्र के समान गुप्त रखकर उसकी रक्षा करनी चाहिए । गुप्त रखकर ही उस काम को करना भी चाहिए ।

क्योंकि आज के ज़माने में आपके आसपास के लौग हमेशा आपके शुभचिंतक नही हो सकते। आपसे जुड़े ज्यादातर लौग मन मे आपकी असफलता की ही कामना कर रहे होते है। ऐसे में उन्हें अपने मन की बात बताने से कभी लाभ नही होगा बल्कि हानि ही पहुंचेगी। इसलिए अपनी योजनाओ को हमेशा गुप्त रखना चाहिये। चाणक्य आगे कहते है-

शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे। साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ॥

मतलब न प्रत्येक पर्वत पर मणि-माणिक्य प्राप्त होते हैं न प्रत्येक हाथी के मस्तक से मुक्ता-मणि प्राप्त होती है । संसार में मनुष्यों की कमी नही है पर फिर भी साधु पुरुष आसानी से नहीं मिलते । इसी प्रकार सभी वनों में चन्दन के वृक्ष उपलब्ध नही होते । इसलिए आप भी अपने आसपास के लोगों को अपना शुबचिन्तक समझने की भूल कभी न करें और सावधानियां जरूर बरतें।
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चाणक्य मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे।[1] उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। चाणक्य की मृत्यु को लेकर दो कहानियां संदर्भ में आती है लेकिन दोनों में से कौन सी सच है इसका अभी कोई सार नहीं निकला है।

विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे।

चाणक्य के नाम पर डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा लिखित और निर्देशित एक 47-भाग का धारावाहिक भी बना था जिसे मूल रूप से 8 सितंबर 1991 से 9 अगस्त 1992 तक डीडी नेशनल पर प्रसारित किया गया था।

कौटिल्य के और भी कई नामों का उल्लेख किया गया है। जिसमें चाणक्य नाम प्रसिद्ध है। कौटिल्य को चाणक्य के नाम से पुकाररने वाले कई विद्वानों का मत है कि चाणक निषाद का पुत्र होने के कारण यह चाणक्य कहलाया। दूसरी ओर कुछ विद्वानों के कथानानुसार उसका जन्म पंजाब के चणक क्षेत्र के निषाद बस्ती में हुआ था जो वर्तमान समय में चंडीगढ़ के मल्लाह नामक स्थान से सूचित किया जाता है, इसलिए उसे चाणक्य कहा गया है, यद्यपि इस संबंध में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है। एक बात स्पष्ट है कि कौटिल्य और चाणक्य एक ही व्यक्ति है।

उपर्युक्त नामों के अलावा उसके और भी कई नामों का उल्लेख मिलता है, जैसे विष्णुगुप्त। कहा जाता है कि उसका मूल नाम विष्णुगुप्त ही था। उसके पिता ने उसका नाम विष्णुगुप्त ही रखा था। कौटिल्य, चाणक्य और विष्णुगुप्त तीनों नामों से संबंधित कई सन्दर्भ मिलते हैं, किंतु इन तीनों नामों के अलावा उसके और भी कई नामों का उल्लेख किया गया है, जैसे वात्स्यायन, मलंग, द्रविमल, अंगुल, वारानक्, कात्यान इत्यादि इन भिन्न-भिन्न नामों में कौन सा सही नाम है और कौन-सा गलत नाम है, यह विवाद का विषय है। परन्तु अधिकांश पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों ने 'अर्थशास्त्र' के लेखक के रूप में कौटिल्य नाम का ही प्रयोग किया है।

कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने कौटिल्य के अस्तित्व पर ही प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया है। विन्टरनीज, जॉली और कीथ के मतानुसार कौटिल्य नाम प्रतीकात्मक है, जो कूटनीति का प्रतीक है। पांतजलि द्वारा अपने महाभाष्य में कौटिल्य का प्रसंग नहीं आने के कारण उनके मतों का समर्थन मिला है। जॉली ने तो यहाँ तक कह डाला है कि 'अर्थशास्त्र' किसी कौटिल्य नामक व्यक्ति की कृति नहीं है। यह किसी अन्य आचार्य का रचित ग्रंथ है। शामाशास्त्री और गणपतिशास्त्री दोनों ने ही पाश्चात्य विचारकों के मत का खंडन किया है। दोनों का यह निश्चय मत है कि कौटिल्य का पूर्ण अस्तित्व था, भले ही उसके नामों में मतांतर पाया जाता हो। वस्तुतः इन तीनों पाश्चात्य विद्वानों के द्वारा कौटिल्य का अस्तित्व को नकारने के लिए जो बिंदु उठाए गए हैं, वे अनर्गल एवं महत्त्वहीन हैं।
चाणक्य को कौटिल्य उनके कुटिल व्यवहार के कारण भी कहा जा गया हो सकता है।

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