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Скачать или смотреть राठौड़ वंश की उत्पत्ति व शाखाएँ || Origin of Rathod Dynasty and its Branches

  • Reet Knowledge TV
  • 2022-04-16
  • 93176
राठौड़ वंश की उत्पत्ति व शाखाएँ || Origin of Rathod Dynasty and its Branches
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Описание к видео राठौड़ वंश की उत्पत्ति व शाखाएँ || Origin of Rathod Dynasty and its Branches

राठोड़ राजपूतों की उत्तपति सूर्यवंशी राजा के राठ (रीढ़) से उत्तपन बालक से हुई है इसलिए ये राठोड कहलाये, राठोडों की वंशावली मे उनकी राजधानी कर्नाट और कन्नोज बतलाई गयी है। राठोड सेतराग जी के पुत्र राव सीहा जी थे। मारवाड़ के राठोड़ उन ही के वंशज है। राव सीहा जी ने करीब 700 वर्ष पूर्व द्वारिका यात्रा के दोरानमारवाड़ मे आये और राठोड वंश की नीव रखी। राव सीहा जी राठोरो के आदि पुरुष थे। राठौड़ वंश राजपूत वंश की ही एक शाखा है राठौड़ वंश के लोग समस्त भारत वर्ष में पाये जाते हैं जिनके बारे में हम आज आप को बताएंगे।राठौड़ वंश का इतिहास काफी पुराना एवं स्वर्णिम रहा है जिसके बारे में जानना आपके लिए काफी जरूरी है। आज हम इसके साथ साथ राठौङ वंश के गोत्र कुल देवी आदि के विषय में विस्तार से बात करेंगे। तो चलिये अब जानते हैं राठौड़ समाज के बारे में
राठौड़ वंश का इतिहास
राठौड़ वंश का प्रमुख वेद यजुर्वेद है एवं राठौर वंश के इष्टदेव भगवान शिव को माना गया है।
राठौड़ वंश की पूज्यनीय देवी नाग्नेचिया माता है। नाग्नेचिया माता का पूजन राठौड़ वंश में हर शुभ कार्य के आरम्भ होने के बक्त किया जाता है।
राठौड़ वंश का गोत्र कश्यप है एवम राठौड़ वंश के गुरु श्री शुक्राचार्य को माना गया है।
राठौड़ वंश के लोग काफी पराक्रमी होते हैं। राठौड़ वंश के लोगों को सूर्यवंशी माना जाता है जो की राजपूत समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
राठौड़ वंश का प्रथम पुरुष पाली में राज करने बाले श्री राव सीहा जी की माना जाता है सीहा जी की छतरी राजस्थान के पाली जिले के बिटू नामक गांव में बनी हुई है।
राठौड़ वंश के ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर राठौड़ वंश की राजधानी कर्नाट और कन्नौज बताई गयी हैं।
राठौड़ वंश के राजपूतों ने भारत देश के एक बड़े हिस्से में लंबे समय तक राज्य किया जिनमें से मुख्य क्षेत्र जोधपुर, मारवाड़, किशनगढ़, बीकानेर, ईडर, कुशलगढ़, सैलाना, झाबुआ, सीतामउ, रतलाम, मांडा, अलीराजपुर थे।
राठौड़ वंश के शासकों को रणबंका राठौड़ भी कहा जाता है जिसका मुख्य कारण राठौड़ वंश का युद्ध क्षेत्र में पराक्रम एवं निडर भाव से दुश्मनों का सामना करना है।
राठौड़ वंश के प्रमुख उप गोत्र मेड़तिया , जोधा, चम्पावत, कुम्पावत, उदावत, जैतावत, सिंधल, बीका, महेचा आदि है।
राठौड़ वंश की प्राचीन तेरह शाखाएं हैं।राठौड़ वंश की प्रमुख शाखा दानेसरा शाखा को माना गया है।
राठौड़ वंश के अंतिम शासक
मुहणोत नैणसी अपने ग्रंथ नैणसी री ख्यात में राठौड़ों को कन्नौज के गहड़वाल वंश का वंशज बताया, इनका मानना था कि इस वंश के अंतिम शासक जयचन्द के वंशजों ने अपना राज्य पश्चिम राजस्थान में स्थापित कर लिया इस मत का समर्थन दयालदास री ख्यात एवं पृथ्वीराजरासों में भी मिलता है।
राठौड़ों के कुल पुरुष गहड़वाल शासक जयचंद के पौत्र राव सीहा थे। राव सीहा की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राव आसथाना शासक बने। जलालुद्दीन खिलजी के आक्रमण के भय के कारण अपना केंद्र गूंदौज को बनाया। आसथाना जी के बाद के शासकों में वीरमदेव जी के पुत्र चूंड़ा राठौड़ वंश के सफल व प्रतापी शासक थे। वीरमदेव जी मल्लीनाथ जी के भाई थे। राव चूंडा ने अपनी पुत्री हंसाबाई का विवाह मेवाड़ के राणा लाखा के साथ कर अपनी स्थिति को मजबूत किया।
राजस्थान के राठौड़ वंश के प्रमुख शाषक
राव सीहा (1250-1273 ईस्वी) – राठौड़ राजवंश के संस्थापक
राव आस्थान जी (1273-1292)
राव धुह्ड जी (1292-1309)
राव रायपाल जी (1309-1313)
राव कनपाल जी (1313-1328)
राव जालणसी जी (1323-1328)
राव छाडा जी (1328-1344)
राव तीडा जी (1344-1357)
राव सलखा जी (1357-1374)
राव वीरम जी (1374-1383)
राव चुंडा जी (1394-1423) – मंडोर पर राठौड़ राज्य की स्थापना
राव रिडमल जी (1427-1438)
राव काना जी (1423-1424)
राव सता जी (1424-1427

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