श्री कृष्ण भाग 94 - श्री कृष्ण का जामवंती और सत्यभामा से विवाह । रामानंद सागर कृत

Описание к видео श्री कृष्ण भाग 94 - श्री कृष्ण का जामवंती और सत्यभामा से विवाह । रामानंद सागर कृत

Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 94 - Shri Krishna Ka Jamwanti Aur Satyabhama Se Vivah

भगवान श्रीकृष्ण पर सत्राजीत की स्यमन्तक मणि की चोरी का आरोप लगता है। श्रीकृष्ण अपने ऊपर लगे इस कलंक को मिटाने के लिये मणि की खोज में निकलते हैं और एक गुफा में पहुँचते हैं जहाँ उन्हें एक कन्या मणि से खेलती मिलती है। उस कन्या का पिता कोई नहीं, रीछराज जामवन्त था जिसने त्रेता युग में भगवान श्रीराम की रावण के विरुद्ध युद्ध में सहायता की थी। उस युग में जब श्रीराम मृत्युलोक में अपनी नरलीला समाप्त होने के पश्चात बैकुण्ठ धाम जाने लगे थे, तब हनुमान, सुग्रीव, जामवन्त और अयोध्या की सारी प्रजा सरयू नदी के किनारे एकत्र हो गयी थी। श्रीराम ने चतुर्भुज विष्णु स्वरूप में सबको दर्शन दिये थे और हनुमान को आज्ञा दी थी कि जब तक धरती पर राम कथा का प्रचार रहेगा, तुम धरती पर रहोगे और कलियुग के अन्त तक भक्तों को मोक्ष का मार्ग दिखाओगे। श्रीराम ने जामवन्त को भी द्वापर युग तक धरती पर रहने का आदेश दिया था और तत्पश्चात अपने वाहन गरुड़ पर बैठकर बैकुण्ठ धाम वापस चले गये थे। पूरे एक युग के बाद जामवन्त ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो वह अपने प्रभु के इस रूप को पहचान न सका और दोनों के बीच मल्लयुद्ध प्रारम्भ हो जाता है। श्रीकृष्ण जामवन्त को परास्त करते हैं। हाँफता काँपता जामवन्त श्रीकृष्ण से कहता है कि भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में मुझसे कहा था कि मेरी प्रतीक्षा करना, द्वापर युग में मैं वासुदेव बनकर तुमसे मिलने आऊँगा। और मैं यह भी जानता हूँ कि मेरे प्रभु के अतिरिक्त कोई अन्य मुझे हरा नहीं सकता। परन्तु तुमने मुझे कैसे पराजित कर दिया। तब श्रीकृष्ण जामवन्त की सारी दुविधा मिटाते हुए कहते हैं कि वासुदेव कृष्ण मैं ही हूँ। यह सुनकर जामवन्त श्रीकृष्ण के चरणों पर गिरता है। श्रीकृष्ण जामवन्त को उठाते हुए उससे वरदान माँगने को कहते हैं। जामवन्त भक्तिभाव से कहता है कि मैं अपनी पुत्री जामवन्ती के लिये आपको वर के रूप में माँगता हूँ। और जामवन्त अपनी पुत्री का हाथ और स्यमन्तक मणि दोनों श्रीकृष्ण को सौंपता है। श्रीकृष्ण जामवन्ती और स्यमन्तक मणि लेकर वापस आते हैं तो द्वारिका में हर्ष की लहर दौड़ती है। स्यमन्तक मणि वापस मिलने पर अपने द्वारा श्रीकृष्ण पर लगाये आरोपों को लेकर सत्राजीत बहुत लज्जित होता है। उसकी पत्नी श्रीकृष्ण से आग्रह करती है कि आप स्यमन्तक मणि के साथ-साथ मेरी हृदय की मणि सत्यभामा को भी स्वीकार करें। सत्यभामा श्रीकृष्ण की रानी बनकर राजमहल में आयी किन्तु अपने रूप सौन्दर्य के कारण वह स्वयं को अन्य रानियों में सर्वश्रेष्ठ मानती रही। देवलोक का नियम था कि सूर्योदय से पहले देवता द्वारिका के आकाश पर प्रकट होकर श्रीकृष्ण की आरती करते और फिर अपने लोक को चले जाते। तत्पश्चात देवी रुक्मिणी आती और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करतीं। एक दासी इस परम्परा को लेकर सत्यभामा को भड़काती है तो अगले दिन सत्यभामा भी पूजा का थाल लेकर श्रीकृष्ण के कक्ष में पहुँचती हैं और कहती है कि आज से प्रथम पूजा तो मैं ही करूँगी। श्रीकृष्ण आँखों से रुक्मिणी को शान्त रहने का संकेत देते हैं। सत्यभामा श्रीकृष्ण की प्रथम पूजा करती हैं। इसके बाद रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पूजा करती हैं। बाद में श्रीकृष्ण और रुक्मिणी सत्यभामा का अहंकार खत्म करने के उपायों पर चर्चा करते हैं। उन्हीं दिनों प्रागज्योतिषपुर के दैत्य राजा नरकासुर ने तीनों लोक में उत्पात मचा रखा था। नरकासुर का दुस्साहस इतना बढ़ता है कि वह इन्द्रलोक में प्रवेश कर इन्द्र की माता अदिति के कक्ष तक पहुँच जाता है और उनके साथ बुरा बर्ताव करते हुए उनके कानों के कुण्डल नोच लेता है। इस घटना से भयभीत होकर सभी देवता त्राहिमाम-त्राहिमाम करते हुए भगवान ब्रह्मा के समक्ष पहुँचते हैं। ब्रह्माजी उन्हें बताते हैं कि नरकासुर को यह वरदान प्राप्त है कि कोई देवता उसका वध नहीं कर सकता है। किन्तु नरकासुर मानवों को तुच्छ समझता है इसलिये उसने मानव द्वारा न मरने का वरदान नहीं माँगा था। इस समय धरती पर भगवान श्रीकृष्ण मानवरूप में लीला कर रहे हैं। तुम उनकी शरण में जाओ। उनकी शक्ति नरकासुर को परास्त करने की क्षमता रखती है। देवराज इन्द्र द्वारिका में श्रीकृष्ण की शरण में जाते हैं और नरकासुर से रक्षा करने की गुहार लगाते हैं। रानी सत्यभामा भी नरकासुर वध के लिये श्रीकृष्ण के साथ जाने की इच्छा व्यक्त करती है। श्रीकृष्ण इसे मान लेते हैं। सत्यभामा के साथ अपने वाहन गरुड़ पर आरूढ़ होकर श्रीकृष्ण नरकासुर के नगर के ऊपर पहुँचते हैं और पान्चजन्य शंख का नाद करते हैं। शंख ध्वनि नरकासुर के कानों तक पहुँचती है। वह कहता है कि किसकी मृत्यु उसे खींचकर मेरे द्वार तक ले आयी है।

Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar
निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर
Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar
निर्देशक - रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर
Chief Asst. Director - Yogee Yogindar
मुख्य सहायक निर्देशक - योगी योगिंदर
Asst. Directors - Rajendra Shukla / Sridhar Jetty / Jyoti Sagar
सहायक निर्देशक - राजेंद्र शुक्ला / सरिधर जेटी / ज्योति सागर
Screenplay & Dialogues - Ramanand Sagar
पटकथा और संवाद - संगीत - रामानन्द सागर
Camera - Avinash Satoskar
कैमरा - अविनाश सतोसकर
Music - Ravindra Jain
संगीत - रविंद्र जैन
Lyrics - Ravindra Jain
गीत - रविंद्र जैन
Playback Singers - Suresh Wadkar / Hemlata / Ravindra Jain / Arvinder Singh / Sushil
पार्श्व गायक - सुरेश वाडकर / हेमलता / रविंद्र जैन / अरविन्दर सिंह / सुशील
Editor - Girish Daada / Moreshwar / R. Mishra / Sahdev
संपादक - गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर॰ मिश्रा / सहदेव

In association with Divo - our YouTube Partner

#shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna

Комментарии

Информация по комментариям в разработке